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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।
 
पिछले 47 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलमआज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-48

विषय - "कर्त्तव्य"

आयोजन की अवधि- 10 अक्टूबर 2014, दिन शुक्रवार से 11 अक्टूबर 2014, शनिवार की समाप्ति तक  (यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)


बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए.आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

 

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :- 

  • सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अधिकतम दो स्तरीय प्रविष्टियाँ अर्थात प्रति दिन एक ही दे सकेंगे, ध्यान रहे प्रति दिन एक, न कि एक ही दिन में दो. 
  •  रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
  • रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
  • प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
  • नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.


सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है. 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं. 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.   

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 10 अक्टूबर 2014,दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें
मंच संचालिका 
डॉo प्राची सिंह 
(सदस्य प्रबंधन टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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Replies to This Discussion

हा हा हा हा........................

बहुत सही कहा आपने..   :-)))

बहरहाल प्रस्तुति आपको रुचिकर लगी, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय गोपाल नारायनजी. 

सादर

आ. भाई सौरभ जी 
अति सुन्दर कुंडलिया पढने को उपलब्ध कराई आपने बधाई दिल से 


निभे न सबसे रीत, समर्पण दीखे कमतर 
पशु तक में यह भाव, मगर कैसा है दानव 
अपनों से मुँह मोड़, स्वार्थ में जीता मानव

 
**************** इन शब्दों की जितनी भी तारीफ करूं कम है पुनः बधाई स्वीकारें सादर 

आपको प्रयास रुचिकर लगा, आदरणीया छायाजी, यह रचनाकर्म के प्रतिआपका सम्मान है.

सादर

मानव अपने कर्म का, प्रतिफल चाहे भव्य 
जिसको पाने के लिए, आवश्यक कर्त्तव्य 

 आ ० सौरभ पाण्डेय जी बहुत सुन्दर " कुण्डलियाँ " है..


आदरणीय अविनाशजी, आपका  सहयोग सतत बना रहे..

हार्दिक धन्यवाद..

तीनों कुण्डलियां एक से बढ़कर एक हैं, अंतिम कुण्डली बेहद खूबसूरत बन पड़ी है, अंतिम दो पक्ति पर क्या कहने, बस गज़ब गज़ब गज़ब !!
पशु तक में यह भाव, मगर कैसा है दानव
अपनों से मुँह मोड़, स्वार्थ में जीता मानव

इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई आदरणीय सौरभ भईया।

बहुत-बहुत धन्यवाद गणेशभाई.. . आयोजन में इस बार उपस्थिति जिन परिस्थितियों में हुई है, वह विदित ही है. तभी तो पहले छन्द की पाँचवीं पंक्ति के सम चरण में गलत शब्द रह गया था. आदरणीय अरुण भाई ने ध्यान दिलाया. खैर, यह सब चलता रहता है..

इसके बावज़ूद रचनाकर्म सार्थक बन पड़ा है, यह जानना मेरे लिए भी कम तोषदायी नहीं है.

यथोचित समय देने के लिए हार्दिक धन्यवाद. 

परम आ. सौरभ जी सादर 

          प्रस्तुति पर विलम्ब से आने हेतु क्षमा प्रार्थी हूँ. 

          तीनों ही कुण्डलिया छंद एक से बढ़कर एक लगें, सादर  बधाई आदरणीय ।

रचनाओं को अनुमोदित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सत्यनारायणजी..

सादर

मांग रहे अधिकार, सभी जन आज यहां तो ।
होते क्या कर्तव्य, मानते नही जहां तो ।।
माने जो कर्तव्य, कहां अधिकार जताते ।
करते वे निज काम, कभी भी नही सताते ।।

मां बालक ले गोद, स्नेहमय दूध पिलाती ।
साफ करे मल मूत्र, जतन कर वह हर्षाती ।।
चाह नही कुछ मूल्य, नित्य कर्तव्य निभाती ।
जीवन में अधिकार, कहां वह कभी जताती ।।

धरती सूरज चांद, नित्य हर पल कर्म करे ।
रहे सदा निस्वार्थ, लोक मन में हर्ष भरे ।।
कर्म करें निष्काम, करें ना फल की चिंता ।
कर्म यही कर्तव्य, कहे गीता भगवंता ।।
....................................
मौलिक अप्रकाशित

प्रियवर  श्री चौहान , बहुत  उत्तम हैं  रोले

कहते   गहरी   बात, और  सूरत से  भोले

निखरे-निखरे  छन्द,  किसे हैं  नहीं सुहाते ?

सरल सहज अंदाज, सभी के मन को भाते

आदरणीय रमेश जी, विषयानुरूप सुन्दर छन्दों के लिये बधाइयाँ.........

हुजूर आपका यह फार्म देखने के लिए आखें तरस रहीं थी, सुन्दर प्रतिक्रिया छंद।

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आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

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