For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिन्दगी का जबाब

कल राह मे जिन्दगी से मुलाकात हो गयी ।

पूछा जो एक सवाल* तो जिन्दगी नाराज हो गयी।   

बोली देता है मुझको दोष, बता तुने क्या अच्छा किया है ।

मै तो हू आसान जीना, अपना तुने खुद मुहाल किया है ।

लोभ मोह लालच के भँवर मे तुने , खुद को फँसा लिया है ।

चादर से ज्यादा तुने खुद, उम्मीदो को फैला दिया है ।

मै तो हू आसान जीना, अपना तुने खुद मुहाल किया है ।

कही स्वार्थ के झुले मे झूला, कही संस्कार मर्यादा भूला ।

भूल गया तू परम्परा  सारी, आधुनिकता ने तेरी मति है मारी ।

जीयो और जीने दो का, मंत्र तुने भूला दिया है  ।

मै तो हू आसान जीना, अपना तुने खुद मुहाल किया है ।

रीति रिवाजो को तुने भुलाया, माया को अपना धरम बनाया ।

कही ईषा की आग मे जलता, कही अहँकार बस क्रोध मे मरता ।

खुद तूने ही अपना जीवन , पतन की खाई मे धकेल दिया है

मै तो हू आसान जीना, अपना तुने खुद मुहाल किया है ।

 "मौलिक व अप्रकाशित"

 

* जिन्दगी तू उतनी आसान नही है , जितनी की लोगो से तेरी चर्चा सुनी है ?

 

Views: 473

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Vindu Babu on April 16, 2013 at 10:33pm
जिन्दगी का यथार्थ चित्रण।
लय की दृष्टि से रचना को फिर से पढ लें आदरणीय नेमा जी।
Comment by राजेश 'मृदु' on April 16, 2013 at 5:51pm

रचना के मूल भाव से पूरी तरह सहमत हूं, सादर

Comment by बसंत नेमा on April 16, 2013 at 12:48pm

श्री गनेश सर , श्री प्रदीप जी , आ. प्राची दीदी , श्री योगी जी श्री राम शिरोमणी जी . रचना पसन्द आई उसके लिये बहुत बहुत धन्यवाद ... 

Comment by Yogi Saraswat on April 16, 2013 at 11:01am

कही स्वार्थ के झुले मे झूला, कही संस्कार मर्यादा भूला ।

भूल गया तू परम्परा  सारी, आधुनिकता ने तेरी मति है मारी ।

जीयो और जीने दो का, मंत्र तुने भूला दिया है  ।

मै तो हू आसान जीना, अपना तुने खुद मुहाल किया है ।

जिंदगी को अलग अलग लोग अलग अलग तरीके से परिभाषित  हैं ! बहुत सार्थक और सुन्दर बात कही है आपने


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 16, 2013 at 9:47am

ऐ जिन्दगी गले लगा ले ...रचना पर और समय चाहिए था आदरणीय बसंत नेमा जी । बधाई इस प्रस्तुति पर । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 16, 2013 at 9:41am

ज़िंदगी से सार्थक वार्तालाप...

बधाई आ० बसंत नेमा जी 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 15, 2013 at 4:31pm

अपने ही जाल में घिरा मानव..वाह 

बधाई.

Comment by ram shiromani pathak on April 15, 2013 at 3:09pm

 आदरणीय  बहुत सुन्दर  हार्दिक बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
7 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
8 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service