उडो तुम व्योम के वितान में
पसारो पंख निर्भय .
अश्रु धार से
नहीं हटेगी चट्टान
जो है जीवन की राह में
मार्ग अवरुद्ध किये, खुशियों की .
गगन की ऊंचाई से
सब कुछ छोटा लगता है .
और तुम बड़े हो जाते हो.
बिस्तर की नमकीन चादर को
धुप दिखा कर
फिर टांग दो परदे की तरह ..
पुर्णतः मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
सादर आदरणीय
आदरणीय सौरभ जी सादर धन्यवाद, मुझे आपकी बात उचित प्रतीत होती है .. मैं उसे सुधार लेने का प्रयत्न करूँगा ..
//उत्स का प्रयोग यहाँ आंसू के सन्दर्भ में गया है.. आँखों का उत्स ... भाव हैकि आंखो से निकलने वाले आंसू//
इस हिसाब से ’उत्स’ शब्द का प्रयोग उचित होगा आदरणीय ? कृपया पुनः देख लें.
उत्स, जैसा कि मैंने जाना और समझा है, किसी ऑब्जेक्ट के निर्गत या प्रारम्भ को कहते हैं. किसी ऑब्जेक्ट से निकलते अन्य किसी ऑब्जेक्ट के लिए प्रारम्भ नहीं होता. जैसे, सद्वृत्तियों का उत्स स्पष्ट मन और चित्त होता है. स्पष्ट मन और चित्त का उत्स सद्वृत्तियाँ नहीं होंगीं न ! यानि, आँसुओं या अश्रु का उत्स आँख अवश्य होगी. किन्तु, आँखों का उत्स अश्रु को मानना तनिक अन्यथा प्रतीत होता है.
जैसा मैंने समझा है वही साझा कर रहा हूँ.
आदरणीय सौरभ जी . आभार आपका . उत्स का प्रयोग यहाँ आंसू के सन्दर्भ में गया है.. आँखों का उत्स ... भाव हैकि आंखो से निकलने वाले आंसू. आपका हार्दिक धन्यवाद ..
आदरणीय डॉ प्राची सिंह जी रचना पसंद करने के लिए हृदय से आभार , आपकी प्रतिकिया से उत्साह बढ़ा है ..
आदरणीय चंद्रशेखर पाण्डेय जी हार्दिक आभार
आदरणीय विजयाश्री जी बहुत आभार.
आ. भाई अरुण शर्मा जी आभार आपका
बहुत अच्छा प्रयास हुआ है भाईजी.. .
बधाई स्वीकारें .. .
उत्स का किन अर्थों में प्रयोग किया है, आपने भाईजी... ??
सकारात्मक सन्देश देती सुन्दर अभिव्यक्ति
हार्दिक बधाई
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