For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : ख़तरे में गर हो आब तो लोहा उठाइये

बह्र : २२१ २१२१ १२२१ २१२

हों जुल्म बेहिसाब तो लोहा उठाइये

ख़तरे में गर हो आब तो लोहा उठाइये

 

जिसको चुना है दिन की हिफ़ाजत के हेतु वो

खा जाए आफ़ताब तो लोहा उठाइये

 

भूखा मरे किसान मगर देश के प्रधान

खाते मिलें कबाब तो लोहा उठाइये

 

पूँजी के टायरों के तले आ के आपके

कुचले गए हों ख़्वाब तो लोहा उठाइये

 

फूलों से गढ़ सकेंगे न कुछ भी जहाँ में आप

गढ़ना हो कुछ जनाब तो लोहा उठाइये

-------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 835

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 11, 2015 at 8:28pm

आदरणीय सौरभ जी और मिथिलेश जी आपका समर्थन पाकर आश्वस्त हुआ वरना जिस रचना को समझाने के लिए रचनाकार को स्वयं मैदान में उतरना पड़े उसे.....................। अब क्या कहूँ। :)


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 11, 2015 at 8:07pm

वस्तुतः लोहा उठाना एक मुहावरा है, जिसका भावार्थ होता है, मुकाबला करना, विरोध में आवाज़ बुलन्द करना.

इन मायनों में रदीफ़ ’लोहा उठाइये’ बड़ा ही सटीक बन पड़ा है.
सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 11, 2015 at 8:03pm

लोहा का प्रतीक रूप में बहुत अधिक प्रयोग हुआ है हिंदी काव्य में. संभवतः यही कारण भी है कि इस प्रतीक का अर्थ विस्तार पाठक स्वयं ग्रहण कर लेता है. आदरणीय बड़े भाई धर्मेन्द्र जी आपने अपनी प्रतिक्रिया से इसे और भी स्पष्ट कर दिया. ग़ज़ल के आयाम से भी और भी अच्छे से अवगत करा दिया. इस प्रतीक पर काव्य की विभिन्न विधाओं और ग़ज़लों में भी कमाल की रचनाये हुई है जिसमे एक रचना आपकी ग़ज़ल के रूप में जुड़ गई. डॉ हरिवंशराय बच्चन जी की कविता 'गर्म लोहा' से लेकर  धर्मवीर भारती  जी की कविता 'ठण्डा लोहा' ऐसी कई रचनाएँ है. आपकी टिप्पणी से अनायास ही फिल्म रंग दे बसंती के गीत की ये पंक्तियाँ याद आ गई- 

जो गुमशुदा-सा ख्वाब था
वो मिल गया वो खिल गया
वो लोहा था पिघल गया
खिंचा खिंचा मचल गया
सितार में बदल गया
रु-ब-रु रोशनी हे........

सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 11, 2015 at 7:50pm

आदरणीय धर्मेन्द्रजी, मुझे प्रसन्नता है कि आप वह समझ गये जो मैं स्वयं समझने के बाद समझाना चाह रहा था.

लेकिन फिर मैं कहूँगा, हर तरह की परिस्थिति से गुजरने और हर तरह के झटके खाने के बावज़ूद भरोसा करना भारतीय हृदय का सदाशयी गुण है. यह सकारात्मकता अद्भुत गुण है और यही हमारे कालजयी होने का महती कारण.
करीब पचास-पचपन-साठ वर्षों से इस गुण के शमन का बाह्य कारणों द्वारा बड़ा ही घृणित प्रयास चल रहा है, जो इस ज़मीन में स्वयं को जबरदस्ती उगा हुआ साबित करने को आतुर दिखते हैं. लेकिन इसके लिए अनुकूल हवा-पानी भी आवश्यक है, इसे नकारते हैं. हर तरह का शुष्क वातावरण ’गोबी के रेगिस्तान’ की तरह नहीं होता, आदणीय.

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 11, 2015 at 7:41pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गिरिराज जी।

लोहा उठाइये इसलिए कहा क्योंकि इससे कहन को अर्थ विस्तार मिल जाता है। लोहा कलम में, ख़ून में, तलवार में, बंदूक में, छेनी में यहाँ तक कि मोबाइल और लैपटॉप में भी होता है। तो यहाँ कठिन रदीफ़ की वजह से कहन सीमित न हो जाय इसलिए खंजर उठाइये की जगह लोहा उठाइये कर दिया। आप दुबारा पढ़ेंगे तो पाएँगे कि लोहा उठाइये का अर्थ कहीं कलम उठाइये है, तो कहीं ख़ून में मौजूद लोहे को उठाने या जगाने की बात कही गई है, कहीं इसका अर्थ हथियार उठाना है तो कहीं औजार उठाना। उम्मीद है कि आदरणीय की शंका का समाधान हो गया होगा।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 11, 2015 at 7:23pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया मोहिनी जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 11, 2015 at 7:22pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय विनय कुमार जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 11, 2015 at 7:22pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सौरभ जी।

वाद का तो क्या कहें सौरभ जी, उत्तर आधुनिक साहित्य का यही तो गुण है कि यहाँ कुछ भी अछूत नहीं है। :) । सादर 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 11, 2015 at 7:18pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय राहुल जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 11, 2015 at 7:17pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुशील जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है। यह लघुकथा पाठक को गहरे…"
1 hour ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान'मैं सुमन हूँ।' पहले ने बतया। '.........?''मैं करीम।' दूसरे का…"
2 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"स्वागतम"
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar joined Admin's group
Thumbnail

सुझाव एवं शिकायत

Open Books से सम्बंधित किसी प्रकार का सुझाव या शिकायत यहाँ लिख सकते है , आप के सुझाव और शिकायत पर…See More
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार। विलम्ब से उत्तर के लिए…"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आ. भाई धर्मेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आयोजन की सफलता हेतु सभी को बधाई।"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार। वैसे यह टिप्पणी गलत जगह हो गई है। सादर"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार।"
22 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)

बह्र : 2122 2122 2122 212 देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिलेझूठ, नफ़रत, छल-कपट से जैसे गद्दारी…See More
23 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service