For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कोयला खदान की
आँतों सी उलझी सुरंगों में
पसरा रहता अँधेरे का साम्राज्य

अधपचे भोजन से खनिकर्मी
इन सर्पीली आँतों में
भटकते रहते दिन-रात
चिपचिपे पसीने के साथ...

तम्बाकू और चूने को
हथेली पर मलते
एक-दूजे को खैनी खिलाते
सुरंगों में पिच-पिच थूकते
खानिकर्मी जिस भाषा में बात करते हैं
संभ्रांत समाज उस भाषा को
असंसदीय कहता, अश्लील कहता...

खदान का काम खत्म कर
सतह पर आते वक्त
पूछते अगली शिफ्ट के कामगारों से
ऊपर का हाल
कैसा है मौसम
आजकल मौसम का भी तो
नहीं कोई ठिकाना
जबकी उन्हें
खदान से निकल कर
बहुत दूर है जाना...
जिनके घरों में उनका
हो रहा होगा इन्तेज़ार...

सोख लेता खदान
बदन का पानी
लील लेता खदान
मन की उमंगों को
चूस लेता खदान
रही-सही ऊर्जा को
बचा रहता इंसान
बस इतना ही
कि अगले दिन
बदस्तूर खैनी की डिबिया
जेब में डाले
आ सके डियूटी पर....

                                        (श्रीयुत सौरभ पाण्डेय साहेब की सलाह पर अंतिम पंक्ति संशोधित की है,

                                          उनका शुक्रगुज़ार हूँ.....)

Views: 443

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 23, 2013 at 11:39pm

आदरणीय अनवर सौहेल साहब, कष्टदायी जीवन में मस्त मौलापन का आनंद लेते खनि कर्मियों पर रची सुन्दर रचना के लिए सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 22, 2013 at 3:49am

खदान में काम करने वाले कर्मी जीवंत चित्रण!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 21, 2013 at 10:20pm

उफ्फ!!! कितनी कठिन परिस्थितियों में भी ज़िंदगी चलती है...

बस एक ही खुशी...खैनी की डिबिया.

खादानों में काम करते कर्मियों की ज़िंदगी पर बहुत ही सवेदन शील अभिव्यक्ति 

साधुवाद आदरणीय अनवर सुहैल जी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 21, 2013 at 12:04am

आदरणीय सुहैल साहब,  आपने मुझे बहुत बड़ी इज़्ज़त बख़्शी है.

हम समवेत सीखते हैं और अपनी-अपनी समझ साझा करते हैं.  आपका सादर आभार कि आपको मेरा कहा मायने का लगा.

सादर

Comment by बृजेश नीरज on May 20, 2013 at 11:30pm

एक नई जमीन की बात की है। मेहनतकश के संघर्ष को बहुत सुंदरता से रचना में गढ़ा है आपने। आपको ढेरों बधाई।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 20, 2013 at 2:32pm

एक प्रासंगिक कविता आदरणीय जिसकी साहित्य में अपनी विशेष ज़मीन है. बहुत सुन्दर गठन के साथ प्रस्तुत हुई है.

आखिरी पंक्ति ..आ जाता कामगार डियूटी पर...  सिर्फ़  आ सके ड्यूटी पर... .  करना अधिक सटीक होता.

बहुत बहुत बधाई आदरणीय.

सत्तर-अस्सी के दशक में भुरकुण्डा, झारखण्ड के ज़हीर नियाज़ी की इन्हीं विषयक रचनाओं से आपका गुजरना हुआ हो. आदरणीय ज़हीर नियाज़ी साहब उम्र में मुझसे काफी बड़े थे. तब मैं विद्यार्थी था.  लेकिन पठन-पाठन में अभिरुचि के कारण मित्रवत व्यवहार था. आज भी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पत्रिकाओं या अखबारों के रविवासरीय परिशिष्टो में उनके लेख और रचनायें मेरी स्मृति का अभिन्न हिस्सा हैं. खान के कामग़ारों की बात औरहालात पर कार्यालय में उनका अपने वरिष्ठों मतान्तर बना ही रह गया. कम परेशान नहीं किये गये. 

Comment by राजेश 'मृदु' on May 20, 2013 at 1:20pm

खदान की जिंदगी, उसकी तड़प, उसकी उलझन का उम्‍दा चित्रण आपने किया है, इस संवेदनापूर्ण प्रस्‍तुति हेतु आपका मैं आभार प्रकट करता हूं, सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 20, 2013 at 10:37am

खनी कर्मी की दिनचर्या का जीवंत दर्शन कराने और उनके शारीरिक मौसम का हाल बताने के लिए हार्दिक आभार 

श्री अनवर सुहैल भाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
10 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
10 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
15 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
18 hours ago
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 16
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Nov 16

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service