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होता रहा नीलाम है ये आम आदमी

सदियों रहा गुलाम है ये आम आदमी 

होता रहा नीलाम है  ये आम आदमी 

रोता है बिलखता है जाता है  बहल फिर
 बच्चों सा ही मासूम है  ये आम आदमी 
.
जीने का हक़ मिला था जिसे कल ही आज वो 
मरने का सबब ढूंढ रहा आम आदमी 
.
इस दौर-इ-तरक्की में बदल जायेंगे सभी
लेकिन रहेगा आम ही ये आम आदमी 
.
ऊँची हवेलियों के चिरागों के वास्ते 
ढलता है बनके शाम यही आम आदमी 

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Comment

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Comment by vijay nikore on April 29, 2013 at 7:07pm

 

गज़ल अच्छी लगी। बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 28, 2013 at 12:34pm
इस दौर-इ-तरक्की में बदल जायेंगे सभी
लेकिन रहेगा आम ही ये आम आदमी .....................आम आदमी की ज़िंदगी पर लिखी गयी सुन्दर गज़ल पर बधाई आ० अजय शर्मा जी 
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on April 28, 2013 at 7:15am

आम आदमी की सही दास्तान ...

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 26, 2013 at 11:10pm

सदियों रहा गुलाम है ये आम आदमी 

होता रहा नीलाम है  ये आम आदमी ......

आम आदमी के हालत कब बदलें हैं उसे तो ऐसे ही जीने की आदत भी हो गयी है. सुन्दर रचना आदरणीय.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 26, 2013 at 6:37pm

आदरणीय जी,   बहुत सुन्दर!  आम आदमी तो बस मोम और मिटटी ही है।  चाहे जिस साचे मे ढाल लो।   बेबसी की अच्छी प्रस्तुति।   हार्दिक बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 26, 2013 at 3:52pm
रोता है बिलखता है जाता है  बहल फिर
 बच्चों सा ही मासूम है  ये आम आदमी 
.
ऊँची हवेलियों के चिरागों के वास्ते 
ढलता है बनके शाम यही आम आदमी 
आदरणीय अजय शर्मा जी 
सादर बधाई. 
Comment by राजेश 'मृदु' on April 26, 2013 at 3:06pm
रोता है बिलखता है जाता है  बहल फिर
 बच्चों सा ही मासूम है  ये आम आदमी  बहुत ही बढि़या लगी ये पंक्तियां, सादर
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 26, 2013 at 10:57am

आम आदमी आम आदमी ही रहेगा, ख़ास नही बन सकता, यही आज के सत्ताधीश भी चाहते है | यथार्थ रचना के लिए बधाई 

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