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पार्टी में दुल्हन को गहने से सजी देखते ही बस देखते ही रह गया । उसके देह पर सजे गहने मानो एक एक कर कह उठे कि मुझसे ही दुल्हन की खूबसूरती है । हर श्रंगार की बस्तु मुझसे बात कर रही थी कि अचानक कुछ खुसुर पुसुर हुई । मेरा ध्यान भंग हुआ ।
"क्या हुआ शर्माइन जी ? "
"कुछ नही रे ..! ये लड़का पागल है । सुंदरता के चक्कर में पड़ गया रे.! ये लड़की तीन घरोँ को बर्बाद करके आई है इसकी ये चौथी शादी है। अब न जाने यहाँ क्या गुल खिलायेगी ! "
"ओहो क्या ....?"
मैने पुनः उन सभी जेवरों से कहा ....
"क्या काम के हो तुम लोग ...? चरित्र के बिना तुम्हारा क्या काम ...????



बबिता चौबे शक्ति।

मौलिक व् अप्रकाशित

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Comment by babita choubey shakti on May 15, 2015 at 9:13pm
आदरणीय शुभ्रांशु पांडे जी आभार आपका विनय कुमार सिंग जी आभार
Comment by Shubhranshu Pandey on May 15, 2015 at 7:30pm

आदरणीया बबिता जी, 

जेवरों की चमक ने चरित्र को कलुषित कर दिया है. सुन्दर कथा.

सादर.

Comment by विनय कुमार on May 13, 2015 at 6:52pm

आजकल तो लोग जेवर ही देखते हैं , चरित्र तो हासिये में चला गया है | बहरहाल सुन्दर लघुकथा हेतु बधाई प्रेषित है.

Comment by babita choubey shakti on May 13, 2015 at 5:00pm
धन्यबाद जितेंद्र पटैरिया जी
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 13, 2015 at 11:27am

बहुत सुंदर ,सार्थक सन्देश देती लघुकथा. बधाई आदरणीया बबीता जी. ओ.बी.ओ. पर आपका सादर स्वागत है

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