For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मध्यप्रदेश के नर्मदांचल क्षेत्र, जो की पूर्वी निमाड़ व  मालवा से लगा हुआ है, में नवरात्रि के पश्चात्, विजयादशमी से लेकर शरद-पूर्णिमा तक एक उत्सव चलता है, जिसे " टेसू-उत्सव"  कहते हैं. इस उत्सव में छोटे खास तौर पर १० से १५ वर्ष तक की उम्र के लड़कों की खास भूमिका होती है.

हालाँकि आज की आधुनिकता ने जिस प्रकार से, पूरे भारतवर्ष की पुरानी प्रथाओं व् परम्पराओं पर गहरा असर डाला है, वैसे ही यह उत्सव भी अब कम ही देखने को मिलता है. आजकल के किशोरों और युवाओं के पास, समयाभाव भी है और वे फुर्सत के क्षणों में अन्य किन्हीं साधनों में व्यस्त रहना अधिक पसंद करते हैं. फिर भी यह उत्सव आज भी जीवित है और कुछ उत्साही युवक और किशोर इसमें प्रतिभाग करते हैं.

मैंने अपने बचपन में इस उत्सव को अपने मित्रों के साथ मनाया है. इस उत्सव में एक गीत भी गाते थे, जो आज,  उन्ही दिनों को सोचते हुए, याद आ गया.

विजयादशमी के दिन हम एक लकड़ी का पुतला बनाते थे. उसका चेहरा थोड़ा डरावना रखते थे. उसे पुराने कपडे पहनाकर, उसके मुंह में बीड़ी फसाकर, सर पर जलता हुआ  दीपक रख देते थे. विजयादशमी से शरद-पूर्णिमा तक, छ: दिनों तक, शाम के समय मोहल्ले में घर-घर जाकर, उसे सामने खड़ा करके, गीत गाते थे और हर घर से, गेहूं, चावल, अरहर की दाल, शुद्ध घी या कुछ नगद पैसे, जिसको जो देते बने, ले आते थे, कुछ लोग तो कुछ भी नही देते थे, और भगा देते थे..

शरद-पूर्णिमा की शाम को अंतिम दिन, सभी घर जाकर, तत्पश्चात उस पुतले याने टेसू.. को, लाठियों से पीटकर, तोड़ देते थे, तथा आग लगाकर, जला देते थे..

फिर छ: दिनों का इकट्ठा किया हुआ, सामान व पैसों से, सारे सदस्य दाल-बाटी, चूरमा बनाकर, खा लिया करते थे..

हर घर से भिक्षा मांगते हुए हम एक गीत गाते थे जिसकी पंक्तिया कुछ निम्न प्रकार से है..

   टेसू आया टेस से

  पैसे निकालो, जेब से

 मेरा टेसू यहीं खड़ा

खाने को मंगता,दही-बड़ा

दही-बड़े से ऊँचीं बात

कितने लोग तुमारे साथ

तीन सौ अस्सी,नोसौ सात

छल्ला बोली को छालो रे...

छल्ला-छल्ला बाकड़ा रे, तीकड़ा रे..

हनमान जी की गादी-ऐ,मरोडियो रे लाल पानी जाए

बीबी का तेरी कइयो रे, मियां गोते खाए

टेकरी पे टेकरी, मियां ने तोड़ी सांस

मियां की जल गई दड्डी तो, बीबी तोड़े दांत

घंटा-घर पे चार घडी

चारों में जंजीर पड़ी

जब जब घंटा बजता है

खड़ा मुसाफिर हँसता है

हँसते हँसते भाग गया

जोरू को लेके भाग गया

टेसू अच्छा होता तो, उसकी बहु लाते

बहु अच्छी होती तो , ऊँट पे बिठाते

ऊँट अच्छा होता तो , रेत पे चलाते

रेत अच्छी होती तो, गंगा बहाते

गंगा में डूब डूब न्हाते, मौज उड़ाते..

इस पूरे गीत को सभी लड़के, समूह में एक साथ गाते थे, जिस घर के लोग कंजूस या कुछ नही देते थे, वहां इसे छोटा कर दिया करते थे..

आज वो उत्साह और उल्लास के दिन बहुत याद आते हैं.

जितेन्द्र ' गीत '

(मौलिकव अप्रकाशित)

Views: 1302

Replies to This Discussion

यह तो नई पीढ़ी के आपसी सामन्जस्य ,मेल-जोल और समाज के हर घर से जुड़े रहने ,हर घर के सदस्यों के स्वभाव को जानते-समझते बड़े होने की सुंदर लौकिक परम्परा लगती है जिसमें समाजिक समरसता का पाठ बीज रूप में अंतरगर्भित है जो समय के साथ स्वेम ही विकसता होगा . बहुत सुंदर ध्येय अंतरनिहित है . शुभ विजय गीतजी .

सर्वप्रथम आपका दिली आभार, आदरणीय विजय मिश्र जी, आपने अपना अमूल्य समय देकर, मेरे प्रथम प्रयास पर, अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया से, मेरी लेखनी को बेहद मनोबल दिया, आशीर्वाद व् स्नेह यूँही बनाये रखियेगा..

नई पीढ़ियों की बात करें तो, आजकल कोई किसी से जुड़ना नही चाहता, हर नौजवान अति संवेदनशील होता जा रहा है, अपना खाली

वक़्त समाज,रिश्तों या परम्पराओं को निभाने की बजाय, अन्य साधनों में उलझा रहता है, अकेले ही बैठकर घंटो गुजार देता है, और जब वास्तविक समस्याएं सामने आकर खड़ी हो जाती है, तो निर्णय लेने की जगह, दूर भागने लगता है,

आदरणीय विजय जी बहुत सुदर होते थे पुराने पारम्परिक उत्सव !! उन्ही मे से एक का वर्णन आपने किया है !!! मुझे डर है कि टी व्ही  युग इन सब को खा न जाये , दुखद है कि आजकल के बच्चे ऐसे पारमपरिक उत्सवों के लिये समय नही निकाल पाते या नही निकालना चाहते !!! टेसू उत्सव के बारे मे जान कर अच्छा लगा , यह हमारे छत्तीस गढ के छेर छेरा उत्सव जैसी ही है !! इसमे भी ऐसे ही घर घर मांगने जाते है औत गीत गाते है !!!

पुरानी यादें ताज़ा करने के लिये आपका आभार !!!

आपकी उत्साहबर्धक प्रतिक्रिया हेतु , बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज जी, आशीर्वाद व् स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

वाह वाह आदरणीय बहुत सुन्दर प्रयास है आपका .........................सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई

आजकल बिना काम की व्यस्तता अधिक बढ़ गयी है बच्चों का बचपन सिमट गया है ...............न वो शोर रहा और न वो कलरव

नवयुग स्वार्थवादी परिकल्पना है जिसे लगभग सभी जी रहे हैं ,

अपनी यादें साझा करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय

आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय संदीप जी, आप बिलकुल सच कह रहे है, // बच्चों का बचपन सिमट गया है ...............न वो शोर रहा और न वो कलरव//..अपना स्नेह यूँही बनाये रखियेगा..

सादर!

आदरणीय जितेन्द्र भार्इजी,  आंचलिक किवदंतियों का विचार रूप में सुन्दर संस्कार और सोददेश्य रचना के लिए तहेदिल से बहुत-बहुत बधार्इ स्वीकारें। सादर,

आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय केवल जी, आपने मेरे प्रथम प्रयास पर ,अपना अमूल्य विचार देकर मेरे मनोबल को दोगुना किया, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा..

सादर!

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तमन्नाओं को फिर रोका गया है
"धन्यवाद आ. रवि जी ..बस दो -ढाई साल का विलम्ब रहा आप की टिप्पणी तक आने में .क्षमा सहित..आभार "
21 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
"आ. अजय जी इस बहर में लय में अटकाव (चाहे वो शब्दों के संयोजन के कारण हो) खल जाता है.जब टूट चुका…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. सौरभ सर .ग़ज़ल तक आने और उत्साहवर्धन करने का आभार ...//जैसे, समुन्दर को लेकर छोटी-मोटी जगह…"
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।  अब हम पर तो पोस्ट…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service