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ग़ज़ल --१२२२--१२२२--१२२२--१२२२

१२२२-१२२२-१२२२-१२२२

अना के ज़ोर से कमज़ोर रिश्ते टूट जाते हैं

ज़रा सी बाहमी टक्कर से शीशे टूट जाते हैं

 

गले मिलकर बनाते हैं यही मज़बूत इक रस्सी

गर आपस में उलझ जायें तो धागे टूट जाते हैं

 

बहारों में शजर की डालियों पर झूमते हैं जो

ख़ज़ाँ के एक झोंके से वो पत्ते टूट जाते हैं

 

किसी दर पर झुकाना सिर नहीं मंजूर हमको भी

करें क्या पेट की खिदमत में काँधें टूट जाते हैं

 

तू चढ़कर पीठ पर आँधी की इतराता है क्यूं ज़र्रे

अगर गर्दिश में हो तारे सितारे टूट जाते हैं

 

चमन में बेटियों के वालिदों सा हाल है इनका

उठाकर तितलियों का भार पौधे टूट जाते हैं

 

शजर दिल का हिलाती है ग़मों की आँधियाँ जब जब

समर के रूप में ग़ज़लों के मिसरे टूट जाते हैं

 

अगर हम सोच को मैदान सा विस्तार दें यारों

दीवारें टूट जाती हैं दरीचे टूट जाते हैं

 

बग़ावत के फ़िसोसे सूझते हैं पेट भरने पर

अगर करने पड़े फ़ाक़े इरादे  टूट जाते हैं

 

न बन यूं कोह चल आँसू बहाकर सोग कुछ कम कर

ग़मों के बोझ से तो अच्छे अच्छे टूट जाते हैं

 

सवेरा इसलिये ‘खुरशीद’ फिर लेकर चला आया

मुसल्सल तीरगी हो तो फ़रिश्ते टूट जाते हैं

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by umesh katara on January 11, 2015 at 11:02am

वाहहहहह

Comment by Hari Prakash Dubey on January 10, 2015 at 5:44pm

सवेरा इसलिये ‘खुरशीद’ फिर लेकर चला आया

मुसल्सल तीरगी हो तो फ़रिश्ते टूट जाते हैं ....शानदार ....आदरणीय खुरशीद जी  , पूरी गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाई ।

Comment by khursheed khairadi on January 10, 2015 at 5:28pm

आदरणीय आशुतोष सर ,तहेदिल से शुक्रिया |सादर 

Comment by khursheed khairadi on January 10, 2015 at 5:27pm

आदरणीय मिथिलेश जी ,आदरणीय दिनेश जी ,आपकी स्नेहमिश्रित प्रतिक्रियाएं ,मुझे संकोच में डाल रही है |आप  मैं  हम सब ग़ज़ल साधक भर हैं |अच्छे अशहार तो ग़ज़ल ख़ुद बुन लेती है|हम तो निमित्त मात्र हैं |आपको सादर नमन जो आप ज़र्रानवाज़ी से मेरे हौसलों को नई परवाज़ दे रहें हैं |आपका यह स्नेह और मुहब्बत मुसल्सल बरक़रार रहे |सादर आभार  

Comment by khursheed khairadi on January 10, 2015 at 5:19pm

आदरणीय श्याम नारायण साहब , गुमनाम सर ,त्रिपाठी साहब ,विजयशंकर सर आप सभी का हृदय से आभारी हूं |स्नेह बनाये रखियेगा |सादर |

Comment by khursheed khairadi on January 10, 2015 at 5:17pm

आदरणीय गिरिराज सर गोपालनारायण  सर आप का आशीर्वाद मेरे लेखन में निरंतर निखार लता है |इस पूंजी से मुझे कभी महरूम न रखियेगा |सादर 

Comment by दिनेश कुमार on January 9, 2015 at 9:49pm
ये पढ़ कर तो अपनी हिम्मत ही खत्म हो गई सोचने की। इतना अच्छा एक भी शे'र मैं तो कह नहीं पाऊंगा कभी। सादर नमन

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 9, 2015 at 9:44pm

सही बात दिनेश भाई जी कोई ग़ज़लगो अपने रचनाकर्म में एकाध ऐसी ग़ज़ल कह दे तो बड़ी उपलब्धि बन जाएँ ..इस बह्र में सैकड़ों गज़लें पढ़ी है और आठ दस लिख चुका हूँ पर ऐसे कमाल के अशआर निकाल ही नहीं पाया. बहुत मेहनत करनी होगी भाई जी 

Comment by दिनेश कुमार on January 9, 2015 at 9:34pm
Aapne toh meri soch ko shabd de diye..bhai Mithilesh ji..waah

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 9, 2015 at 9:34pm

पढ़कर ऐसा भाव विभोर हूँ कि शब्द नहीं मिल रहे .... कितनी सहजता से एक एक अशआर कह दिया और कहा भी ऐसा कि दिल में उतर जाए...

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