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मेरी पहली अमरनाथ यात्रा

मेरी पहली अमरनाथ यात्रा
बात 22 जुलाई वर्ष 2009 की है। मेरे पिता अपनी डियुटी से घर आये हुए थे।घर का कोई काम न कर पाने के मेरे दुकान से आने के बाद मुझ पर नाराज हेा रहे थे। मैं चुपचाप खाना खाया और उनके नाराज होने पर घर से बाहर चले जाने की आदत के अनुसार घर से बाहर निकल कर अपनी दुकान पर आ गया। दुकान पर आरकुट खोल कर इधर उधर करने लगा। उसी समय मेरे मैसेज बाक्स में अमरनाथ यात्रा संबंधी रजिस्टेªशन का विज्ञापन आया। मैं उसे खोल कर देखने लगा, पता नहीं क्या दिमाग में आया मै उसमेें दिये लिंक केा क्लिक कर दिया।  समय पास करने के लिये मैं  रजिस्ट्रेशन करने लगा मजह थोडी सी प्रक्रिया के बाद  28 जुलाई का रजिस्टेशन हो गया। मैने सोचा कि कल से अमरनाथ यात्रा रजिस्टेªशन का कार्य शुरू कर दूॅंगा। उसी समय मेरे गाॅॅंव के ही एक दुष्यन उपाध्याया जो उस समय मध्य प्रदेश के ग्वालियर के गेल कंम्पनी में इंजीनीयर थे, वह भी आनलाइन हुए और मेरे बहुत रात तक आनलाइन रहने का कारण पूछा ।मैने सारी बात उनको बतायी तो तुरंन्त वह भी अपना रजिस्टेªशन करने को कहने लगें । उनका रजिस्टेशन भी हो गया, अब मेरा मन अमरनाथ दर्शन का पूर्ण रूप से बन चुका था। मैने उसी समय तत्काल उनका और अपना रिजस्वेशन वाराणसी जम्मूतवी एक्सप्रेक्स में कराना चाहा ।मगर उन्होने मना कर दिया उन्होने अपना और उसी समय मेरा और अपना आनलाइन रिर्जवेशन अपने खर्चे पर दिल्ली जम्मू राजधानी में करवा दिया। जब मेरे घर इस बात का पता चला तो सब नाराज होने लगेें मगर मैने फेैसला कर लिया था। दोनो लोगो का मिलन दिल्ली में होना था जो मैने अपना रिजर्वेशन मैने हावडा नई दिल्ली पूर्वा एक्सप्रेक्स में कराया और किसी तहर अपने परिवार केा समझा बुझा कर हम अमरनाथ यात्रा पर 24 जुलाई 2009 को निकल पडा । 25 जुलाई को हम दिल्ली पहुॅंचे और दिन भर होटल में आराम कर किये। शाम को हम दुष्यन्त उपाध्याय अपने एक मित्र के साथ आये और बोलो की ये भी चलेगा ।उसका रिजवेशन दिल्ली जम्मूतवी शताब्दी एक्सप्रेक्स में था । इस तरह तीनो लोग सीधे जम्मू पहुॅंचे । वहाॅं मेरे गाव के एक शशि कुमार सिंह झुन्नु मिल गये हम 1 से 4 हो चुके थे। हम लोगो ने अपना पूरा दिन जम्मू में यात्रा के बारे में पता करने एवं व्यवस्था में बिता दिया । दोपहर 1 बजे हम लोग उस समय 1000 प्रतिदिन के हिसाब से एक गाडी देकर चल दिये और रात 11 बजे पहलगाॅंव पहुॅंचे हमारे कार वाले ने फोन करके एक होटल बुका दिया था। पहलगाम झील के किनारे बसे होटल में हम लोग रात्रि विश्र्राम करने के बाद सुबह 6 बजे अपनी यात्रा पर निकल पड़े। हम लोग 9 बजे 16 किलोमीटर दूर पहलगाव से 2350 फिट की ऊँचाई पर स्थित  चंदनवाडी पहुॅंचे पहलगाम से लेकर चन्दंनवाडी तक रास्ते के नजारे हमें बार बार उतर कर धुमने का निमंन्त्रण दे रहे थे । मगर हमारी मंजिल कुछ और हम लोग जल्दी से जल्दी बाबा बर्फानी के दर्शन करना चाह रहे थे । चंदनवाडी में हम लोगो ने छड़ी, गुलकोज, बिस्कुट इत्यादि खरीदा और वही से सामान ले जाने के लिये एक पिठठू लिया । अब हम लोग यात्रा के लिये तैयार थे। हम लोगो के स्वागत कर के लिये पहली चढ़ाई पिस्सू टाप के रूप में तैयारी थी । महज तीन किलोमीटर में हम लोगों को 2400 फिट की चढ़ाई चढ़नी थी। हमें बताया गया कि यह चढ़ाई कदम ताल पर ही पूरी करनी होगी दौड़ने और भागने का प्रयास करने पर खतरा हो जायेगा ।हम चारो आदमी एक दूसरे का सहारा लेकर चढ़ाई शुरू कर दिये । महज दो किलोमीटर की चढ़ाई में हम लोग पस्त होने लगें ।मगर बाबा की क्रिपा से हम लोग चढ़ाई पूरी करने के बाद मोबाइल से अपने अपने घर पहली चढ़ाई की सूचना दिये। मगर हम लोगो को नहीं मालूम था कि यह फोन हम लोगो का कुछ दिन के लिये अंतिम फोन होगा। हम लोग हल्का नास्ता करने के बाद अपनी आगे की या़त्रा पर निकल पड़े। हम लोगो की मंजिल वहाॅं से 800 फीट की ऊँचाई पर 9 किलोमीटर दूर बसा शेषनाथ था हम लोग चलते चलते थक चुके थे। हम लोगो को नागाकोठी कैम्प पहुचने में तीन बज गये । यात्रा के नियमो के अनुसार दिन के दो बजेे तक शेषनाग पार नहीं कर पाये। हम लोगों को शेषनाग में रूकना पडा ।शरीर गवाही नहीं दे रहा था। पैर बुरी तरह दर्द कर रहे थे । हम लोग 400 रूप्ये मंे टेन्ट लेकर रात में रूक गये और लंगर मे खाना इत्यादि खाकर सो गये ।सुबह एक अशुभ समाचार हम लोगो का इंन्ताजार कर रहा था। हमें बताया गया कि कारगिल में बर्फ का तुफान आने के कारण मौसम खराब हो गया है। आगे का रास्ता मौसम खुलने तक बंद कर दिया गया है। दस बजे दिन के बाद ही खुलने की उम्मीद है। तभी शेषनाग में ही बहुत तेजी का तुफान आया और पहाडों से तेजी में पत्थर हमारे टेन्ट के नीचे आकर गिरने लगें हम लोगो ने टेन्ट की शरण लिया । टेन्ट भी अब बरसात का पानी रोक पाने में असमर्थ थे। मौसम और रास्ता खुलने के इंन्तजार में पूरा दिन बीत गया। रात फिर अगली सुबह दो दिन तक वही हालत बनी रही। कैम्प में केाई अफवाह फेैलती तो हम लोग भाग कर सेना के जवानों के पास जाते हम लोग बुरी तरह फॅंस चुके थे। दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था। हम लोग कुछ कर नहीं पा रहे थे मोबाइल काम नहीं कर रहा था। तीसरे दिन सुबह में पता चला कि यहॅा एक आर्मी का फोन है , जिससे केवल 60 रूपये में 1 मिनट बात किया जा सकता है ।हम चारो लोग वहा पहुॅंचे तो पता चला कि हम लोगो का नम्बर शाम को आयेगा ।हम लोगो ने यात्री और टेन्ट नम्बर लिखवा दिया और नम्बर आने और रास्ता खुलने की प्रतिक्षा करने लगें ।
             हम लोगो को नहीं मालूम था कि हम लोगो के लिये भोले शंकर ने आज का दिन पूरे जीवन का सबसे श्रेष्ठ दिन बनाने का फैसला कर लिया था । हम लोग शाम को अपने नियत समय पर वहाॅं पहुच कर घर फोन किया मैने फोन लगते ही आवाज भी सुनी कि किसी है और सीधे कहा कि हम लोग फॅंसे हुए है रास्ता खुलने के बाद दशर्न होगा इस बीच में हम फोन नहीं कर पायेगें आप लोग टी0वी0 से हम लोगो का समाचार देखते रहे तब तक फोन कट गया । तभी हमारे मिलाये हुए नम्बर को देख कर वहॅंा खड़ा एक सैनिक ने पूछा यह कहाॅं फोन किये हेा मैने बताया गहमर ।वह सैनिक हम लोगों के क्षेत्र का था ।परिचय होने पर वह अपने टेंन्ट में ले हम लोगो की सेवा करने लगा। तब काफी जोर से हल्ला हुआ शेषनाथ निकले शेषनाग निकले हम लोग कुछ समझ पाते वह सैनिक बाहर की तरफ दौड़ा। और हम लोगों को भी पीछे आने के लिये बोला हम लोग कुछ न समझते हुए भी उसके पीछे भागे अंॅंधेरे में भागते हुए उसके पास पहुॅंचे तो वह शेषनाथ झील के किनारे खड़ा होकर एक कोने में  देखने का इशारा किया ।यहॅा ये लिखतेे हुए हमारा रौगटे आज भी  खड़े होने लगे । हम लोगो ने नजारा देखा वह अकल्पनीय था झील के एक कोने में चन्द्रमा की रौशनी सीधी कुछ पड़ रही थी और वहाॅं सर्प के फन की तरह की आकृति साफ दिखाई दे रही थी। साथ ही ऐसा लग रहा था की हजारो सर्प पानी में एक साथ सर उठाये खडे़ हो ।मगर यह नजारा हमारे साथ खडे़ दो लोगो को दिखाई नहीं पड रहा था ।वह लोग परेशान थे ।तब तक लगा जैसे वह आकृति पानी में बैठती जा रही है ।धीरे धीरे वह आकृति गायब हो गई। चन्द्रमा की रौशनी अब फेैल कर पूरे झील को अपने शरण में ले लिया। चारो तरफ शेषनाग जी की जयकार होने लगी । हम लोग उस आर्मी वाले के कैम्प में लौट आये। चुके थे झुन्नु भाई दर्शन न हो पाने के कारण निराश थे। तब उस आर्मी वाले ने बताया कि पूरे यात्रा के दौरान किसी एक रात को शेषनाग जी निकलते है पहाड़ी के किनारा होने के कारण वहाॅं यात्रीयों के कैम्प नहीं होते है। इस लिये इनका दर्शन यात्री नहीं कर पाते । यह भी पता नहीं होता कि यह किस दिन निकलेगें और कब निकलेगें। वो तो जब पहाडी के उपर पीकेट करने वाला सेना का जवान झील के उस कोने पर रौशनी बढ़ते देखता तो चिल्ला कर सबको बताता है। कभी कभी यह भम्र भी होता है । मगर कोई इस की फिर झूठी आवाज हो सकती है अपने कदम नहीं रोकता ।पहुॅंचता ही है। आप लोग आज इस कैम्प में आने के कारण आसानी से वहाॅं पहुॅच गये हम लोग भगवान शिव केा और उसके इस दुर्भम दर्शन के लिये धन्यवाद देकर अपने कैम्प में चले आये। सुबह जब हम लोगो ने उस जगह और कैम्प की दूरी देखी तो हमें अंदाजा हुआ कि अगर हम लोग आर्मी के कैम्प में नहीं होते तो यह दिव्य दर्शन असंभव था। सुबह हम लोगो को बताया गया कि रास्ता खुल गया है, पंच तरणी मे फॅंसे यात्रीयों को हेलीकाप्टर से नीचे पहुॅंचाया जा रहा है। बाबा के पास पर फॅंसे  को घोडे की मदद से पंचतरणी लाया जाया जा रहा है। और हम लोगो के लिये भी घोडे़ की व्यवस्था शुल्क के साथ किया जा रहा है। हम लोगो केा फॅंसे तीन दिन हो चुके थे। हम लोगो घोड़े पर सवार होकर यात्रा के लिये निकल पड़े रास्ता और घोेड़े की चाल देख कर लगता था कि हम लोग हम खाई अबमें गिरे की तब गिरे वर्फ की बजह से पूरा रास्ता स्लिप कर रहा था यहाॅं से पिस्सू टाप की तरह ही सीधी चढ़ाई थी वहा से पपझिल की दूरी तो महज 5 किलोमीटर थी था मगर चढ़ाई 3500 फिट वहा पहुॅचने के बाद अब घोडे पर बैठने की हिम्मत भी नहीं रही मगर फिर भी यात्रा तो करनी थी  किसी तरह हम लोग 6 किलोमीटर दूर पंचतरणी पहुॅंचे मगर अब हम लोग पहाडो से हम लोग उतर रहे थे और जमीन की तरफ आ रहे थे हम लोग पुनः लगभग 11 हजार फीट की उचाई पर ही आ गये पंचतरणी में पाच नदियों का अनुठा संगम देख कर सब थकान दूर हो गयी नदी का पानी जैसे अृमत और शीसे की तरह साफ देख कर जैसे लगा कि हम लोग जमीन की जगह कही और आ गये है  पंचतरणी से महज 6  किलोमीटर दूर  4 हजार फीट की उचाई पर बाबा का दरवार था मगर चढाई इस बार काफी खतरनाक थी पहाडी को काट कर रास्ता बनाया गया था जिस पर दोनो तरफ से पैदल घोडे और पालकी का आना जाना था पंचतरणी से यात्रीयों की भीड काफी बढ जाती है क्योंकि पंचतरणी से तीन किलोमीटर दूरी पर ही वालटाल होकर आने वाले यात्री भी मिल जाते है साथ ही हेलीकाप्ट से आये यात्री भी यही से पैदल हो जाते है फिर भी नया उत्साह और शिव शिव के जय कारा के साथ हम लोग साथ शुरू हुई शुरू हुई दोहपर 1 बजे हमलोग बाबा की गुफा के पास पहॅंुच चुके थे लक्ष्य सामने दिख जरूर रहा था मगर बीच का सफर आसान नहीं था। हम लोगो केा घोड़े ने तीन किलोमीटर पहले ही उतार दिया और हम लोग पैदल वहाॅं चल पडे एक प्रसाद की दुकान पर रूक कर हम लोगो ने 50 रूप्ये बाल्टी का गर्म पानी लिया और स्नान कर के बाबा के गुफा में जाने लगे ।घोड़े पर आने के वावजूद शरीर ने साथ देना बंद कर दिया था मगर किसी तरह हम लोग दर्शन कर के लौटने वालो का उत्साह देखकर उत्साहित होते हुए सीढीयों के सहारे बाबा के लगभग 14000 फिट की उचाई पर स्थित बाबा के दरबार में पहुॅंचे बाबा बर्फानी की बर्फ से बने आकार और देा कबूतरोें को देख कर हमलोगों का मन प्रसन्न हो गया। हम लोग बाबा का जी भर के दर्शन किये और प्रसाद लेकर उमंग के साथ वापस चल दिये हम लोग खाना इत्यादि खा कर वालटाल के रास्ते नीचे उतरने लगें रास्ता काफी खतरनाक हो चुका था। रास्ते में बारिस एवं पहाडों से गिरते पत्थरो से समाना हो रहा था कभी खाई हमारे दाये कभी बाये कभी पास से गुजरते घोडे महज 14 किलोमीटर का रास्ता काटे नहीं कट रहा था हम लोगो रात 10 बजे नीचे उतर चुके थे। कार वाले ने जो कैम्प हम लोगो के लिये पहले से बुक किया था  कैम्प तक पहुॅचना काफी कठिन लग रहा था अन्धोर अंन्धकार और उपर से तेज होती बारिस मेें केवल दूर दिखती लाइट ही हम लोगो का सहारा थाी हम लोगा किसी तरह गिरते पड़ते वालटाल के कैम्प तक पहुॅंचे और एक काफी कठिन एंव मन को सकून देने वाली यात्रा समाप्त ककर वहा रात्रि विश्राम करके सुबह श्रीनगर के लिये अपनी कार से निकल गये।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Akhand Gahmari on July 21, 2014 at 1:20pm

आदरणीय सौरभ पांडे जी आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूूँ इस प्रकार के स्‍मरण लिखने का प्रथम प्रयास था आपके आर्शीवाद से उस अथक यात्रा में किसी प्रकार की बहाने बाजी नहीं होगी और यह प्रयास करता रहूँगा की स्‍मरण आपके मन को भाये आपके आशा के अनुरूप लिख सकूँ नमन आपको


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 21, 2014 at 1:24am

संस्मरण को आपने भरसक रोचक बनाये रखा है, भाईजी. यह बहुत बड़ी बात है. हर कदम हम पाठक आपके साथ बने रहे. ईश्वर सहाय्य था, आप दर्शन कर आये, चाहे इस यात्रा का बहाना कुछ भी रहा था.

यह अवश्य है कि संस्मरण का प्रस्तुतीकरण अभी बहुत बेहतर हो सकता है. इसे प्रस्तुत करने के पूर्व काश आपने दो दफ़े पढ़ लिया होता.  सामान्य सूचना आदि को एक ओर रख दिया जाय, तो इस प्रस्तुति को संस्मरण-साहित्य का भाग होने के क्रम में अभी बहुत यात्रा करनी है.. अनथक यात्रा.

शुभेच्छाएँ

हर-हर महादेव

Comment by Akhand Gahmari on July 18, 2014 at 8:24pm

आदरणीय Shubhranshu Pandeyजी इस का निर्णय तो पाठक स्‍वंय करता है कथा किस प्रकार की थी , मैने अपनी यात्रा का वर्णन किया आपको पंसद आयी नमन आपको

Comment by Akhand Gahmari on July 18, 2014 at 8:22pm

आदरणीय जितेन्‍द्र गीत जी आपने आपने हमारे स्‍मरण को पंसद कर हमारा उत्‍साहवर्धन ही नहीं किया वरण 23 जुलाई 2014 से प्रारम्‍भ हो रही हमारी दूसरी अमरनाथ यात्रा के लिये प्रेरणा दिया भी दिया। नमन आपको

Comment by Shubhranshu Pandey on July 16, 2014 at 9:07pm

आदरणीय अखंड गहमरी जी, 

सावन के पावन माह में बर्फ़ानी बाबा के दर्शन करा कर आपने कृतार्थ कर दिया. यात्रा विवरण एक भागती हुई फ़िल्म की तरह थी. आपके साथ एक एक पग पर आ रहे खतरे को महसूस किया जा सकता है...

सादर.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 13, 2014 at 9:41am

आपकी रोमंचक  यात्रा का संस्मरण आपने साझा किया, बधाई आपको आदरणीय अखंड जी

Comment by Akhand Gahmari on July 12, 2014 at 8:52pm

आदरणीय Santlal Karun जी आपने आपने हमारे स्‍मरण को पंसद कर हमारा उत्‍साहवर्धन ही नहीं किया वरण 23 जुलाई 2014 से प्रारम्‍भ हो रही हमारी दूसरी अमरनाथ यात्रा के लिये प्रेरणा दिया भी दिया। नमन आपको

Comment by Akhand Gahmari on July 12, 2014 at 8:51pm

अादरणीया राजेश कुमारी जी आपने हमारे स्‍मरण को पंसद कर हमारा उत्‍साहवर्धन ही नहीं किया वरण 23 जुलाई 2014 से प्रारम्‍भ हो रही हमारी दूसरी अमरनाथ यात्रा के लिये प्रेरणा दिया भी दिया। उत्‍साहवर्धन पर आपको नमन आदरणीया

Comment by Santlal Karun on July 12, 2014 at 8:33pm

आदरणीय गहमरी जी,

अमरनाथ-यात्रा पर आधारित रुचिकर, पठनीय संस्मरण; हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 11, 2014 at 9:28pm

काफी रोमांचक सफ़र रहा आपका ..बहुत अच्छा संस्मरण लिखा है आपने,पढ़ते पढ़ते  हर चित्र आँखों के समक्ष सजीव हो रहा था ,हम तो सिर्फ तस्वीरों या फिल्मो में ही बाबा बर्फानी के दर्शन कर लेते हैं | बधाई एवं आभार आपको ये संस्मरण साझा करने के लिए ,आ० अखंड गहमरी जी |

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