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वह माटी  थी पर नहीं थी वह  ...जिसे कुम्हार ने माजा चाक पे चढ़ाया, गढा, चमकाया बाजार  में बिठाया ... वह तो किस्मत की धनी थी पर वह ?  वह तो सिर्फ उसके बगिया की माटी  थी  उसके पैरों तले गाहे बगाहे आ जाती  ... कुचली जाती रही .. टूटती रही, खोदी जाती रही, तोडी जाती रही ..... और बदले में रंगबिरंगे फूलों से फलों से  अपनी हरियाली को सजा कर बगिया को महकाती रही .... यही तो था  उन् दोनों के अपने अपने हिस्से का आसमान .. लेकिन उन् दोनों के लिए एक आसमान से इतर एक दूसरा आसमान किसी बंद दरवाजे से बाहर भीतर खुलता था   .. एक वह जिसकी  चाहत थी टूट फूट कर बगिया की मिट्टी हो जाने की .. कैसे तोड़ता कुम्हार अपने शिल्प को जिसे गढा था उसने पुरजोर कोशिशों से अपनी रूह रख कर उस माटी में    .. और एक वह जो बगिया से बाहर  बाजार की चमक में दमकना चाहती थी एक आकार ले कर चाक में चढ़ना चाहती थी ...  कुन्हार कैसे करता उस माटी को बाजार में जिसकी खुशबू में वह जीता था ... आखिर कुम्हार की चाक बंद हो गयी, बगिया की देखभाल भी बंद हो गयी .. वह  कुम्हार दोनों के लिए न्याय गढते गढते मिट गया उन् दोनों पर ... और जल्द ही एक दिन खुद माटी हो गया ....  ...  उस दिन देखा था लोगो ने एक आसमान को टूट कर गिरते हुए ... उसके मेरे अभिप्राय में बिफरती माटी गुमनामी के अंधेरों में ख़ामोशी की तहों में सिमट गयी सदा के लिए ..........  ~nutan~

मौलिक अप्रकाशित 

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on August 8, 2017 at 9:33pm
बेहतरीन सृजन के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत बधाई आदरणीय टी का आसमान
डॉ. नूतन डिमरी गैरोला जी। आपकी अन्य रचनाएं अवश्य पढ़कर कुछ सीखने की कोशिश करूंगा। सादर
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 8, 2017 at 9:21pm

वाह बहुत सुंदर |

Comment by Chhaya Shukla on September 24, 2014 at 10:03am

गहन भाव सारगर्भित प्रस्तुति आपके चिन्तन को नमन ! बहन नूतन जी शुभकामनाएं 

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on September 24, 2014 at 5:24am

सादर धन्यवाद सभी मित्रों को ...शुभदिन 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 6, 2013 at 3:54pm

बहुत गहन भावों को प्रस्तुत करती यह लघुकथा आपके चिंतन के अपरिमित आयामों पर मुग्ध करती है..

बहुत सुन्दर प्रस्तुति 

हार्दिक शुभकामनाएं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 6, 2013 at 9:30am

आदरणीया नूतन जी , बहुत गहरी सोच , बहुत गहन भावों से रची बसी रचना के लिये आपको हार्दिक बधाई !!

Comment by Kapish Chandra Shrivastava on October 6, 2013 at 8:57am

     आदरणीया नूतन जी  वाह ! कितनी बढ़िया रचना है आपकी । विषय वस्तु , शब्दों का चयन , एवं प्रस्तुतीकरण सब कुछ बेजोड़ !!!!!!!  इतनी अर्थपूर्ण रचना के लिए कृपया मेरा साधुवाद स्वीकारें । पहली बार आपकी रचना पढ़ी, आपकी सभी रचनाएँ अवश्य पढूंगा । 
Comment by Abhinav Arun on October 6, 2013 at 7:14am

सुन्दर शब्द - चित्र आदरणीया डॉ साहिबा . हार्दिक बधाई !

Comment by vijay nikore on October 6, 2013 at 3:05am

वाह...वाह...वाह... अति सुन्दर प्रस्तुति।

हार्दिक बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 5, 2013 at 11:11pm

अति गहरे भाव, बधाई आदरणीया नूतन जी

कृपया ध्यान दे...

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