For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जल से हम कल बनायेंगे

**जल से हम कल बनायेंगे**

मदमस्त पवन, घनघोर घटा, 
छाई बदली, सूरज को हटा ।
रिमझिम-रिमझिम बरसे बदरा, 
तपती धरा पे कतरा-कतरा । 


सौंधी-सौंधी महक लिए, 
मिट्टी जल संग बहने लगी,
नाले से बनकर नदी जल वो,
मन ही मन बूँद कहने लगी ।


सागर से उठी बादल मैं बनी, 
संग पवन के मैं इठला के उड़ी ,
प्यासी धरती की तपन को देख, 
बेबस ही बस मैं बरस पड़ी ।


अब बहती हूँ धारा बनकर,
नदियों में कल-कल-कल-कल कर,
निर्झर से बहती मैं झर-झर ,
लेती हूँ मैं सबका मन हर । 


मैं सुन्दरता इस धरती की, 
पल-पल परिवर्तित प्रकृति की, 
मुझ बिन सूना संसार लगे ,
मुझ बिन कोई इक पग न चले । 


तो प्रण करो संकल्प ये लो ,
वारि न व्यर्थ बहायेंगे ,
बूँद-बूँद संचित कर के, 
जल से हम कल बनायेंगे । 


जल से हम कल बनायेंगे । 

जितेन्द्र *जीत*

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 690

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विजय मिश्र on September 30, 2013 at 11:28am
जीतजी जीत गए ,रचना नामानुरूप है . बहुत सुन्दर . बधाई
Comment by vijay nikore on September 30, 2013 at 4:51am

इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय जितेन्द्र जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by annapurna bajpai on September 28, 2013 at 12:07am

बहुत सुंदर रचना बधाई आपको , आदरणीय जितेंद्र जी । 

Comment by Jitender Kumar Jeet on September 27, 2013 at 7:26pm
आ. डाॅ. प्राची सिंह जी, आपका सुझाव बहुत ही शिक्षाप्रद एवं उपयोगी है ।।धन्यवाद ।। मैं अवश्य ही इस और ध्यान दूँगा ।। कृपया मार्गदर्शन करते रहें ।। धन्यवाद ।।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 27, 2013 at 7:18pm

आ० जितेन्द्र जीत जी 

बहुत सुन्दर रचना है आपकी .. जल के कितने स्वरुप , बूंदों के बोल, और जल संचय की सीख समेटती रचना के इए हार्दिक बधाई .

वैसे इस रचना में गेयता अप्रतिम हो सकती है यदि सभी पंक्तियों को १६-१६ मात्रा पर साधा जाए .. 

मदमस्त पवन, घनघोर घटा, ....१६ 
छाई बदली, सूरज सिमटा  ।.......१६ 
रिमझिम-रिमझिम बरसे बदरा, ...१६ 
तपती भू पर कतरा-कतरा । .......१६ 

सौंधी-सौंधी महकी महकी , ....१६ 
मिट्टी जल घुल बहती बहती,.....१६ 

इस तरह १६ की मात्रा पर पूरे गीत को साध जाइए फिर देखिये ..!!

शुभेच्छाएं 

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 27, 2013 at 7:08pm

वाह वा !! क्याबात है !! अगर जल से कल नही बनाया तो कल से जल बनाना पडेगा !! आदरणीय बधाई !!

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 27, 2013 at 5:22pm

आदरणीय जीतेंद्र जी वाह क्या कहने जल ही जीवन है बेहद सुन्दर रचना रची है आपने जल का होना कितना लाभकारी है दर्शाया है आपने सुन्दर संदेशात्मक प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकारें.

Comment by ram shiromani pathak on September 27, 2013 at 5:06pm

 बहुत ही सुन्दर रचना जीत जी बहुत बधाई//

Comment by Abhinav Arun on September 27, 2013 at 4:30pm

मैं सुन्दरता इस धरती की, 
पल-पल परिवर्तित प्रकृति की, 
मुझ बिन सूना संसार लगे ,
मुझ बिन कोई इक पग न चले । ...सुन्दर रचना जीत जी बहुत बधाई इस भावपूर्ण मनोरम प्रस्तुति के लिए

Comment by Meena Pathak on September 27, 2013 at 2:59pm

अपनी रचना के माध्यम से बहुत अच्छा सन्देश दिया आप ने .. बधाई आप को 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीया प्राची दीदी जी, आपको नज़्म पसंद आई, जानकर खुशी हुई। इस प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा में हैं। "
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आभार "
16 hours ago

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय, यह द्वितीय प्रस्तुति भी बहुत अच्छी लगी, बधाई आपको ।"
16 hours ago

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"वाह आदरणीय वाह, पर्यावरण पर केंद्रित बहुत ही सुंदर रचना प्रस्तुत हुई है, बहुत बहुत बधाई ।"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर आभार।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बेहतरीन कुंडलियाँ छंद हुए है। हार्दिक बधाई।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बेहतरीन छंद हुए है। हार्दिक बधाई।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई तिलक राज जी, सादर अभिवादन। आपकी उपस्थिति और स्नेह से लेखन को पूर्णता मिली। हार्दिक आभार।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, हार्दिक धन्यवाद।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई गणेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
17 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service