For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - उलझनों में गुम हुआ फिरता है दर-दर आइना

एक नई ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले कर रहा हूँ, जैसी लगे वैसे नवाजें

उलझनों में गुम हुआ फिरता है दर-दर आइना |
झूठ को लेकिन दिखा सकता है पैकर आइना |

शाम तक खुद को सलामत पा के अब हैरान है,
पत्थरों के शहर में घूमा था दिन भर आइना |

गमज़दा हैं, खौफ़ में हैं, हुस्न की सब देवियाँ,
कौन पागल बाँट आया है ये घर-घर आइना |

आइनों ने खुदकुशी कर ली ये चर्चा आम है,
जब ये जाना था की बन बैठे हैं पत्थर, आइना |

मैंने पल भर झूठ-सच पर तब्सिरा क्या कर दिया,
रख गए हैं लोग मेरे घर के बाहर आइना |

अपना अपना हौसला है, अपने अपने फैसले,
कोई पत्थर बन के खुश है कोई बन कर आइना |

मौलिक, अप्रकाशित व अप्रसारित

Views: 872

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 3, 2013 at 11:09am
आदरणीय...वीनस जी, बेहतरीन गजल ..क्या बात कही है आपने वाह! " अपना अपना हौसला है अपने अपने फैसले,कोई पत्थर बन के खुश है कोई बन कर आईना " बहुत खूब आदरणीय वीनस जी.......हार्दिक बधाई व शुभकामनायें

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 3, 2013 at 10:47am

शाम तक खुद को सलामत पा के अब हैरान है, 
पत्थरों के शहर में घूमा था दिन भर आइना |वाह वाह वीनस जी शानदार ग़ज़ल कही है और इस शेर पर तो कुर्बान होने को जी चाहता है ढेरों दाद कबूल फरमाएं 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 3, 2013 at 9:23am

सुबह सुबह एक खुबसूरत सी ग़ज़ल राह रोके खड़ी हो गई, आइने को बिम्ब बना कई कई शायरों ने बहुत कुछ कहा है, किन्तु एक अलग ख्यालात को लेकर आई यह ग़ज़ल बरबस ध्यान खींचती है, मतला बेहतरीन, पहला शेर जहाँ यह साफ़ साफ़ बयां कर रहा है की सच आखिर सच ही है जिसे पराजित करना आसान नहीं है वही दूसरा शेर झूठे दिखावे पर तंज करता लग रहा है, उसके बाद का शेर साफ़ है कि दुसरे के घर में झाकने से पहले अपना घर देख लो, कहने का अंदाज बेहद प्यारा, आहा !!अंतिम शेर पर क्या कहना, उस्तादों वाली बात, अंतिम तीन अशआर देख लें, कही तकाबुले रदीफ़ दोष तो नहीं !!
बहरहाल मुझे एक बार और आनंद लेने दीजिये और आप बधाई स्वीकार कीजिये ।

Comment by वीनस केसरी on March 7, 2013 at 3:14am

@संदीप भाई बहुत बहुत शुक्रिया

ग़ज़ल पसंद आई और इसे आपसे दाद मिली है तो अशआर और चमक रहे हैं

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 5, 2013 at 7:32pm

लाजवाब प्रस्तुति वीनस जी. आपकी इस ग़ज़ल में नज़्म के रंग भी छलकते हुए दीख रहे हैं! आख़िरी शे'र सबसे बेहतरीन लगा! दाद क़ुबूल फरमाएं.. :)

Comment by वीनस केसरी on March 2, 2013 at 1:12am

Dr.Prachi Singh
आदरणीया,
अभी तो देने कई इम्तेहान बाकी है ...

Comment by वीनस केसरी on March 2, 2013 at 1:11am

अरुन शर्मा "अनन्त" जी  आपकी नवाजिश है, ग़ज़ल आपको पसंद आई, जान कर बेहद खुशी हुई 

Comment by वीनस केसरी on March 2, 2013 at 1:10am

आशीष नैथानी 'सलिल' भाई धन्यवाद, आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 1, 2013 at 4:40pm

लाजवाब ग़ज़ल है वीनस जी 

शाम तक खुद को सलामत पा के अब हैरान है, 
पत्थरों के शहर में घूमा था दिन भर आइना |.............आप गज़ब का लिखते हैं आदरणीय वीनस जी. वाह शब्द भी कम है ऐसे शेर के लिए तो ..

हार्दिक दाद क़ुबूल करें 

सादर.

Comment by अरुन 'अनन्त' on March 1, 2013 at 11:31am

वीनस भाई हमेशा की तरह फिर से आपके खजाने से निकली शानदार ग़ज़ल, सभी के सभी अशआर शानदार हैं. खास कर इन दो शे'रों पर कुछ ज्यादा ही दाद कुबूलें. 

गमज़दा हैं, खौफ़ में हैं, हुस्न की सब देवियाँ,
कौन पागल बाँट आया है ये घर-घर आइना |

अपना अपना हौसला है, अपने अपने फैसले,
कोई पत्थर बन के खुश है कोई बन कर आइना |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service