For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल-  आत्मा भरपूर सी...
बह्र - 2122, 2122, 2122, 212

फिर मुझे वह हूर सी लगने लगी।
दुश्मनी भी नूर सी लगने लगी।

गंग जन - मन को सदा पावन करे,
वास्तव में सूर सी लगने लगी।

तट, नदी का मध्य भी उकता गया,
रेत - पन्नी घूर सी लगने लगी।

आस्था की डुबकियॉं नित स्वर्ग हित,
बेवजह मगरूर सी लगने लगी।

आदमी सर-झील-नदियॉं पाट कर,
हस्तियॉं मशहूर सी लगने लगी।

आपदाएं नित्य घर-मन दाहतीं,
मंजिलें तन्दूर सी लगने लगी।

त्याग करके हर अहम - आकार को,
आत्मा भरपूर सी लगने लगी।

दर्द में 'सत्यम' किनारे बॅंट गए,
मौज जब मगरूर सी लगने लगी।

के0पी0 सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित

Views: 681

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 16, 2015 at 9:10am

आदरणीय जान भाई, कबीर भाई, गोपाल सरजी, हरिप्रकाश भाईजी तथा वीनस भाईजी आप सभी का तहेदिल से शुक्रिया,आभार प्रकट  करता हू.  यह सब आप  लोगो के सानिध्य मे ही सम्भव हुआ है.  सांदर

Comment by वीनस केसरी on April 16, 2015 at 12:58am

बहुत खूब

निरंतर लेखन से आपने ग़ज़ल विधा को भी साध लिया है

Comment by Hari Prakash Dubey on April 15, 2015 at 10:55pm

आदमी सर-झील-नदियॉं पाट कर,
हस्तियॉं मशहूर सी लगने लगी।

आपदाएं नित्य घर-मन दाहतीं,
मंजिलें तन्दूर सी लगने लगी।............सुन्दर रचना  केवल जी , बधाई !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 15, 2015 at 5:16pm

केवल जी बहर तो २१२२ २१२२ २१२ ही है i

आपका प्रयास अच्छा है  i

Comment by Samar kabeer on April 15, 2015 at 10:44am
जनाब केवल प्रसाद जी,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें |
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 14, 2015 at 10:49pm

आ० सत्यम जी सुन्दर रचना पर बधाई!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 14, 2015 at 8:37pm

आ0 गनेश सर जी,  आपका हार्दिक आभार.  गलत तकती को सही कर देता हू. सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 14, 2015 at 8:25pm
आ0 निधीजी, आपका हार्दिक आभार. आपने बिलकुल सही कहा. लेकिन हिन्दी और उर्दू के मेल से ही हिंदी मे मिठास भरती है. मेरा मानना है कि हिंदी भाषा की उदारता के कारण ही आज हिंदी भाषा भाषियो की संख्या बढ़ी है. सादर,

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 14, 2015 at 4:34pm

बहर में एक रुक्न आपने अधिक लिख दिया है जैसा की निधि जी ने बतायी हैं, 

त्याग कर हर अहं आकार को.....इस मिसरा की जरा तकती देख लीजिये.

मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, बधाई केवल भाई.

Comment by Nidhi Agrawal on April 14, 2015 at 2:27pm

आदरणीय सत्यम जी रचना के भाव अच्छे लगे .. मापनी २१२२ २१२२ २१२ पर सही  है (एक २१२२ ज्यादा लिख दिया है आपने )

.. लेकिन हिंदी और उर्दू का मेल मुझे कुछ कम जंचा 

एक तरफ गंग, पावन, आस्था, आपदा, तट संस्कार जैसे संस्कृत से आये हिंदी  शब्द .. दूसरी तरफ नूर, हूर, मगरूर हस्ती जैसे शुद्ध उर्दू शब्द .. कभी कभी ऐसा मेल भी अच्छा लगता है .. लेकिन इस रचना मे ये मेल रचना को थोडा हल्का कर रहा है .. ये मेरा व्यक्तिगत विचार है .. जैसा पढने पर महसूस हुआ 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
5 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , खूब सूरत मतल्ले के साथ , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक  बधाई स्वीकार…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल  के शेर पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया देख मन को सुकून मिला , आपको मेरे कुछ…"
7 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपसे मिले अनुमोदन हेतु आभार"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service