For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ज़िंदा लेते लूट, लाश ने जान बचाई

खानापूरी हो चुकी, गई रसद की खेप ।

खेप गए नेता सकल, बेशर्मी भी झेंप ।

बेशर्मी भी झेंप, उचक्कों की बन आई ।

ज़िंदा लेते लूट, लाश ने जान बचाई ।

भूखे-प्यासे भटक, उठा दुनिया से दाना ।

लाशें रहीं लटक, हिमालय मुर्दाखाना ॥

मौलिक/ अप्रकाशित

Views: 649

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विजय मिश्र on June 27, 2013 at 5:09pm
घृणित सत्य का काव्यात्मक सम्प्रेषण और उसमें आपका विदीर्ण मन स्पष्ट प्रकट होता है.रविकरजी , नामानुरूप प्रस्तुति . बधाई .
Comment by रविकर on June 27, 2013 at 9:20am

बहुत बहुत आभार आदरणीय / आदरणीया

Comment by ram shiromani pathak on June 26, 2013 at 1:06pm

बहुत ही सुन्दर भाव आदरणीय रविकर जी।हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by बसंत नेमा on June 26, 2013 at 11:40am

व्यथा, व्यवास्था को दर्शाती रचना बहुत ही सुन्दर भाव ।

देखन मे छोटी लगे गम्भीर करती घाव ....  बधाई  

Comment by aman kumar on June 26, 2013 at 9:20am

मानवता की दुर्दशा , और सत्ता का खेल ,

दोनों आपकी कविता मे प्रतिबिम्ब हो रहा है |

पर इस विषय पर रहीम के दोहे , नही तुलसी दास की राम चरित मानस लिखनी होंगी 

आप को दिल से आभार !

Comment by vijay nikore on June 26, 2013 at 1:07am

कुछ पंक्तिओं में ही आपने कितना-कुछ कह लिया... आपको बधाई आदरणीय रविकर जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by वेदिका on June 25, 2013 at 11:23pm

भूखे-प्यासे भटक, उठा दुनिया से दाना ।

लाशें रहीं लटक, हिमालय मुर्दाखाना ॥

और क्या दुर्दशा की पराकाष्ठा होगी,, बहुत ही उद्देलित करने वाला दृश्य चित्र खींचा आपने 

बहुत बहुत बधाई आपको!!  

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 25, 2013 at 11:19pm

आदरणीय रविकर सर जी उत्तराखंड की आपदा पर चली आपकी कलम अन्दर तक झकझोर गई हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by MAHIMA SHREE on June 25, 2013 at 10:58pm

बेशर्मी भी झेंप, उचक्कों की बन आई ।

ज़िंदा लेते लूट, लाश ने जान बचाई ।

भूखे-प्यासे भटक, उठा दुनिया से दाना ।

लाशें रहीं लटक, हिमालय मुर्दाखाना .... गजब का का लिखा आपने आदरणीय रविकर सर ... आपदा से जो विपदा आई है और उससे से जो दुःख और साथ ही अमानवीय कृत्यों से जो क्रोधाग्नि जल रही है .. वो तीखापन और दर्द एक साथ शिदत के साथ आये है ... बहुत -२ बधाई आपको सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 25, 2013 at 10:10pm

आ0 रविकर जी, ...अतिसुन्दर...कुण्डलिया। हार्दिक बधाई स्वीकारें। आ0 प्राची मैम की बात पर गौर कर लें। सादर,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
26 minutes ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
36 minutes ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
1 hour ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
1 hour ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
1 hour ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
16 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
16 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
22 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service