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अगम है प्रेम पारावार फिर भी  प्रिये पतवार लेकर आ गया हूँ I

विकल मन में जलधि के ज्वार  फूटे

तार      संयम       अनेको     बार    टूटे

प्राण     आकंठ      होकर       थरथराये

नेह    के   बंधन   सजीले   थे   न    छूटे

प्यास  की  वासना  उद्दाम ऐसी  नयन  सागर सहेजे आ गया हूँ I

 

नयन   ने    काव्य  करुणा  के   रचे  हैं

कौन  से    पाठ्यक्रम    इससे    बचे   हैं

किसी   कवि   ने   इन्हें जब गुनगुनाया

लाज     ने    तोड़      डाले    सींकचे    हैं

गीत    संसार  को ऐसे  न भाते   तरह  जैसे  कि मै सरसा गया हूँ I

न     जाने      कौन     सा उन्माद है यह

चरम    है    और      अनहद   नाद है   यह

रूप   में       रमना    रमकर   राम    होना I

प्रकृति  का  शास्वात   रस्वाद  है    यह       

चाह थी नील- नभ में श्याम हो  लूँ राह मे अभ्र से टकरा  गया हूँ I

अगम है  प्रेम पारावार  फिर  भी  प्रिये पतवार लेकर आ गया हूँ I

 

 

 

(मू ल व्  अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 22, 2014 at 9:43pm
पवन जी
आपका आभार i
Comment by Pawan Kumar on August 22, 2014 at 3:08pm

 प्रणाम सर..... बहुत सुन्दर पंक्तियां हैं , और चुनिन्दा शब्दों का मेल कितना है...बधाई स्वीकार करें।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 13, 2014 at 8:19pm

विजय जी

आपका ह्रदय से आभार् प्रकट  करता हूँ

Comment by विजय मिश्र on August 13, 2014 at 2:22pm
इतनी मनमोहक रचनावली में इतने सुंदर शब्द चयन के साथ इतने हृदयस्पर्शी भाव व्यक्त किये हैं कि मन पढकर गदगद हो गया |
"अगम है प्रेम पारावार फिर भी प्रिये पतवार लेकर आ गया हूँ |"
ईश्वर के समक्ष स्वेम को व्यक्त करने केलिए इससे सुंदर और क्या अभिव्यक्त हो सकता है ! हार्दिक आभार श्रीगोपालजी |
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 13, 2014 at 10:37am

जवाहर जी

आपका आभार प्रकट करता हूँ i

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 13, 2014 at 9:35am

नयन   ने    काव्य  करुणा  के   रचे  हैं

कौन  से    पाठ्यक्रम    इससे    बचे   हैं

किसी   कवि   ने   इन्हें जब गुनगुनाया

लाज     ने    तोड़      डाले    सींकचे    हैं

गीत    संसार  को ऐसे  न भाते   तरह  जैसे  कि मै सरसा गया हूँ I

पंक्तियाँ मुझे बेहतर लगी. सादर!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 12, 2014 at 8:26pm

धामी जी

यहाँ हम सब मिलकर सीखते है  i  आपका बहुत बहुत आभार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 12, 2014 at 11:50am

जीतू भाई i

आभार

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2014 at 11:50am

आ० भाई गोपाल नारायण जी , इस सुन्दर भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई . मैं भी अनेकों शब्द के विषय में भ्रमित था . बहुत सी पाठ्य पुस्तकों और कथा कहानियों में भी अनेकों शब्द पढने को मिल जाता है .सहित्तिक पत्रिकाओं में भी .पर कभी किसी से पूछने या कहने का साहस नहीं कर पाया आज आ० भाई सौरभ जी और आपकी चर्चा ने भ्रम का पर्दा हटा दिया . इसके लिए आप दोनों का हार्दिक धन्यवाद .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 12, 2014 at 11:48am

शत शत अभिनन्दन

 

सादर अभिवादन/ आदरणीय निकोर जी

कृपया ध्यान दे...

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