For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नेकनीयती वृन्द के, मुरझाये..….हैं फूल |

कहकर पुष्प गुलाब का, दिए सैकड़ों शूल ||

 

बही नाव……..पतवार भी, तूफानों की धार |

बढ़ा प्रेम तब सरित का, जब पाया मँझधार ||

 

कुल की करुणा कान में, बोली थी चुपचाप |

देख समय सूरज चढा, तू भी इसको भाप ||

 

अवसर का उपहास है, अनजाने ही हार |

भोग रहे पीड़ा कई, गए समय की मार ||

 

कागज़ पर लिखता रहा, विरह प्रेम के गीत |

जुडी कलम की छंद से, अनजाने ही प्रीत ||

 

तप कर भी सूरज ढले, सांझ ढले चुपचाप |

मर्यादा है......वक्त की, शीतलता अरु ताप ||

 

बोले शब्द चुनाव कर, फिर भी पायी हार |

तत्परता ने हर लिया, शब्द-शब्द का प्यार ||

 

लुप्त हुआ प्रतिबिम्ब भी, ज्यों ही आयी रात |

फ़ैला था वह शाम को, जाने क्या थी बात ||

 

रदपट का हिलना लगे, सबको तब ही ख़ास |

जहाँ टूटती आस में, लौटा हो.........विश्वास ||

 

मौलिक/अप्रकाशित.

Views: 781

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on February 16, 2014 at 11:26pm

तप कर भी सूरज ढले, सांझ ढले चुपचाप |

मर्यादा है......वक्त की, शीतलता अरु ताप ||

प्रिय अशोक भाई एक से बढ़ कर एक , दोहे संजोने  लायक , सौरभ भाई ने सच ही कहा मोती हैं
माँ सरस्वती  की कृपा बनी रहे
भ्रमर ५

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 19, 2013 at 11:10pm

आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, रचना पर आपके आशीष ने  मेरे रचना कर्म को बल दिया है. आपकी व्यस्तता का मुझे भान है. मैंने देखा है जब आपने फुरसत पाकर रात के दो बजे भी रचनाओं पर प्रतिक्रियाएं दी हैं.  जी भाँप शब्द सही है, किसी कारणवश वह दोहा अधपका रह गया. आपका और माँ शारदे का आशीष रहे मेरा रचना कर्म जारी रहेगा. सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 19, 2013 at 5:05pm

आदरणीय अशोकभाईजी, ऐसी रचनाओं पर विलम्ब से आना स्वयं मुझे ही खलता है और अपनी व्यस्तता पर अकथ क्षोभ होता है.

एक-एक दोहा मोती है. और इन मोतियों से आपने प्रस्तुति की बहुत ही खूबसूरत माला बनायी है. इस माला को मन बार-बार पहन रहा है और मुग्ध है.
कई दोहे आपकी उच्च सोच का बखान कर रहे हैं और मैं बार-बार पढ़ रहा हूँ. बार-बार का अर्थ बार-बार ही लगायें, आदरणीय. वस्तुतः मुग्ध हूँ.

इस अवर्णनीय मुग्धता के बावज़ूद एक बात कहनी है ! बस एक बात..

दोहे में प्रयुक्त सही शब्द भाँप होगा, न कि भाप. बस


हृदय से बधाई और शुभकामनाएँ आदरणीय
आपसे शीघ्र ही और-और सुनने की प्रतीक्षा है..  
सादर

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 14, 2013 at 8:23am

आदरणीय विजय निकोर साहब सादर प्रणाम, आपकी प्रतिक्रिया से रचना को बल मिला. सादर आभार !

Comment by vijay nikore on December 13, 2013 at 11:50pm

अति सुन्दर दोहे। बधाई।

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 13, 2013 at 1:26pm

आदरणीया डॉ. प्राची जी सादर, आपसे दोहावली पर मिली प्रतिक्रया ने रचनाकर्म को सार्थकता प्रदान की है. आपका कोटिशः आभार !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 13, 2013 at 9:49am

आदरणीय अशोक रक्ताले जी 

बहुत सुन्दर मन भावन, भावप्रवण दोहावली प्रस्तुत की है.. सभी दोहे बहुत पसंद आये.

नेकनीयती वृन्द के, मुरझाये..….हैं फूल |...........नेकनीयती वृन्द के .....वाह बहुत सुन्दर 

कहकर पुष्प गुलाब का, दिए सैकड़ों शूल ||

कागज़ पर लिखता रहा, विरह प्रेम के गीत |

जुडी कलम की छंद से, अनजाने ही प्रीत ||..............अपने दिल की बात कह दी..बहुत सुन्दर

आपकी प्रविष्टियों की प्रतीक्षा रहती है आदरणीय 

इस दोहावली पर सादर बधाई स्वीकारें 

 

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 12, 2013 at 10:16pm

आदरणीया अन्नपूर्णा बाजपाई जी सादर, दोहे पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार. रचना कर्म सार्थक हुआ.सादर.

Comment by annapurna bajpai on December 12, 2013 at 8:57pm

आ० अशोक रक्ताले जी बहुत सुन्दर दोहे , सच मे मन को मोहे , बधाई आपको । 

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 11, 2013 at 10:27pm

आदरणीया मीना पाठक जी आदरणीय गिरिराज  भंडारी साहब भाई राम  पाठक जी आप सभी का दोहों को पसंद करने के लिए हार्दिक आभार.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
28 seconds ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
2 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
14 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
14 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
15 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
16 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
20 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार बहुत शुक्रिया आपने वक़्त निकाला बहुत आभारी हूँ आपका आपने बहुत माकूल इस्लाह…"
1 hour ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय विकास जी। मतला, गिरह और मक़्ता तो बहुत ही शानदार हैं। ढेरो दाद और…"
1 hour ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलक राज जी सादर अभिवादन, ग़ज़ल के हर शेअर को फुर्सत से जांचने परखने एवं सुझाव पेश करने के…"
1 hour ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. जयहिंद रायपुरी जी, अभिवादन, खूबसूरत ग़ज़ल की मुबारकबाद स्वीकार कीजिए।"
3 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, सादर अभिवादन  आपने ग़ज़ल की बारीकी से समीक्षा की, बहुत शुक्रिया। मतले में…"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service