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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
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आदरणीय श्री गिरीश पंकज जी ने यह ग़ज़ल मेल द्वारा भेजे है ....
बिना तुम्हारे क्या बतलाऊँ कैसा लगता है
जीवन क्या है सच पूछो तो सुन्दर तुहफ़ा
दोबारा इसको पाने मेम युग -सा लगता है।
बेहतरीन शे'र , ख़ूबसुरत गज़ल पंकज जी को मुबारकबाद व उनका आभार।
बिना तुम्हारे क्या बतलाऊँ कैसा लगता है
वाह वाह पंकज सर , बेहद संजीदा ग़ज़ल कही है आपने ,
जीवन क्या है सच पूछो तो है सुंदर तोहफा
दोबारा इसको पाने में युग-सा लगता है ..
बिलकुल यथार्थ , एक शेर में पूरा जीवन दर्शन डाल दिया है |
खुदगर्जों की इस बस्ती में है तुझसे उम्मीद
केवल याद तुम्हारी करके अच्छा लगता है...
उम्मीद पर दुनिया टिकी है :-) खुबसूरत शे'र
गिरह का शे'र और मकता भी काफी प्रभावी बन पड़ा है | बहुत बहुत बधाई पंकज सर ,आप स्वयम पोस्ट किये होते तो मजा दोगुना होता | दाद स्वीकार कीजिये सर |
कैसे कह दूं तन्हाई का दर्द सताता है,
यादों की दुनिया में अक्सर मेला लगता है।
बेहतरीन शे'र , ख़ूबसूरत ग़ज़ल , तिलक जी मुबारकबाद
के मुस्तहक़ हैं।
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