For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : याद है तुझको

2122 2122 2122 2122

शेर मेरे  ये  सभी यूं तो ज़माने के लिए हैं।
बेवफा से भी मुहब्बत ही जताने के लिए हैं।।

याद है तुझको कभी तू भी रहा है साथ मेरे।
याद भी तेरी जहां में भूल जाने के लिए हैं।।

चाहता है दर्द उसके सब मिटे दुनिया से कमसिन।
दर्द भी कुछ सीने पर ही तो लगाने के लिए हैं।।

दिल उन्होंने यूं संभाला जैसे कोई आइना हो।
आइना तो यार सब ही टूट जाने के लिए हैं।।

जख्म मेरे जो भी दुनिया से मिले है प्यार में वो।
जख्म ये सब यार उनसे ही छुपाने के लिए हैं।।

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 667

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ketan Parmar on September 2, 2013 at 2:32pm

Sabhi Mitro ka sukriyaa like or comment karne ke liye

Comment by Ketan Parmar on September 2, 2013 at 2:31pm

Adarniyaa Rajesh Kumari ji

Kripya detail me samajhaye mujhe aapki baat kuch samajh nayi aayi hai saadar

Comment by Ketan Parmar on September 2, 2013 at 2:29pm

Vivek ji sahi kaha hai unki ghazal padhne ke baad ye koshish ki hai maine

Comment by वीनस केसरी on September 2, 2013 at 3:55am

अच्छी ग़ज़ल हुई है ,,, सीखने की राह में एक और कदम
टिप्पणी में आई इस्लाह की ओर ध्यान दें तो दोष सुधार हो जायेगा
सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 1, 2013 at 12:32pm

प्रयास अच्छा है इस हेतु बधाई स्वीकारें मैं भी आदरणीया राजेश कुमारी जी से पूर्णतया सहमत हूँ भाई उनके कहे का सज्ञान करें.

Comment by vandana on September 1, 2013 at 6:34am

बहुत बढ़िया ग़ज़ल 

Comment by vijayashree on September 1, 2013 at 12:14am

दिल उन्होंने यूं संभाला जैसे कोई आइना हो।
आइना तो यार सब ही टूट जाने के लिए है।।

बहुत खूब 

दाद कबूल कीजिये केतन परमार जी 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 31, 2013 at 8:14pm

आदरनीय केतन जी 

जख्म मेरे जो भी दुनिया से मिले है प्यार में वो। 
जख्म ये सब यार उनसे ही छुपाने के लिए है।।..इस बेहतरीन ग़ज़ल का ये शेर मुझे बेहद पसंद आया ..आपको ढेरों बधाई 

Comment by shubhra sharma on August 31, 2013 at 7:03pm

आदरणीय केतन जी
जख्म मेरे जो भी दुनिया से मिले है प्यार में वो।
जख्म ये सब यार उनसे ही छुपाने के लिए है।।
...............बहुत खूब ,बहुत बहुत बधाई

Comment by Shyam Narain Verma on August 31, 2013 at 12:48pm
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
2 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
2 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
3 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
3 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
3 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
18 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service