For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(मौलिक और अप्रकाशित रचना)

शहरों की चकाचौंध में
फीके पङे गाँव-गुवाङ
नित नये फैशन तले
पिसता युवा समाज
पक्की चौङी सङकें यहाँ
सङकों पर रौशन लाइटें
गाङियों की चिल्ल पोँ में
खोयी घोङा-गाङी आज
ऊँचे-ऊँचे मकान बने हैं
नीचे उनके दुकान बनी हैं
गाँव पलायन करता रहता
शहरों की चकाचौंध में
नहीं जानता वो ये कि
कुछ नहीं ऐसा शहरों में
आकर्षण हो जिसके प्रति
सबसे ज्यादा होता प्रदूषण
शोर-सराबा शहरों में
शान्ति ढूँढते पार्कों में
सूर्य किरणों को तरसते
गमलों में पेङों का स्वांग रचाते
खुशी के लिए क्लब खंगालते
हथाई के लिए सैर करते
लोकल की धक्कामुक्की में
खो जाती पूरी जिन्दगी
पैदल चलने को नहीं समय
अकेलापन और चिङचिङापन
हरदम उनको घेरे रहता
घर और ऑफिस के बीच
खो गया खुला आसमान
ढंक लिया ऊँची इमारतों नें
घर का खुला आँगन
चौङी सङकोँ और गलियों में
वाहनों की लम्बी कतारें
शहर घूमता सङकों पर
न रात का पता ना दिन का
संवेदनाओं की बाट जोहता
शहर का ग्रामीण समाज
कच्ची बस्तियाँ घेरे रहती
शहर की खूबसूरती को
बाजारों की भीङभाङ में
खोया आज मनुष्य समाज
नहीं परवाह अपने परिवार की
उसको परवाह अपने पैसे की
बङा आदमी बनने को
खो देता वो मित्र-बन्धू
पैसों तक ही सीमित है उसका
आचार-व्यवहार रहन-सहन
दूषित वातावरण और भोजन से
लगती उसको नित नई बिमारियाँ
गरीब का कोई हाल ना पूछता
स्टेशन, नाली में वो पङा रहता
ग्रामीणों को कुछ ना समझे
शहर का सभ्य समाज
चमक-दमक में वो रहता हरदम
दिखावा करता रहता हरदम
गाँव भी खोये शहरों में
पढ-लिखकर शहरों में आवे
कुछ तो कुछ बन जाते
पर कुछ गुमनामी में खो जाते
जनसंख्या बढाए शहरों की
एक ग्रामीण देता शहरों को
प्रतिभा के साथ ही साथ
ग्रामीण परम्पराएँ भी।

- सतवीर वर्मा 'बिरकाळी'

Views: 543

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 13, 2013 at 5:04pm
आप सही कहते हैं आ॰ लक्ष्मण प्रसाद लङीवाला जी। गाँव से जो लोग शहरों की तरफ आते हैं हकीकत में वही लोग अपनी ग्रामीण परम्पराओं को जानबूझकर छोङते हैं। इन आने वालों में कुछ तो उत्पादकता का काम करते हैं लेकिन बाकी के लोग सिर्फ शहरों की आबादी बढाने के लिए ही आते हैं।
Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 13, 2013 at 4:51pm
प्रोत्साहन से रचना सार्थक हुई आ॰ बृजेश कुमार सिंह जी।
Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on March 13, 2013 at 4:49pm
टिप्पणी के लिए आभार आ॰ जवाहर लाल सिंह जी।
इस विकास में मानव की मौलिकता कहीँ नष्ट हो गयी है।
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 13, 2013 at 4:07pm

गाँव भी खोये शहरों में,पढ-लिखकर शहरों में आवे
कुछ तो कुछ बन जाते,पर कुछ गुमनामी में खो जाते
जनसंख्या बढाए शहरों की,एक ग्रामीण देता शहरों को
प्रतिभा के साथ ही साथ ग्रामीण परम्पराएँ भी।-  गाँव से शहर को पढने-लिखने के लिए, या रोजगार की तलाश में 

                                                            आने वाले भी शहर की आबादे बढ़त है, प्रदुषण में जीना सीखते है | 

ग्रामीण परम्पराए तो कुछ समय के लिए लाते है, फिर सब श्री रंग में रंग जाते है | समस्याए ही बढ़ती है | रचना के मद्ध्यम 

से सारी समस्याए उजागर करने के लिए बधाई 

Comment by बृजेश नीरज on March 13, 2013 at 7:21am

सही चित्र उकेरा है शहर का!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on March 13, 2013 at 4:22am

यही तो विकास की परिणति है उसके आगे क्या होग?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"धन्यवाद"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ऑनलाइन संगोष्ठी एक बढ़िया विचार आदरणीया। "
8 hours ago
KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"इस सफ़ल आयोजन हेतु बहुत बहुत बधाई। ओबीओ ज़िंदाबाद!"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service