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ग़ज़ल --उमेश-------------पत्थरों के शहर में हुआ हादसा

बन्द कर दो सितम अब खुदा के लिये
जुल्म कितना करोगे अना के लिये

कत्ल करदे मगर यूँ न बदनाम कर
हाथ उठने लगे हैं दुआ के लिये

इस कदर मुफलिसी दे न मेरे खुदा
पास पैसे न हों जब दवा के लिये

चींखती रह गयी बेगुनाही मेरी
है गुनाह भी जरूरी सजा के लिये

बाद जाने के तेरे बचा कुछ नहीं
जी रहा हूँ फ़कत मैं क़जा के लिये

पत्थरों के शहर में हुआ हादसा
मर गया इश्क देखो व़फा के लिये

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित



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Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2015 at 5:33pm

बहुत खूब ..वाह

Comment by नादिर ख़ान on May 5, 2015 at 5:08pm

इस कदर मुफलिसी दे न मेरे खुदा
पास पैसे न हों जब दवा के लिये

चींखती रह गयी बेगुनाही मेरी
है गुनाह भी जरूरी सजा के लिये

बहुत खूबसूरत गज़ल कही आदरणीय उमेश जी बहुत मुबारकबाद ....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 5, 2015 at 4:42pm

खूब्सूरत गज़ल के लिये हार्दिक बधाइयाँ , आदरणीय ॥

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 5, 2015 at 11:18am

इस कदर मुफलिसी दे न मेरे खुदा
पास पैसे न हों जब दवा के लिये   वाह वाह! इस शेर के लिए अलग से दाद हाजिर है!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 5, 2015 at 11:16am

वाह आ० उमेश सर!बेहतरीन गजल हुयी है! हार्दिक बधाई

Comment by वीनस केसरी on May 5, 2015 at 3:57am

चींखती रह गयी बेगुनाही मेरी
है गुनाह भी जरूरी सजा के लिये

वाह क्या कहने

Comment by Dr. Vijai Shanker on May 5, 2015 at 2:46am
बहुत खूब, बधाई, आदरणीय उमेश जी, सादर।
Comment by Samar kabeer on May 4, 2015 at 3:07pm
जनाब अमेश कटारा जी,आदाब,बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने ,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं |

एक दो मिसरों में बदलाव ज़रूरी है,अपने सुझाव रख रहा हूँ :-

"चींखती रह गयी बेगुनाही मेरी
है गुनाह भी जरूरी सजा के लिये"

इस शैर को इस तरह कर लें :-

"चीख़ती रह गई बेगुनाही मेरी
है गुनह भी ज़रूरी सज़ा के लिये"

"गुनह" गुनाह का मुख़फ़्फ़फ़ (short form) है|

"पत्थरों के शहर में हुआ हादसा
मर गया इश्क देखो व़फा के लिये"

सही शब्द है शह्र,तरतीब बदलने से यह मिसरा दुरुस्त हो जाएगा :-

"शह्र में पत्थरों के हुवा हादसा
मर गया इश्क़ देखो वफ़ा के लिये "

कृपया अन्यथा न लें |
Comment by Shyam Narain Verma on May 4, 2015 at 2:40pm
क्या खूब ग़ज़ल कही है आपने वाह बहुत बहुत बधाई इस बेहतरीन रचना के लिये
Comment by मनोज अहसास on May 4, 2015 at 2:37pm
बहुत प्रवाह पूर्ण भावना प्रधान २चना

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