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बाल साहित्य - कह-मुकरियाँ ........ इमरान खान

सुन्दर गबरू छैल छबीला,
प्यारी काया बदन गठीला,
भागै खाकर मेरा कोड़ा,
ऐ सखि साजन? न सखि घोड़ा।  (१)

नाचै गावै सबको भावै,
कभी किसी के हाथ न आवै,
छुप जाता है जैसे चोर,
ऐ सखि साजन? नहीं सखि मोर।  (२)

सारी दुनिया ही जग जावे,
जब वो रोज़ अज़ान लगावे।
मेरा प्यारा, रब का गुर्गा,
ऐ सखि साजन? न सखि मुर्गा।  (३)

अगर उसे आवाज़ लगाऊँ,
निकट सदा पल भर में पाऊँ।
रातों मेरी रक्षा करता,
ऐ सखि साजन? न सखि कुत्ता।  (४)

गहरी नीली आँखों वाला,
मन का उजला तन का काला।
खाने में करता है नखरा,
ऐ सखि साजन? न सखि बकरा।  (५)

छोटा है पर मुझको प्यारा,
उस पर लाड लुटा दूँ सारा,
अदभुत उसके अन्दर जोश,
ऐ सखि साजन? नहीं खरगोश।  (६)

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

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इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई

कह-मुकरियाँ पसंद करने के लिए मैं आपका शुक्रगुज़ार हूँ श्याम नारायण साहब.

सुन्दर प्रस्तुति ... हार्दिक बधाई

नाचै गावै सबको भावै, 
कभी किसी के हाथ न आवै, 
छुप जाता है जैसे चोर,
ऐ सखि साजन? नहीं सखि मोर।

सुन्दर प्रस्तुति भईया, हार्दिक बधाई!

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