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ग़ज़ल -- सुब्ह से शाम हम कमाते हैं

सुब्ह से शाम हम कमाते हैं
तब भी मुश्किल से घर चलाते हैं

ये विरासत में हमको सीख मिली
हम तो मेहनत की रोटी खाते हैं

शाम होते ही हम परिन्दों से
लौट कर अपने घर को आते हैं

जिनके सर पर खुदा का हाथ है वो
आँधियों में दिये जलाते हैं

रोज़-ए-महशर की छोड़ कर चिन्ता
रिन्द मयखाने रोज़ जाते हैं

मुझको दुनिया सराय लगती है
लोग आते हैं लोग जाते हैं

हम तो फुरसत में दिल के छालों को
शे'र के पर्दों में छुपाते हैं

दर्द -ए-ग़म क्यूँ किसी पे हो ज़ाहिर
हम यही सोच मुस्कुराते हैं

चाँद तारे 'दिनेश' सब हमको
उस खुदा की ज़िया दिखाते हैं

-- दिनेश कुमार २०/०२/२०१५

( मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment by khursheed khairadi on February 23, 2015 at 9:42am

मुझको दुनिया सराय लगती है
लोग आते हैं लोग जाते हैं

हम तो फुरसत में दिल के छालों को
शे'र के पर्दों में छुपाते हैं

दर्द -ए-ग़म क्यूँ किसी पे हो ज़ाहिर
हम यही सोच मुस्कुराते हैं

आदरणीय दिनेश जी ,उम्दा ग़ज़ल हुई है |सभी अशआर दिल को छू गये |मक्ते पर विशेष बधाई स्वीकार करें |आपकी शायरी हमेशा दिल पर असर डालने वाली होती है |सादर अभिनन्दन |

Comment by दिनेश कुमार on February 21, 2015 at 10:55pm
आदरणीय Dr. Vijai Shanker सर जी, हार्दिक आभार।
Comment by दिनेश कुमार on February 21, 2015 at 10:54pm
हौसला अफजाई का शुक्रिया भाई सर्वेश कुमार मिश्र जी।
Comment by दिनेश कुमार on February 21, 2015 at 10:52pm
भाई सूबे सिंह सुजान जी, कोशिश आप को अच्छी लगी, यह जान कर खुशी हुई है। तारीफ़ का शुक्रिया।
Comment by दिनेश कुमार on February 21, 2015 at 10:49pm
भाई ajay sharma जी, हार्दिक आभार।
Comment by दिनेश कुमार on February 21, 2015 at 10:37pm
आदरणीय समर कबीर सर जी, आप मुझे शायर कह कर शर्मिंदा कर रहे हैं। ये सिर्फ़ तुकबंदी है सर जी, जो कि मैं कबूल करता हूँ कि सोच विचार कर की गई है। आप की बात से मैं भी सहमत हूँ कि एक फ़नकार का यह अख़लाक़ी फ़र्ज़ होता है कि वह किसी ग़ज़ल में कोई जरा सा भी नुक़्स देखे तो फ़ौरन उसकी निशानदही करे। उम्मीद है मुझे आप का सहयोग रूपी आशीर्वाद मिलता रहेगा।
Comment by दिनेश कुमार on February 21, 2015 at 10:26pm
आपकी स्नेहिल सराहना के लिये बहुत बहुत शुक्रिया , आदरणीय मिथिलेश भाई ॥
Comment by दिनेश कुमार on February 21, 2015 at 10:23pm
हार्दिक आभार सोमेश कुमार भाई जी।
Comment by दिनेश कुमार on February 21, 2015 at 10:20pm
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गिरिराज सर जी, हौसला बढ़ाने के लिये हार्दिक आभार।
Comment by Dr. Vijai Shanker on February 21, 2015 at 2:25am
दर्द -ए-ग़म क्यूँ किसी पे हो ज़ाहिर
हम यही सोच मुस्कुराते हैं ॥
सुन्दर , बधाई ,

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