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छोड़ दी है हमने दुनिया तेरी ख़ुशी के लिए ---ग़ज़ल

छोड़ दी है हमने दुनिया तेरी ख़ुशी के लिए 

जी ना सकेंगे अब हम किसी के लिए

तेरा मिलना बिछड़ना तो एक ख्वाब था 

हम तो तरसते रहे तेरी हंसी के लिए

तेरी जुदाई से बढ़कर कोई गम नहीं 

जख्म काफी है ये ही मेरी जिंदगी के लिए

जिसे खुदा माना उसी ने ना समझा अपना 

अब कोई खुदा नहीं यहाँ बंदगी के लिए

बहुतो को क़त्ल होते देखा उसके हाथों तो जाना 

बहुत नाम कमाया है उसने अपनी दरंदगी के लिए

फिर आज एक हसीं को क्या देखा तो यूँ लगा "सागर' 

अब तक क्यों रो रहे थे हम एक गंदगी के लिए

    मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Admin on December 9, 2013 at 3:31pm

आदरणीय डॉ अनुराग सैनी जी, ओ बी ओ सीखने सिखाने का मंच है और एक साहित्यिक वातावरण का निर्माण बहुत ही प्रयत्न पूर्वक  किया गया है, आपकी टिप्पणियां और व्यवहार असंयत है जो इस साहित्यिक वातावरण के प्रतिकूल है । 

प्रबंधन द्वारा आपकी सदस्यता समाप्त करने का निर्णय लिया गया है, अनुरोध है कि इस मंच पर प्रस्तुत आप अपनी रचनाओं को सुरक्षित कर लें । अगले ४८ घंटों के पश्चात आपकी सदस्यता समाप्त कर दी जायेगी । 

सादर ।  

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on December 8, 2013 at 8:34pm

काफी समय के बाद आज ऑनलाइन हुआ हूँ तो आपका सन्देश पढ़ा , अभी भी ये समझ से बहार की बात है की आप मेरी एक टिपण्णी के सन्देश को नहीं समझ पाए , क्या ये सच नही है की कोई भी रचनाकार अपनी सहूलियत के हिसाब से नियम बनाता है या नही  ? नियम किसने बनाए और कैसे ?क्या नियमो का परिमार्जन आवश्यक नही है ? रचनाकार के दिल में लेखन की जो भूख होती है वो किसके लिए होती है ? पाठक को संतुष्टि और आनंद के साथ साथ उसके ज्ञान और अनुभव को बढाने में सहायक होती है  और एक बात की लेखन में ग़ज़ल जो विधा है वो किसी एक थीम से बंधी हुयी नही है , महोदय आपको बुरा जरुर लगेगा मगर गौर जरुर फरमाईयेगा 

सादर !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 22, 2013 at 12:08am

इस मंच पर एक विशेष वातावरण है और उसी वातावरण का यह नतीज़ा है कि कई नयी उम्र के उत्साही रचनाकार शिल्प आदि की समझ को ध्यान में रख कर इस वातावरण का हिस्सा बनने के लिए खिंचे चले आ रहे हैं. गंभीर सोचों और सतत अभ्यास में निरत कर्मठ सदस्यों से यह परिवार धनी होता जा रहा है.

इस वातावरण की पवित्रता के लिए प्रबन्धन द्वारा भी समय-समय पर कई कदम उठाने पड़ते हैं. ऐसा वातावरण किसी अतार्किक विचार और बकवास की भेंट चढ़ जाय, यह तो नये-नये हुए सदस्य को भी बर्दाश्त नहीं होगा.  रचनाकर्म के नाम पर हुआ संप्रेषण शाब्दिक वमन नहीं होता, जबकि वमन कैसा भी हो कुछ न कुछ बाहर अवश्य आता है. 

भाई अनुराग जी, संभवतः आप पेशे से शिक्षक हैं. नई पीढ़ी दिशा पाने की अपेक्षा लिए आपके पास आती है. आपके व्यवहार और विचारों में अतार्किकता या कैजुअलनेस अत्यंत दुखदायी ही नहीं चौंकाने वाला है.

इस मंच के प्रबन्धन से मैं सादर अनुरोध करूँगा कि आपकी प्रस्तुतियों पर केवल नज़र ही नहीं रखे बल्कि आपके इस मंच पर होने के उद्येश्य के प्रति भी सचेत और आग्रही हो. 

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 21, 2013 at 10:14pm

आदरणीय अनुराग जी मैं इतना ही कहूँगा किसी भी रचना को शिल्प जाने बिना ग़ज़ल का नाम दे के न भ्रमित हों न भ्रमित करें, आपको एन्जॉय करना है बेझिझक कीजिये

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on November 21, 2013 at 8:59pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सबसे पहले तो धन्यवाद आपका मेरी हर रचना पर गौर करने के लिए 

अब आपके सवालों के जवाब ये है की आपने उन्मुक्त अभिव्यक्ति के बारे में तो जाना ही होगा मैं लेखन को एन्जॉय करता हूँ नियमो के कड़े बन्धनों में बांधकर नहीं जिता! वो तूफ़ान ही क्या जिसको सीमाये बाँध सकें !

आप समझ रहे होंगे , लेखन किसी भी समाज का एक दर्पण है जिससे लोग  सीखते है , मेरी हर रचना में एक सन्देश है समाज के लिए और मेरे लिए यही काफी है और जितनी सरलता से लोग समझ ले वही अच्छा है , आज भाग दौड़ भरी जिंदगी में किसी के पास इतना वक़्त नहीं है की वो नियम देखे लेखन के , नियम वो देखे जो सिर्फ साहित्य सेवा कर रहे है हम तो इसको सिर्फ एन्जॉय करेंगे !

सादर !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on November 19, 2013 at 9:45pm

आदरणीय सौरभ जी से सहमत..........


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 19, 2013 at 8:51pm

दो प्रश्न हैं आपसे -

आप क्यों लिखते हैं ?

आप कुछ भी लिख कर उसे ग़ज़ल क्यों कहते हैं ?

सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 19, 2013 at 5:52pm

आदरणीय गिरिराज जी के परामर्श पर आबश्यक रूप से ध्यान देवें .इस सुंदर प्रयास पर हार्दिक बधाई ..

फिर आज एक हसीं को क्या देखा तो यूँ लगा "सागर' 

अब तक क्यों रो रहे थे हम एक गंदगी के लिए.. क्या शब्द का प्रयोग मुझे कुछ अटपटा लग रहा है ..हो सकता है मेरी समझ में कोई कमी हो ..सादर बधाई के साथ 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on November 19, 2013 at 12:49pm

आदरणीय अनुराग जी भाव के लिए सादर बधाई

आगे आदरणीय गिरिराज सर जी सहमत हूँ

सादर शुभकामनाएं


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 18, 2013 at 10:03pm

आदरणीय अनुराग भाई , अति सुन्दर भावों और विचारों के लिये आपको हार्दिक बधाई !!!!!

गज़ल के शिल्प के लिहाज़ से अभी कमियाँ है !!! आदरनीय आपसे अनुरोध है आप गज़ल की बातें और गज़ल की कक्षा  का  ज़रूर अध्ययन करें , आप ज़रूर कामयाब होंगे !!!!

कृपया ध्यान दे...

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