For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- रंग हैं क्यों सात मत पूछो - पूनम शुक्ला

2122. 2122 2

कहनी क्या थी बात मत पूछो
कब ढ़लेगी रात मत पूछो

जिन्दगी ने खेल है खेला
किसने दी है मात मत पूछो

थाम कर तुम को चले थे हम
कब थमेगी रात मत पूछो

बैठ हँसते हर तरफ जाबिर
देश के हालात मत पूछो

देखना तासीर भी उनकी
आदमी की जात मत पूछो

जौफ़ ही है हर तरफ बरहम
रंग हैं क्यों सात मत पूछो

है यहाँ हर राह सरगश्ता
क्यों नहीं प्रभात मत पूछो

तासीर- गुण ,प्रभाव
जाबिर - अन्यायी,ज़ालिम
जौफ़ - खोखलापन
बरहम - कुपित
सरगश्ता - भटका हुआ

पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 692

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Poonam Shukla on February 27, 2014 at 12:00pm
प्राची जी आप क्या कहना चाह रही हैं समझ नहीं आया ।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 21, 2014 at 7:19pm

छोटी बह्र पर सुन्दर ग़ज़ल प्रस्तुत की है आ० पूनम जी 

जिन्दगी ने खेल है खेला
किसने दी है मात मत पूछो..........ये शेर बहुत पसंद आया 

मकते के शेर में "क्यों नहीं प्रभात मत पूछो" तक्तीअ दुबारा कर लें 

इस सुन्दर प्रस्तुति  के लिए बहुत बहुत बधाई 

Comment by अनिल कुमार 'अलीन' on February 16, 2014 at 9:57pm

सुन्दर .........................अति सुन्दर............ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 15, 2014 at 12:14pm

आदरणीया पूनम जी ..उर्दू के शब्दों के आत्मसात से लिखी गयी बेहतरीन ग़ज़ल ..सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 15, 2014 at 7:31am

आदरणीया पूनम जी , गज़ल बहुत सुन्दर कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by ram shiromani pathak on February 14, 2014 at 10:28pm

बहुत ही प्यारी ग़ज़ल आदरणीया हार्दिक बधाई आपको 

Comment by Shyam Narain Verma on February 14, 2014 at 5:24pm
बहुत बढ़िया गजल बधाई आपको । 
Comment by Meena Pathak on February 14, 2014 at 4:28pm

बहुत सुन्दर गज़ल .. बधाई पूनम जी 

Comment by नादिर ख़ान on February 14, 2014 at 3:44pm

जिन्दगी ने खेल है खेला
किसने दी है मात मत पूछो

थाम कर तुम को चले थे हम
कब थमेगी रात मत पूछो

आदरणीया पूनम जी कोमल शब्दों मे बहुत अच्छी  गज़ल कही अपने  .... डेरों बधाइयाँ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service