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कहा किसने कि राहे इश्क़ में धोका नहीं है

कहा किसने कि राहे इश्क़ में धोका नहीं है

यहाँ जो दिखता है वो दोस्तों होता नहीं है

 

जो कुछ पाया ज़माने की नज़र में था हमेशा

गंवाया जो उसे इस दुनिया ने देखा नहीं है

 

गुज़ारी है वफ़ादारों में सारी उम्र मैंने

दग़ा करना किसी से भी मुझे आता नहीं है

 

मुझे मालूम है इक दिन जुदा होना है सबको

मगर ऐसे भी कोई दूर तो जाता नहीं है

 

मुहब्बत के सफ़र में हमसफ़र जितने थे मेरे

कोई भी साथ थोड़ी दूर चल पाया नहीं है

 

अज़ब है कश्मकश दिल की ज़ुदा होके भी तुमसे

कहाँ जाऊँ किधर जाऊँ समझ आता नही  है

 

तुम्हारे बाद भी आए बहुत से लोग लेकिन

मेरे दिल के करीब इतना कोई आया नहीं है

 

दग़ा मक्कारी धोका झूठ तेरी बेवफ़ाई

समझता है मेरा दिल भी कोई बच्चा नहीं है

 

मेरा हँसना तो देखा है सभी ने खूब ‘सूरज’

मगर तनहाई में रोता हुआ देखा नहीं है

 

डॉ सूर्या बाली ‘सूरज’

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 7, 2014 at 12:34am

डॉक्टर साहब इस ग़ज़ल के कई शेर मसल की तरह प्रयोग किये जाने योग्य हैं. हार्दिक बधाई स्वीकारें.

और, मंच पर आपकी आमद .. साहब आँखें जुड़ा गयीं.

शुभ-शुभ

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 23, 2014 at 10:32am

गुज़ारी है वफ़ादारों में सारी उम्र मैंने

दग़ा करना किसी से भी मुझे आता नहीं है-  वाह ! दिल की सच्चाई बयाँ जो की है, इसमें शक हमें करना नहीं है 

दग़ा मक्कारी धोका झूठ तेरी बेवफ़ाई

समझता है मेरा दिल भी कोई बच्चा नहीं है |  - वाह ! वाह ! और वाह ! 

उम्दा गजल रचना के लिए शुक्रिया डॉ सूर्या बाली "सूरज" साहब 

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 22, 2014 at 9:50pm

गोपाल जी, लक्ष्मण जी, राजेश कुमारी जी, अभिनव जी जितेंद्र जी गिरिराज जी आप सभी तहे दिल से शुक्रिया ! थोड़ा मशरूफ़ियत है आजकल ज़िंदगी में लेकिन जल्दी ही मंच पर फिर से वापस आऊँगा पहले की तरह । आप सब अपना स्नेह और आशीर्वाद बनाए रखिए! आभार!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 22, 2014 at 7:24pm

दग़ा मक्कारी धोका झूठ तेरी बेवफ़ाई

समझता है मेरा दिल भी कोई बच्चा नहीं है

 

मेरा हँसना तो देखा है सभी ने खूब ‘सूरज’

मगर तनहाई में रोता हुआ देखा नहीं ------- बहुत बहुत बधाइयाँ आदरणीय, लाजवाब ग़ज़ल के लिए ॥

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 22, 2014 at 10:03am

तुम्हारे बाद भी आए बहुत से लोग लेकिन

मेरे दिल के करीब इतना कोई आया नहीं है..........वाह ! बहुत सुंदर ख्याल

बहुत सुंदर गजल कही आपने, दिली बधाई लीजियेगा आदरणीय डा.सूर्या साहब

 

Comment by Abhinav Arun on June 22, 2014 at 7:19am
क्या कहने डॉ साहिब शानदार ग़ज़ल , दिली मुबारकबाद !!
Comment by umesh katara on June 21, 2014 at 5:43pm

बेहतरीन गज़ल वाहहहहहहह


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 21, 2014 at 10:10am

ढेरों दाद कबूलें आ० बाली जी ,बहुत दिनों बाद आपकी ग़ज़ल ओबिओ पटल पर आई है क्या खूब लिखा है ..बहुत खूबसूरत मुसल्सल ग़ज़ल हुई है,हर अशआर प्रभावित कर रहा है किसी एक की क्या बात करूँ |इस ग़ज़ल को पढ़कर दो बातें दिल में आई सो साझा करना चाहूंगी ---मतले के  सानी में  --यहाँ जो दिख रहा वो दोस्तों होता नहीं है ,या यहाँ जो देखते वो दोस्तों होता नहीं है ----करें तो ??

मकते में ----तेरा हँसना तो देखा है करें तो ??  ये सिर्फ मेरी सोच भर है कृपया अन्यथा न लें ..आप जैसे ग़ज़ल कार  के सम्मुख मेरा ज्ञान तो गौण है |

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 21, 2014 at 9:44am

आ० बाली जी बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल हुई है इसके लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 20, 2014 at 1:31pm

बाली जी

बहुत अच्छी गजल कही आपने i आपको शत -शत  बधाई i

कृपया ध्यान दे...

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