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212 1222 212 1222

हर अदा, हवाओं की शोखियाँ समझती हैं

बेखबर नहीं सबकुछ पत्तियाँ समझती हैं

 

थरथराने लगती हैं इक ज़रा छुअन से ही

बागबाँ है या भँवरे डालियाँ समझती हैं

 

दर्द कितना है कैसा लग रहा है मुझको ये

मेरे ज़ख़्म से लिपटी पट्टियाँ समझती हैं

 

आजकल निगाहों को क्या हुआ ज़माने की

तज़्रिबे को चेहरे की झुर्रियाँ समझती हैं

 

हसरतें हदों को ही भूलने लगी हैं आज

फिक्र को बड़ों की वो बेड़ियाँ समझती हैं

 

ख़ौफ़ के मनाज़िर को सुब्ह की ख़बर मे यूँ

दौड़ती हुई नज़रें सुर्खियाँ समझती हैं

 

गर दुआ भी दी जाये तो बुरा लगे है क्यूँ

नफ़रतें मुहब्बत को गालियाँ समझती हैं

 

क्यूँ उन्हें मेरी बातों से शिकायतें इतनी

हाले दिल मेरा मेरी सिसकियाँ समझती हैं

-मौलिक व अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on June 3, 2014 at 3:18pm

आदरणीय सौरभ सर आपका तहेदिल से शुक्रिया, मैं निजी व्यस्तता के चलते तरही मुशायरे में शामिल न हो सका।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 3, 2014 at 12:49pm

क्या बात है !

दाद दाद दाद !

क्या तरही मुशायरे में इस ग़ज़ल को शामिल करने से रह गये थे ?


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 29, 2014 at 10:07am

जनाब नादिर भाई आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 29, 2014 at 10:07am

आदरणीय गोपाल नारायण सर रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 29, 2014 at 10:06am

आदरणीय डॉ आशुतोष सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 29, 2014 at 10:06am

आदरणीय जितेन्द्र भाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 29, 2014 at 10:05am

आदरणीय वंदना जी ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 29, 2014 at 10:04am

आदरणीया मीना जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 29, 2014 at 10:04am

आदरणीया कुन्ती जी आप जैसे वरिष्ठ रचनाकारों की सराहना हमेशा उत्साह बढ़ाती हैं बहुत बहुत शुक्रिया आपका


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 29, 2014 at 10:03am

भाई चन्द्रशेखर जी आपका हार्दिक आभार

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