For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिन्दगी तू इतनी आसान नही है

 

जिन्दगी तू इतनी आसान नही है

 

जिन्दगी तू इतनी आसान नही है , जितनी की लोगो से तेरी चर्चा सुनी है ।

तू बहलाती फुसलाती तू लुभाती है, बेवफा ! है तू सब की पर किसी की नही है ।

तू पल मे तोला कभी पल मे मासा है, कही धूल जँमी की कही सोने पे सुहागा है ।

पर है ये हकीकत तेरी की तू,  दुख दर्द के ताने बानो मे बुनी है ।

जिन्दगी तू इतनी आसान नही है , जितनी की लोगो से तेरी चर्चा सुनी है ।।

 

तू कही जेठ की धूप है, कही नीम  की ठंडी छाव है ।

कही भाग दौड है शहर की, कही सकून भरा एक गाँव है ।

कही उडनखाटोले मे उडती, कही खेतो की मिट्टी से सनी है ।

जिन्दगी तू इतनी आसान नही है , जितनी की लोगो से तेरी चर्चा सुनी है ।।

 

कही तडफती ममता माँ की , कही भूख की किलकारी है ।

कही झुलता खाली झुला , कही त्याग माँ की मजबूरी है ।

कही महलो मे तू राज करती , कही कचरे मे जनी है । 

जिन्दगी तू इतनी आसान नही है , जितनी की लोगो से तेरी चर्चा सुनी है ।।

 

कही रचाती हाथो मे मेहँदी, कही हाथो की फूटती चुडी है ।

कभी दहेज की बेदी मे जलती, कही बारात को तकती दहरी है ।

कही अरमानो की सेज पे बैठी ,कही हर रात की दुल्हन बनी है ।

जिन्दगी तू इतनी आसान नही है , जितनी की लोगो से तेरी चर्चा सुनी है ।।

 

कही मुहब्बत का आगाज है तू, कही पर नफरत की आग है ।

कही प्यार की मंजिल है तू , कही टुटता विश्बास है ।

कही बगावत तू प्यार की खातिर , कही प्यार की ढाल बनी है।

जिन्दगी तू इतनी आसान नही है , जितनी की लोगो से तेरी चर्चा सुनी है ।।

 

कही पडी है लावारिश सी, कही एक वारिस की चाह है ।

कही जुल्म सितम है वारिस का, कही बूढी हड्डीयो की आह है ।

कही दर्द है अपनो से, कही  तू अपनो की कमी है

जिन्दगी तू इतनी आसान नही है , जितनी की लोगो से तेरी चर्चा सुनी है ।। 

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 582

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 10, 2013 at 11:11pm

जिन्दगी तू इतनी आसान नही है , जितनी की लोगो से तेरी चर्चा सुनी है ।।

सच है जींदगी सबकी अपनी होती है.किसी के लिए सुख ही सुख तो किसी के लिए दुखो का भंडार.सुन्दर रचना आदरणीय बसंत नेमा जी बधाई स्वीकारें.

Comment by बसंत नेमा on April 10, 2013 at 11:45am

आ. प्राची दीदी ,कुंती जी , केबल जी .... रचना आप को पसन्द आई उसके लिये बहुत आभार .. 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 9, 2013 at 9:31pm

आ0बसन्त नेमा जी, वाह भाई जी, वास्तव में जिन्दगी इतनी आसान नहीं...अतिसुन्दर प्रस्तुति हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 9, 2013 at 9:01pm

ज़िंदगी की दोरंगी तस्वीर की सुन्दर प्रस्तुति आ० बसंत नेमा जी 

Comment by coontee mukerji on April 9, 2013 at 10:44am

नेमा जी , सच में जिंदगी इतनी आसान कहाँ है . कोई रोता कोई हँसता जिंदगी के अपने फ़लसफ़े है .आपको बहुत बहुत बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
3 hours ago
ajay sharma shared a profile on Facebook
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service