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ग़ज़ल - जिससे सब घबरा रहे हैं ...- वीनस

हज़रात,
एक और ताज़ा ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले कर रहा हूँ, लुत्फ़ लें .....
-
-

जो ये जानूं, मुख़्तसर हक आप पर मेरा भी है |
तब तो समझूं, मुन्तज़िर हूँ, मुन्तज़र मेरा भी है |


जिससे सब घबरा रहे हैं वो ही डर मेरा भी है |
शहर में दंगे की ज़द में एक घर मेरा भी है |

घरघराती आरियों में दब गई थी हर सदा, 
कुछ कबूतर कह रहे थे,,, पर शज़र मेरा भी है |

आखिरश नंगी हकीकत से हुआ है सामना,    
आइना खुश था कि पत्थर पे असर मेरा भी है |

 

आसमां वालों ! मिलेगा जा-ब-जा तुमको जवाब,
तुम से टकराना पड़ा तो, बालोपर मेरा भी है |

इश्क में हद से गुज़र जाने को वो तय्यार हैं, 
और ऐसा ही इरादा अब इधर मेरा भी है |

वक्त तो ये चाहता था, झुक के मैं उससे कहूँ,
''आसमां इक चाहिए मुझको कि सर मेरा भी है |''

तज्रिबा ही काम आया ज़िन्दगी के मोड पर,
पर मेरे सब दोस्त कहते हैं हुनर मेरा भी है |

रहगुज़र मंजिल हुई, अब मंजिलें हैं रहगुज़र,
वो जो सबका राहबर है राहबर मेरा भी है |


खुद को समझे बिन किसी को क्या समझ पाऊंगा मैं,
इसलिए अब खुद से खुद का इक सफ़र मेरा भी है |



=============================================

मुख़्तसर - थोडा सा, इकाई का एक टुकड़ा 
मुन्तजिर - प्रतीक्षारत, इंतज़ार करने वाला
मुन्तज़र - जिसकी प्रतीक्षा हो, इंतज़ार करवाने वाला
बालोपर - सामर्थ्य


मौलिक, अप्रसारित व अप्रकाशित
- वीनस केसरी

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Comment

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Comment by वीनस केसरी on March 16, 2013 at 11:12pm

सौरभ जी,
हार्दिक आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 16, 2013 at 12:01am

वीनस भाई.. . क्या ग़ज़ल हुई है.

अभी थोड़ी देर पहले डॉक्टर साहब को वाह-वाह कर आया हूँ.. . अब आपको हर शेर पर वाह-वाह कह रहा हूँ.. .

बार बार बधाई.. हर शेर पर बधाई.. . मगर इन शेरों पर एक्स्ट्रा.. खूब-खूब-खूब बधाई लें -

घरघराती आरियों में दब गई थी हर सदा,
कुछ कबूतर कह रहे थे,,, पर शज़र मेरा भी है |

इश्क में हद से गुज़र जाने को वो तय्यार हैं,
और ऐसा ही इरादा अब इधर मेरा भी है |

खुद को समझे बिन किसी को क्या समझ पाऊंगा मैं,
इसलिए अब खुद से खुद का इक सफ़र मेरा भी है |

इस ग़ज़ल को सामने बैठ कर सुनने का मज़ा अभी पढ़ने पर फिर से आ रहा है.. .

Comment by वीनस केसरी on March 13, 2013 at 2:51pm

आप सभी का हार्दिक आभार

स्नेह बनाये रखें ....

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 13, 2013 at 9:34am

तज्रिबा ही काम आया ज़िन्दगी के मोड पर, 
पर मेरे सब दोस्त कहते हैं हुनर मेरा भी है |माननीय श्री वीनस केसरी जी, सुप्रभात! सादर प्रणाम!!दूरियों और कशिश  को झकझोर देने वाली गजल..वाह.वाह..! बहुत.बहुत बधाई

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on March 13, 2013 at 7:16am

वाह वाह आदरणीय वीनस सर जी ............वाह

क्या बात है बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल कही है

हर इक अशआर उम्दा है अपने आप में नगीना है

इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद क़ुबूल फरमाइए साहब

जय हो

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on March 12, 2013 at 8:29pm

क्या बात है वीनस भाई इक ही ज़मीन पर दोनों ने एक साथ ही ग़ज़ल पोस्ट की ....बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है...खासकर ये शेर बहुत उम्दा हुआ है:

इश्क में हद से गुज़र जाने को वो तय्यार हैं,  
और ऐसा ही इरादा अब इधर मेरा भी है |...

दिली दाद कुबूल करें !

 

Comment by ram shiromani pathak on March 12, 2013 at 5:35pm

जिससे सब घबरा रहे हैं वो ही डर मेरा भी है |
शहर में दंगे की ज़द में एक घर मेरा भी है |

 खूबसूरत गज़ल के लिए ढेरों दाद...................

Comment by राजेश 'मृदु' on March 12, 2013 at 5:28pm

वक्त तो ये चाहता था, झुक के मैं उससे कहूँ,
''आसमां इक चाहिए मुझको कि सर मेरा भी है |''  खूबसूरत गज़ल के लिए ढेरों दाद

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