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नतीज़ा_____मनोज कुमार अहसास

तेरे दामन से लगाकर मै भरी आँखों को
ज़िन्दगी भर की तसल्ली का नतीजा चाहूँ

रौशनी तेरी ज़िन्दगी में ठहर जाये अगर
कौन सी चीज़ मैं मालिक से हमेशा चाहूँ

जो सुबह मुझको मिली है मै करू क्या इसका
बिन तेरे जीत ज़माने की भला क्या चाहूँ

हिज्रकी रात में भी आँख न जल जाये अगर
और मै चुपचाप तेरे गम में उबलना चाहूँ

हो सके तो मेरे ही दिल को बदल दे मालिक
अपने हिस्से से बड़ा और मैं कितना चाहूँ

रात का ज़िक्र ना कर मेरे हसीं दिल तनहा
मैं हमेशा ही तेरी याद में जगना चाहूँ

वो ये कहकर के मेरे इश्क़ से अनजान बने
तू तो अहसास है मैं तुझसे निकलना चाहूँ

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by Mukesh Kumar Saxena on May 24, 2015 at 6:32am

तेरे बिन जीत ज़माने की भला क्या चाहूँ । सच है ।सुंदर अभिव्यक्ति ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 21, 2015 at 11:16am

बहुत अच्छा प्रयास .

Comment by Samar kabeer on May 21, 2015 at 10:47am
जनाब मनोज कुमार अहसास जी,आदाब,आपका प्रयास सफ़लता की ओर अग्रसर है लेकिन मेरे भाई आपने इस ग़ज़ल के अरकान नहीं लिखे इससे ग़ज़ल को समझने में दुश्वारी का सामना है ।

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