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गजल अश्‍क

212   212     212    212

गीत उसके लिखे गुनगुनाता रहा
हाल दिल का सभी को बताता रहा

ये उदासी भरी जिन्‍दगी क्‍योंं मिली
सोच कर अश्‍क मैं तो  बहाता रहा

हम को उसके शहर में मिली मौत थी
लाश अपने शहर में जलाता रहा

चाँद में दाग है चाँदनी में नही
बात दिल को यही मैं बताता रहा

प्‍यार से चल सके ना कदम दो कदम
जाम पी पी तुझे तब भुलाता रहा 

मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी

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Comment by Akhand Gahmari on May 23, 2014 at 4:25pm

आपके उत्‍साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के हम सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्‍वीकार करे आदरणीय डा गोपाल नारायण श्रीवास्‍तव जी

Comment by Akhand Gahmari on May 23, 2014 at 4:25pm

आपके उत्‍साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के हम सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्‍वीकार करे आदरणीय gumnaam pithoragarhi जी

Comment by Akhand Gahmari on May 23, 2014 at 4:25pm

आपके उत्‍साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के हम सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्‍वीकार करे आदरणीया Sarita Bhatia जी

Comment by Akhand Gahmari on May 23, 2014 at 4:25pm

आपके उत्‍साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के हम सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्‍वीकार करे आदरणीयाMeena Pathak  जी

Comment by Akhand Gahmari on May 23, 2014 at 4:25pm

आपके उत्‍साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के हम सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्‍वीकार करे आदरणीयाSarita Bhatia  जी

Comment by Akhand Gahmari on May 23, 2014 at 4:24pm

आपके उत्‍साहवर्धन एवं मार्गदर्शन के हम सदैव आकांक्षी है मेरा प्रणाम स्‍वीकार करे आदरणीय गिरिराज भंडारी जी

Comment by gumnaam pithoragarhi on May 20, 2014 at 8:38pm

बहुत खूब सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर...............

Comment by gumnaam pithoragarhi on May 20, 2014 at 8:38pm

बहुत खूब सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर...............

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 20, 2014 at 5:12pm

गहमरी जी

आपकी रचना केनिरंतर  बढ़ते स्तर पर आपको बधाई i  

Comment by Meena Pathak on May 20, 2014 at 6:59am

क्या बात है ... बहुत खूब .. बधाई आप को | सादर 

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