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ग़ज़ल--१२२२--१२२२--१२२२--१२२२...मुझे मालूम है यारों

मेरा देहात क्यूँ रोटी से भी महरूम है यारों

कहाँ अटका है रिज़्के-हक़ मुझे मालूम है यारों

 

उठा पेमेंट उसका क्यूँ नरेगा की मज़ूरी से

घसीटाराम तो दो साल से मरहूम है यारों

करें किससे शिकायत हम , कहाँ जायें गिला लेकर

व्यवस्था हो गई ज़ालिम बशर मज़लूम है यारों

सिखाओ मत इसे बातें सियासत की विषैली तुम

मेरा देहात का दिल तो बड़ा मासूम है यारों

लिए फिरता है वो कानून अपनी जेब में हरदम

जो कायम कायदों पर है बशर वो बूम है यारों       बूम = उल्लू \मूर्ख

 

सियासत ने कई खाँचे कई हिस्से बना डाले

लहू का रंग तो इक है मगर मक़्सूम  है यारों      मक्सूम = विभाजित

 

उफ़ुक ओझल हुआ ‘खुरशीद’ भी जाने कहाँ गायब

उजाला गुम अँधेरे ने मचाई धूम है यारों

मौलिक व अप्रकाशित 

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 26, 2015 at 8:14pm

उठा पेमेंट उसका क्यूँ नरेगा की मज़ूरी से

घसीटाराम तो दो साल से मरहूम है यारों-------बहुत सच्चा शेर 

करें किससे शिकायत हम , कहाँ जायें गिला लेकर

व्यवस्था हो गई ज़ालिम बशर मज़लूम है यारों----जाएँ तो जाएँ कहाँ ...

सिखाओ मत इसे बातें सियासत की विषैली तुम

मेरा देहात का दिल तो बड़ा मासूम है यारों----उम्दा शेर मेरे देहात का दिल ठीक रहेगा 

लिए फिरता है वो कानून अपनी जेब में हरदम

जो कायम कायदों पर है बशर वो बूम है यारों       बूम = उल्लू \मूर्ख----हाहाहा ...यही तो हो रहा है बेहतरीन कटाक्ष 

संग्रहणीय ग़ज़लों में एक और इजाफा 

दिली दाद कबूलें भाई खुर्शीद जी 

 

सियासत ने कई खाँचे कई हिस्से बना डाले

लहू का रंग तो इक है मगर मक़्सूम  है यारों      मक्सूम = विभाजित

Comment by MAHIMA SHREE on February 26, 2015 at 11:17am

करें किससे शिकायत हम , कहाँ जायें गिला लेकर

व्यवस्था हो गई ज़ालिम बशर मज़लूम है यारों...... शानदार हर अशआर ...वर्तमान सामाजिक और राजनीतिक परिदृष्य से पर्दा उठा रहा है ..हार्दिक बधाई अापको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 26, 2015 at 11:16am

आदरणीय खुर्शीद भाई , शब्द कोष तो मेरे भी पास वही है , जो आपके पास है , और ये भी सही है कि निज़ामत का अर्थ उसमे नहीं दिया है । लेकिन गूगल सर्च में ' मीनिंग आफ निज़ामत ' सर्च करने से बहुत से शब्द कोषों से अर्थ मिल जाता है / गया  ।  निज़ामत सही शब्द है , आप बेख़टके इसे उपयोग कर सकते हैं ॥

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 26, 2015 at 10:19am
सियासत ने कई खाँचे कई हिस्से बना डाले
लहू का रंग तो इक है मगर मक़्सूम है यारों ॥
क्या बात कह डाली , बहुत बहुत बधाई , इस सुन्दर और जानदार प्रस्तुति के लिए आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी , सादर।
Comment by khursheed khairadi on February 26, 2015 at 9:21am

आदरणीय मिथिलेश जी सर ,इतनी विस्तृत तनकीद के लिए दिल से शुक्रिया |मेरे पास मेरे फोल्डर में ग़ज़लें ''कृतिदेव फॉण्ट ' में टाइप करके रखी हुई है (अधिकांश पत्रिकाएं इसी फॉण्ट में रचनाएँ स्वीकारती है |)इस समृद्ध मंच के रिप्लाई बॉक्स पर मैं उन गज़लों को यूनिकोड में त्य्प करता हूं ,इसी प्रयास में कई स्थान पर त्रुटियाँ रह जाती हैं ,,आपका कहना सही है यहाँ ,,मेरा ..के स्थान पर मेरे ही है 'मंच मिसरे को पूरा पढें तो 'मेरे देहात का दिल' ही पढ़ने की कृपा करें ,सादर निवेदन |

"ज़ालिम, बशर, मज़लूम जैसे लफ़्ज़ों के साथ व्यवस्था की बजाय निज़ामत ही सही लगता. वैसे लगता है आपने व्यवस्था का प्रयोग जानबूझकर किया है." उर्दू की शब्दावली के साथ हिंदी शब्द मुझे भी खटक रहा था , किंतु उर्दू का अज्ञानी होने के कारण मैं उन्हीं उर्दू शब्दों का प्रयोग करता हूं ,जिनका मुझे अर्थ मालुम हो तथा जो ज़नाब मुस्तफा खां 'मद्दाह " साहब के उर्दू शब्दकोष में मिल जाते हैं |वहाँ निज़ाम (अरबी ,पुर्लिंग )है ,किंतु निज़ामत नहीं दिया हुआ है ,,,मफाई लुन....के १२२ हेतु निज़ामत सही वज़न में है ,,लेकिन  निज़ाम से निज़ामत बन सकता है क्या इसकी मुझे जानकारी नहीं है |मंच के उर्दूदां मित्रों ,,खासकर ,,समर कबीर साहब और शिज्जु सर से निवेदन है कि मार्गदर्शन की कृपा करें |यदि निज़ामत ,,को.. वयवस्था ...की जगह रखा जायेगा तो शेर में चार चाँद लग जायेगे |सादर आभार ,आदरणीय मिथिलेश जी | 

Comment by khursheed khairadi on February 26, 2015 at 8:56am

आदरणीय गुमनाम साहब ,अजय शरमा साहब ,उमेश कटारा साहब ,आप सभी के स्नेह का तहेदिल से शुक्रगुजार हूं |सादर आभार |

Comment by khursheed khairadi on February 26, 2015 at 8:54am

आदरणीय निर्मल नदीम साहब, आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी , स्नेह बनाये रखियेगा साहब ,बहुत प्रेरणा मिलती है |हार्दिक आभार |

Comment by khursheed khairadi on February 26, 2015 at 8:52am

आदरणीय गिरिराज सर ,आदरणीय सुरेश सरना सर , आदरणीय हरिप्रकाश सर ,आप सभी का स्नेह मेरे लिए अनमोल है ,आपके कमेंट उत्प्रेरक का काम करते हैं |सादर आभार |

Comment by khursheed khairadi on February 26, 2015 at 8:47am

आदरणीय सौरभ सर ,आदरणीय गोपालनारायण सर ,आप जैसे महानुभवों का आशीर्वाद निरंतर मिलता रहे ,तो कंकर भी हीरा बन जाये |आदरणीय सौरभ सर आपका कहा सही है,'रदीफ़' का यारों .......यारो के रूप में ही स्वीकार्य है |एक बार यारों टाइप हो जाने पर हर जगह वही पेस्ट हो गया है |बहुमूल्य जानकारी का शुक्रिया |सादर आभार | 

Comment by khursheed khairadi on February 26, 2015 at 8:42am

आदरणीय कृष्ण मिश्रा 'जान' साहब , ग़ज़ल आपको पसंद आयी ,इसके लिए शुक्रिया |स्नेह बनाये रखियेगा |सादर आभार | 

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