For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्यासा था मैं कुछ बूंदों का ...

प्यासा था मैं कुछ बूंदों का, कब सागर भर पीना चाहा,

बस चाहा था दो पल जीना, कब जीवन भर जीना चाहा,

जग को होगा स्वीकार नहीं, ये अपना मिलन मैं शंकित था,

रिश्तों सा कुछ माँगेगा ये प्रमाण हमसे मैं परिचित था,

पर था मुझको विश्वास कभी छोड़ेगा ये जड़ता अपनी,

लेकिन निकला ये क्रूर बहुत दिखला दी निष्ठुरता अपनी,

तुम क्यों विकल्प हो गयी मेरा तुमको ही क्यों चुनना चाहा,

भावुक मन का मैं बोझ उठा कब तक बोलो चलता रहता,

जो गरल बन गया जीवन रस कब तक बोलो पीता रहता,

मेरे मिथ्या कह देने से माना कुछ देर संभल जाते,

कुछ स्वप्न सजाते तुम झूठें, माना कुछ देर बहल जाते,

क्यों झूठे भ्रम पाले तुमने, मैंने सच को छलना चाहा,

इतने अंकुश प्रतिबन्ध भला मेरे ही जीवन पर क्यों थे,

अपने ही नीलगगन में उड़ने पर इतने बंधन क्यों थे,

क्यों छीन लिए मेरे परिचय मुझसे मेरे अधिकार सभी,

इक- इक सांसों से छीन लिए जीवन संभव आधार सभी,

मेरे ही संचय को जग ने हर पल मुझसे ठगना चाहा,

प्यासा था मैं कुछ बूंदों का, कब सागर भर पीना चाहा,

बस चाहा था दो पल जीना, कब जीवन भर जीना चाहा ।

Views: 525

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वेदिका on July 6, 2013 at 6:02am

इक- इक सांसों से छीन लिए जीवन संभव आधार सभी,

मेरे ही संचय को जग ने हर पल मुझसे ठगना चाहा, ,, वाह बहुत ही खूबसूरत रचना!

बधाई!!  

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 22, 2013 at 11:04pm

प्यासा था मैं कुछ बूंदों का, कब सागर भर पीना चाहा,

बस चाहा था दो पल जीना, कब जीवन भर जीना चाहा..........वाह! बहुत सुन्दर रचना आदरणीय

बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by coontee mukerji on April 20, 2013 at 3:07am

अपने ही नीलगगन में उड़ने पर इतने बंधन क्यों थे,

क्यों छीन लिए मेरे परिचय मुझसे मेरे अधिकार सभी,

इक- इक सांसों से छीन लिए जीवन संभव आधार सभी,

मेरे ही संचय को जग ने हर पल मुझसे ठगना चाहा,

प्यासा था मैं कुछ बूंदों

अपने ही नीलगगन में उड़ने पर इतने बंधन क्यों थे,

क्यों छीन लिए मेरे परिचय मुझसे मेरे अधिकार सभी,

इक- इक सांसों से छीन लिए जीवन संभव आधार सभी,

मेरे ही संचय को जग ने हर पल मु

झसे ठगना चाहा,

प्यासा था मैं कुछ बूंदों का, कब सागर भर पीना चाहा,

बस चाहा था दो पल जीना, कब जीवन भर जीना चाहा ।

का, कब सागर भर पीना चाहा,

बस चाहा था दो पल जीना, कब जीवन भर जीना चाहा । ....बहुत सुंदर भाव....बधाई स्वीकार  करें .

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 18, 2013 at 10:12pm

बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीय अजय जी 

सादर बधाई स्वीकारें 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 18, 2013 at 10:08pm

हृदय मे उठ रहे भावनाओं को कविता मे ढालने का बढ़िया प्रयास हुआ है, बधाई आदरणीय अजय शर्मा जी | 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 18, 2013 at 7:51pm

रिश्तों की कश्मकश...

और मजबूर इंसान... अपनी ही ज़िंदगी को अपने अनुसार जीने का अधिकार न रख पाने का दर्द...

ऐसे ही मनोभावों को अभिव्यक्त करती मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति के लिए बधाई आ० अजय शर्मा जी 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 18, 2013 at 10:09am

आदरणीय अजय जी,  सुप्रभात व सादर प्रणाम!  बहुत सुन्दर।   हार्दिक बधाई स्वीकारें।   सादर,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
18 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service