For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : तुम्हारे लिए जश्न हाेगा ये मेला

सभी रास्ताें पर सिपाही खटे हैं 

ताे फिर लाेग क्याें रास्ते से हटे हैं । 

सियासत अाै मज़हब की दीवारें देखाे 

दीवाराें से ही लाेग गुमसुम सटे हैं । 

सरहद है सराें के लिए अाखरी हद 

अकारण यहाँ पर कई सर कटे हैं । 

चमकती फिसलती हैं कारें महंगी 

मगर अादमीयत के जूते फटे हैं । 

जिन्हें मुल्क बरबाद करने की जिद थी

वही लाेग सिंहासनाें पर डटे हैं । 

तुम्हारे लिए जश्न हाेगा ये मेला 

मुझे बेचने कुछ चने चटपटे हैं । 

(माैलिक व अप्रकाशित)

Views: 1057

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Krishnasingh Pela on April 23, 2014 at 2:47am
आ. चन्द्र शेखर जी हार्दिक आभार ।
इस मिसरे में वर्णों पर कुछ ज्यादा stress जरूर पडा है । इसे कहते या गुनगुनाते वक्त
"इ सद् पर् , क ई बे, क सूर् सर्, क टे हैं"
अर्थात "१ २ २, १ २ २, १ २ २, १ २ २"
इस तरह मिलाने की कोशिष की थी । सायद ज्यादा तोड मरोड कर दिया लगता है ।
Comment by Krishnasingh Pela on April 23, 2014 at 2:30am
आ. Dr.Prachi Singh जी आपने ग़ज़लको सराहा तो हमें लगा कि यह कोशिष कामयाब रही । बाबह्र करने की कोशिष के बावजुद कसर रह गयी होगी । दोषपूर्ण स्थानों से अवगत करा देते तो सुधार व परिमार्जन करने का अवसर मिल जाता ! सादर ।
Comment by Krishnasingh Pela on April 22, 2014 at 11:48pm
आदरणीय umesh katara जी हार्दिक आभार !
Comment by Krishnasingh Pela on April 22, 2014 at 11:46pm
आदरणीय Sachin Dev जी हौसला आफजाइ के लिए हार्दिक आभार ।
Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on April 22, 2014 at 9:12am

ग़ज़ल बहुत अच्छी है साद्गी से कही गयी गहरी बातें दिल को छू जाती हैं। 

इस हद पर कई बेकसूर सर कटे हैं । 

 यहाँ थोड़ी बहर की समस्या दिख रही है, कृपया देख लें, । सादर।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 22, 2014 at 9:09am

सभी अश'आर पसंद आये ... बहुत सलीके से कहन को शब्द मिले हैं 

जिन्हें मुल्क बरबाद करने की जिद थी

वही लाेग सिंहासनाें पर डटे हैं । ...................क्या खूब कहा है!

कुछ मिसरे बहर से थोड़ा इधर उधर लगे 

इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

Comment by umesh katara on April 20, 2014 at 8:22am

सुन्दर ग़ज़ल भाई जी वाहह 

Comment by Krishnasingh Pela on April 17, 2014 at 8:58pm

इस  ग़ज़ल  के तीसरे शेर का उला इस प्रकार था : 

"सरहद है सराें के लिए अाँखरी हद" 

अादरणीय  भुवन निस्तेज जी ने मेसेज में जाे सुझाया था उसके पश्चात  मैने इसे संशाेधन कर के निम्नानुसार बनाया है : 

"है सरहद सराें के लिए अाखरी हद" 

रचनात्मक सुझाव के लिए अादरणीय भुवन जी के प्रति हार्दिक अाभार । 

Comment by Krishnasingh Pela on April 16, 2014 at 10:53pm

अादरणीय  जितेन्द्र 'गीत' जी हार्दिक धन्यवाद । अापने इन लफ्जाें काे इतना महत्व दिया । मैं अाभार प्रकट करते हुए काफी अानंदित हाे रहा हूँ ।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 15, 2014 at 11:16pm

बहुत सुंदर गजल कही आपने आदरणीय कृष्णा जी, हर एक शेर लाजवाब हुआ

तुम्हारे लिए जश्न हाेगा ये मेला 

मुझे बेचने कुछ चने चटपटे हैं । ...........दिली बधाई स्वीकार करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service