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कुंडलिया छंद - लक्ष्मण लडीवाला

नारी पीड़ा सह रही, मन में है अवसाद,

संत वेश में घूमते, दुष्कर्मी आजाद  |

दुष्कर्मी आजाद, सताते नहीं अघाते 

करे नहीं परवाह,  गंदगी यूँ फैलाते |

राजनीति का मंच, भरे अपराधी भारी,   

हमको यही मलाल,कष्ट में अबला नारी |

(2)

गांधी के इस देश में, हिंसा है आबाद,

निरपराध है जेल में, सौदागर आजाद |

सौदागर आजाद, कर रहे भ्रष्टाचारी

इनमे है उन्माद, कष्ट में जनता सारी

जागरूकता रोक सके अपराधी आंधी,          

जनता पर ही भार,सहे न और दुख गांधी |

(मौलिक व् अप्रकाशित)

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 20, 2013 at 10:10am

जी आदरणीय मेरी जल्दबाजी की आदत छुट नहीं रही, अब पुनः यूँ संशोधित की जावे तो -

गांधी के इस देश में, हिंसा है आबाद,
निरपराध है जेल में, सौदागर आजाद |
सौदागर आजाद, कर रहे भ्रष्टाचारी
इनमे है उन्माद, कष्ट में जनता सारी
बने हम जागरूक, रुके अपराधी आंधी, 
लक्ष्मण समझे भार,अगर है दुख में गांधी |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 19, 2013 at 5:53pm

छंदोत्सव के आयोजनों में कुण्डलिया छंद के विधान और शब्द-विन्यास पर कई बार विस्तृत चर्चा हुई है. आपने तब-तब तदनुरूप अभ्यास करने की हामी भरी है. यह अलग बात है कि उन चर्चाओं के अनुसार पालन इस बार फिर नहीं हुआ है.  दूसरी कुण्डलिया दोष पूर्ण है. क्यों है, यह आप जानते ही हैं.

सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 19, 2013 at 10:02am

हार्दिक आभार श्री अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी और श्री विजय मिश्र जी 

Comment by बृजेश नीरज on November 18, 2013 at 11:45pm

बहुत सुन्दर कुण्डलियाँ! आपको हार्दिक बधाई!

दूसरी कुण्डलियाँ की आखिरी दो पंक्तियों का अर्थ मुझे स्पष्ट नहीं हुआ!

सादर! 

Comment by विजय मिश्र on November 18, 2013 at 4:36pm
कुंडलियाँ और निहित भाव दोनों ही आदर योग्य , बधाई लक्ष्मणजी
Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 18, 2013 at 2:39pm

पहली कुंडलिया बहुत ही अच्छी लगी बधाई लक्ष्मण भाई।

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 17, 2013 at 5:13pm

सादर आभार श्री राम शिरोमणि पाठक जी और श्री गिर्राज भंडारी जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 17, 2013 at 7:58am

आदरणीय लक्ष्मण भाई , शिल्प मै नही जानता , सुन्दर भावों के लिये आपको बधाई !!!!

Comment by ram shiromani pathak on November 17, 2013 at 12:10am

आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत सुन्दर कुण्डलिया। .. बहुत बहुत बधाई आपको

नारी पीड़ा सह रही, मन में है अवसाद,
संत वेश में घूमते, दुष्कर्मी अब आम ।///आदरणीय इसे पुनः देख लें

दुष्कर्मी अब आम, सरे राह ही सताते///////यहाँ गेयता भंग है

राजनीति आबाद, अपराध बढ़ रहे भारी।।।। इसे और ब्भी अच्छे तरीके से कहा जा सकता है

अपराधी आजाद, कर रहे भ्रष्टाचारी।।। आप क्या कहना चाह रहे है स्पस्ट नहीं लगा मुझे।।।।

सजग करे मतदान तभी रुक सकती आंधी,///मतदान करने से अंधी रुकती है क्या??/// सादर

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