For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कौन रोता है , यहाँ?

अर्द्ध रजनी है , तमस गहन है,

आलस्य घुला है, नींद सघन है.

प्रजा बेखबर,  सत्ता मदहोश है,

विस्मृति का आलम, हर कोई बेहोश है.

ऐसे में कौन रोता है , यहाँ?

 

रंगशाला रौशन है, संगीत है, नृत्य है,

फैला चहुँओर ये कैसा अपकृत्य है.

जो चाकर है, वही स्वामी है

जो स्वामी है, वही भृत्य है .

ऐसे में कौन रोता है , यहाँ?

 

बिसात बिछी सियासी चौसर की

शकुनी के हाथों फिर पासा है .

अंधे, दुर्बल के हाथों सत्ता है

शत्रु ने चंहुओर से फासा है .

ऐसे में कौन रोता है , यहाँ?

 

 पांचाली का रूदन अरण्य है,

(दु) शासन का कृत्य जघन्य है .

शांत पड़े मुरली के स्वर

स्व धर्म का अभिमान शून्य है.

ऐसे में कौन रोता है , यहाँ?

 

कल की किसी को परवाह नहीं है,

स्वदेश हित की चाह नहीं है

सबकी राहें हैं जुदा जुदा

देश की एक कोई राह नहीं .

ऐसे में कौन रोता है , यहाँ?

नीरज कुमार

पूर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित

विधा : छंद मुक्त 

Views: 915

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neeraj Neer on October 2, 2013 at 4:18pm

आदरणीय बैद्यनाथ सारथी  जी हार्दिक आभार 

Comment by Saarthi Baidyanath on September 22, 2013 at 8:46pm

पठनीय और सार्थक रचना...बढ़िया शिल्प ...| बधाई मान्यवर :)

Comment by Neeraj Neer on September 19, 2013 at 7:55pm

आदरणीय शिरोमणि पाठक जी बहुत आभार आपका ..

Comment by ram shiromani pathak on September 18, 2013 at 7:35pm

बहुत सुन्दर रचना  आदरणीय बहुत बहुत बधाई//

Comment by Neeraj Neer on September 18, 2013 at 8:48am

आदरणीय सौरभ जी बहुत हार्दिक आभार आपका .. दरअसल देश पहले से भी ऐसा ही था इसीलिए सैकड़ों वर्षों तक गुलाम रहा , लेकिन गुलामी के काल में चूँकि  जुल्म होते थे, धन और इज्जत लूट ली जाती थी तो लोग अत में थोड़े सजग हो गए और विवेकानंद सरीखे संतो ने निज धर्म और राष्ट्र की अस्मिता के प्रति प्रेरणा दी. परन्तु आज़ादी के बाद की स्थिति बहुत भयावह है, आज का युवा सिर्फ आज का कैरियर, आज का पैसा , आज की मस्ती देख रहा है, सिनेमा, नाच गाना , शराब , ऐश , मौज यही ध्येय है , परन्तु वह कल की नहीं सोच रहा जब उससे ये सारे मौके छीन जायेंगे और उसे उसके जीने की भी कीमत चुकानी होगी , लेकिन आज सब मस्त है, मदहोश हैं , सत्ता शीर्ष पर बैठे लोग भी स्वार्थी हो रखे हैं, आज के युवा से धर्म की बात कीजिए तो उन्हें विरक्ति होती है, उन्हें अपने मर्म का भान ही नहीं है, इसीलिए जब कोई दूसरा उनके दर्शन की शिकायत करता है तो वे शर्मशार हो जाते हैं ... आपका बहुत बहुत धन्यवाद. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 17, 2013 at 11:45pm

वैचारिक रूप से चाहे कोई मनस कितना ही उन्नत क्यों न हो अपने कालखण्ड के प्रभाव को तिरोहित कर सके ऐसा कम ही हो पाता है.  देश के आजकी दशा को शब्दों में बाँधना श्राप सदृश लगता है. ऐसे में, रुदन एक पक्षीय हो तो व्याप गयी समस्याओं के विरुद्ध समाधान भी होता है, किन्तु, अनवरत का रुदन पीड़ित को सदा हल्का नहीं कर देता, यदि उसका प्रभाव सामाजिक रूप से व्यापक और सनातन हो.

आपकी रचना का फलक बहुत बड़ा है, आदरणीय.  मुझे दिनकर के खण्डकाव्य कुरुक्षेत्र की प्रथम पंक्तियों का स्मरण हो आया--

वह कौन रोता है इतिहास के अध्याय पर ?  

यह उत्तरित प्रश्न एक पूरे कालखण्ड को ही नहीं इस भूमि के इतिहास को प्रभावित करने वाला है.

आपकी रचना के लिए बधाइयाँ. 

Comment by Neeraj Neer on September 17, 2013 at 9:08am

जीतेन्द्र गीत जी हार्दिक आभार आदरणीय .. 

Comment by Neeraj Neer on September 17, 2013 at 9:07am

आभार मीना पाठक जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 16, 2013 at 11:40pm

अति सुंदर रचना , बधाई स्वीकारें आदरणीय नीरज जी

Comment by Meena Pathak on September 16, 2013 at 11:33pm

बहुत सुन्दर रचना .. बधाई आप को

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service