For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये ग़ज़ल नहीं है देश का बयान है

ये  ग़ज़ल नहीं है देश का बयान है, 

डूबते जहाज की ये दास्तान है।

लुट रही है कहकहाें के बीच अाबरु, 

धर्तीपुत्र अाज माैन, बेजुबान है।

गर्व था उन्हें कि बन गये जगतपिता, 

गर्भ में ही मर चुका वाे संविधान है। 

हम ताे नेक हैं ये बाेलता है हर काेई, 

हर काेई कहे कि मुल्क बेइमान है। 

घर ताे बन गया मगर वाे साे नहीं सके, 

बेघराें के बीच घर जाे अालिशान है। 

लाेग पूछते हैं कैसे खण्डहर बना ? 

दिल किसी किले की भाँति सूनसान है।

कृष्णसिंह पेला

(माैलिक व अप्रकाशित)

Views: 775

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Krishnasingh Pela on April 18, 2014 at 10:17pm

धन्यवाद अा.भुवन जी अापने इस गजल की मात्रात्मक संरचना का उल्लेख कर इस के वाचन काे काफी सहजता प्रदान की है ।  

Comment by भुवन निस्तेज on April 18, 2014 at 8:10pm

यह गजल २१२१ २१२१ २१२१ २ मात्रा पर रचित है...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 8, 2014 at 2:59pm

कुछ तकनीकी कारणों से मेरी प्रतिक्रिया आपको नहीं दिख रही होगी, अन्यथा वह आपके ही पोस्ट पर उपलब्ध है, आदरणीय.

सादर

Comment by Krishnasingh Pela on April 8, 2014 at 2:57pm

अादरणीय  Saurabh Pandey साहब इस गजल पर अापकी प्रतिक्रिया पाकर मैं धन्य हाे गया था । मैने पढा भी था परंतु अभी दुर्भाग्यवश अापकी प्रतिक्रिया दिखाइ नहीं दे रही है । माफ कीजिएगा मैं अापके अाेबीअाे प्राेफाइल से उक्त प्रतिक्रिया काे copy कर के यहाँ paste कर रहा हूँ : 

"एक कामयाब कोशिश के लिए बहुत-बहुत बधाई, आदरणीय. इन अश’आर पर विशेष बधाइयाँ -

हम ताे नेक हैं ये बाेलता है हर काेई, 

हर काेई कहे कि मुल्क बेइमान है। 

घर ताे बन गया मगर वाे साे नहीं सके, 

बेघराें के बीच घर जाे अालिशान है। 

लाेग पूछते हैं कैसे खण्डहर बना,

 दिल किसी किले की भाँति सूनसान है ।"

गजब ! 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 8, 2014 at 3:56am

एक कामयाब कोशिश के लिए बहुत-बहुत बधाई, आदरणीय.

इन अश’आर पर विशेष बधाइयाँ -

हम ताे नेक हैं ये बाेलता है हर काेई, 

हर काेई कहे कि मुल्क बेइमान है। 

 

घर ताे बन गया मगर वाे साे नहीं सके, 

बेघराें के बीच घर जाे अालिशान है। 

 

लाेग पूछते हैं कैसे खण्डहर बना ? 

दिल किसी किले की भाँति सूनसान है।

ग़ज़ब !

Comment by Krishnasingh Pela on April 6, 2014 at 8:21pm

अादरणीय  BHUWAN NISTEJ जी,  coontee mukerji जी,  गिरिराज भंडारी जी, एवम्  विजय मिश्र  जी, अाप लाेगाें का बहुत बहुत अाभार । अा‍. गिरिराज भंडारी जी इस गज़ल की मात्रात्मक संरचना २१ २१ २१ २१ २१ २१ २ है । अब इनकाे अागे पीछे कैसे संयाेजन कर के काैन से बह्र का नाम दें यह अलग बात है । 

Comment by विजय मिश्र on April 1, 2014 at 3:45pm
हकीकत में आपने बेरुखी से देश के हालात की अच्छी बयानी कियी है | अनेक बधाई श्रीकृष्णजी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 1, 2014 at 10:43am

आदरणीय कृष्ण सिंग भाई , सुन्दर गज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ , बह्र का उल्लेख ज़रूर कर दिया कीजिये ॥

Comment by coontee mukerji on March 31, 2014 at 5:13pm

हम ताे नेक हैं ये बाेलता है हर काेई, 

हर काेई कहे कि मुल्क बेइमान है। .....बहुत खूब.

Comment by भुवन निस्तेज on March 30, 2014 at 8:17am

घर ताे बन गया मगर वाे साे नहीं सके, 

बेघराें के बीच घर जाे अालिशान है। 

लाेग पूछते हैं कैसे खण्डहर बना ? 

दिल किसी किले की भाँति सूनसान है।

क्या कहना

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service