तेरे अधरों की मुस्कान,
भरती मेरे तन में प्राण.
जीवन की ऊर्जा हो तुम,
साँसों की सरगम की तान.
मैं सीप तुम मेरा मोती ,
मैं दीपक तुम मेरी ज्योति.
कभी पूर्ण न मैं हो पाता ,
संग मेरे जो तुम न होती.
किन्तु दुख है कि मैं तुमको,
कभी नहीं खुश रख पाया .
तुमने मुझसे पाया घाटा ,
मैंने केवल लाभ कमाया.
बस खुदा से यही प्रार्थना,
खुश रक्खे तुझको हरदम.
मेरे प्राणों की कीमत भी,
तेरी खुशी के लिए है कम.
(सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित- प्रदीप बहुगुणा ‘दर्पण’)
Comment
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति प्रदीप जी ........उम्दा पंक्तियां का संयोजन ......
मैं सीप तुम मेरा मोती ,
मैं दीपक तुम मेरी ज्योति.
कभी पूर्ण न मैं हो पाता ,
संग मेरे जो तुम न होती.
किन्तु दुख है कि मैं तुमको,
कभी नहीं खुश रख पाया .
तुमने मुझसे पाया घाटा ,
मैंने केवल लाभ कमाया.
विजय निकोरे जी... बहुत बहुत आभार ....
डा.प्राची जी .... मन के भावों को समझकर सटीक विश्लेषण और उत्साहवर्द्धन के लिए बहुत बहुत आभार .... आपकी बात अक्षरश सही है .
आदरणीय प्रदीप जी:
// मेरे प्राणों की कीमत भी,
तेरी खुशी के लिए है कम.//
अति मार्मिक भावाभिव्यक्ति के लिए साधुवाद।
सादर,
विजय निकोर
निश्छल निःस्वार्थ प्रेम..जब परिस्थितियों में उलझ सा जाए...... और प्रियतम ही उसे समझ न सके, तो ह्रदय अपने अन्तः भावों को जैसे ज़ाहिर कर देना चाहता हो शब्दों के दर्पण में....
ऐसी ही unmanipulated अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई.
किन्तु दुख है कि मैं तुमको,
कभी नहीं खुश रख पाया .
तुमने मुझसे पाया घाटा ,
मैंने केवल लाभ कमाया..... बहुत उम्दा .. हार्दिक बधाई
किन्तु दुख है कि मैं तुमको,
कभी नहीं खुश रख पाया .
तुमने मुझसे पाया घाटा ,
मैंने केवल लाभ कमाया. ... भाई जी इन पंक्तियों ने दिल को छू लिया, हार्दिक बधाई
बहुत उम्दा प्रदीप जी..बधाई स्वीकारें
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