For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चाँद मुझे तरसाते क्यूँ हो ?

चाँद मुझे तरसाते क्यूँ हो ?

 

तुम सुंदर हो , तुम भोले हो

नटखट तुम हो बहुत सलोने ।

रूठ - रूठ जाते क्यूँ मुझसे ?

छुप छुप कर बादल के कोने ।

तुम बादल से झांक झांक कर, अपना रूप दिखाते क्यूँ हो

चाँद मुझे तरसाते क्यूँ हो ?

मुझसे स्नेह नहीं है, मानूँ –

तुम छुप जाओ नज़र न आओ ।

चंद्र बदन ढँक लो तुम अपना

मेरी बगिया नज़र न आओ ।

आँख मिचौली खेल खेल कर, रह रह मुझे रिझाते क्यूँ हो

चाँद मुझे तरसाते क्यूँ हो ?

इस आँगन मे आ इतराते

कभी झरोखे से झाँको तुम ।

ऐसा लगता मुझको हर पल –

मौन निमंत्रण हो देते तुम ।

ऐसी बात नहीं गर बोलो , चंद्र किरण बिखराते क्यूँ हो ?

चाँद मुझे तरसाते क्यूँ हो ?

.

----- मौलिक एवं अप्रकाशित -----

Views: 512

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 2, 2014 at 10:13pm

बहुत सुंदर, मनभावन रचना आदरणीय ब्रह्मचारी जी. हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 2, 2014 at 8:08pm

बहुत सुन्दर गीत रचना | हार्दिक बधाई श्री ब्रह्मचारी जी 

Comment by annapurna bajpai on April 2, 2014 at 2:36pm

बहुत खूब !! आ0 ब्रम्ह्चारी जी , बधाई आपको इस रचना के लिए । 

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on April 2, 2014 at 8:38am
चंद्र, उसकी रूप लावण्यता तथा उसके कृत्यों से निर्मित अप्रतिम दृश्य का मनोहारी वर्णन किया है आपने। बधाई आदरणीय ब्रह्मचारी जी!
Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 1, 2014 at 4:30pm

आदरणीय ब्रम्हचारी सर ...इसे रचना को गुनगुनाने में बहुत आनंद आया ..मेरी तरफ से तहे दिल बधाई स्वीकार करीं सादर 

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on April 1, 2014 at 11:28am

ऐसा लगता मुझको हर पल –

मौन निमंत्रण हो देते तुम ।

ऐसी बात नहीं गर बोलो , चंद्र किरण बिखराते क्यूँ हो ?

चाँद मुझे तरसाते क्यूँ हो ?

नटखट  चाँद पर सुंदर रचना, हार्दिक बधाई 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 1, 2014 at 11:04am

आ0 बृह्मचारी जी, वाह!  बहुत खूबसूरत भाव, अच्छा लगा। बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by Neeraj Neer on April 1, 2014 at 9:26am

बहुत सुन्दर ..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
6 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service