For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज़िन्दगी और कविता

मैं तो शब्द पिरो रही थी यूँ ही

सोच रही थी ख्यालों में खोकर

क्या ऐसे ही चलती है ज़िन्दगी

जैसे अनजाने बनती हैं कवितायें

झरने की तरह प्रवाह सी बहती

बस हर शब्द बरसता है बूँद सा

टपकता है मन के बादलों से कही

और जुड़ जुड़ कर बनता जाता है

एक मिसरा..एक शेर..एक मतला

कभी दर्द में डूबा हुआ सियाह लफ्ज़

कभी खुशी की चाशनी में डूबा हुआ.

कभी मिलन की आस में शरमाया हुआ

कभी विरह की तड़प में टूटता हुआ शब्द

एहसासों की चादर में लिपटकर कभी

बस कह जाता हैं अनकहे मन की बातें

वक्त के साथ यूँ ही बातो बातों में.

खोये हुए एक अरसा बीत जाता है 

रेत के कणों सा हाथों से फिसलकर

दिल फिर एक रीता कागज़ रह जाता है

निधि 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 491

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nidhi Agrawal on March 16, 2015 at 9:25am

आप सभी मित्रों का बहुत बहुत धन्यवाद् .. बस कोशिशें हैं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 14, 2015 at 9:29pm

सुन्दर भावाभिव्यक्ति ...हार्दिक बधाई 

Comment by Shyam Mathpal on March 14, 2015 at 8:12pm

Aadarniya Nidhi Ji,

Man ke bhawon se hi kavita banti hai.  Aapne ne bhawon ko piroya hai. Bahut sundar . Dheron Badhai.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 14, 2015 at 6:38pm

रचना में बहुत ही सुंदर भाव ,उभर कर आयें हैं. प्रस्तुति पर बधाई , आदरणीया निधि जी

Comment by Hari Prakash Dubey on March 14, 2015 at 10:13am

आदरणीया निधि जी ,सुन्दर भावों से सुसज्जित इस रचना पर बधाई आपको ! सादर 

Comment by khursheed khairadi on March 14, 2015 at 9:51am

कभी दर्द में डूबा हुआ सियाह लफ्ज़

कभी खुशी की चाशनी में डूबा हुआ.

कभी मिलन की आस में शरमाया हुआ

कभी विरह की तड़प में टूटता हुआ शब्द

आदरणीया निधि जी ,सुन्दर भावाभिव्यक्ति है |सादर अभिनन्दन |

Comment by somesh kumar on March 14, 2015 at 8:36am

क्या ऐसे ही चलती है ज़िन्दगी

जैसे अनजाने बनती हैं कवितायें

aapke isi sval me jwavb bhi hai nidhi ji ,sunder bhavrnjit kvita,hardik bdhai

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 13, 2015 at 10:36pm
सुन्दर ,
अच्छा है ,
कल्पनायें यूँ ही
आगे बढ़तीं हैं ,
फिसलती हुई ,
ठहरती नहीं ,
रुकती नहीं ,
कहीं रेत सी ,
छोड़ जातीं हैं ,
अंतत: एक
खाली मुठी,
खाली-खाली मुठी।
आदरणीय सुश्री निधि प्लस जी , बधाई , सादर।
Comment by maharshi tripathi on March 13, 2015 at 9:46pm

बहुत सुन्दर ,,आ. निधि जी आपको हार्दिक बधाई |

Comment by umesh katara on March 13, 2015 at 6:53pm

वाहहहहहह निधि जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
7 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
8 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
8 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service