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ग़ज़ल - वही जाने रज़ा उसकी - पूनम शुक्ला

1222. 1222

दिखी अबकी सबा उसकी
कहीं गुम थी सदा उसकी

ठिकाना ढ़ूँढ़ते थे हम
बताने को ज़फा उसकी

लगा वो अब तलक अबतर
न देखी थी सफ़ा उसकी

कहाँ था आज तक अनवर
छुपी क्यों थी वफा़ उसकी

हमें मालूम हो कैसे
वही जाने रज़ा उसकी

पूनम शुक्ला
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 31, 2014 at 3:16pm

छोटे बह्र में बढिया प्रयास .. बधाई हो..

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 24, 2014 at 11:08am

आदरणीया पूनम जी बहुत ही अच्छी ग़ज़ल कही है आपने बधाई स्वीकारें.

Comment by नादिर ख़ान on January 23, 2014 at 10:08pm

छोटे बाहर की उम्दा गज़ल, बहुत खूब... अदरणीया पूनम जी ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 23, 2014 at 8:45pm

आदरणीया पूनम जी , बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 23, 2014 at 8:21am

आदरणीय पूनम जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई . हार्दिक बधाई . वंदना जी कि बात पर भी गौर करें .

Comment by vandana on January 23, 2014 at 7:20am

बढ़िया ग़ज़ल आदरणीया पूनम जी आपने बहुत से उर्दू शब्दों का प्रयोग किया है जो खूबसूरती उत्पन्न कर रहे हैं किन्तु सभी लोग उर्दू के इन शब्दों से परिचित हो जाएँ इसके लिए यदि शब्दार्थ भी दिए जाएँ तो सुविधा होगी 

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