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शीशे में देखकर चेहरा

शीशे  में देखकर चेहरा ;बार -बार लजाये हैं ।

 कभी काजल, कभी बिंदिया बार -बार सजाये हैं ॥ 

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सोचते  अपने दिल से ;दुनिया की नजर रहे।

 बहुत मिहनत  होंठों  पर लिपस्टिक लगाये  हैं ॥

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चलाये वाण कोई हम पर शिकारी हो घायल ।

 शर्माते पलकों के किनारें काजल जो   चढ़ाये हैं ॥

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ना भागे देखकर कोई दूर होतो पास आजाये ।

 बाली उमर की निशानी झुमका भी लटकाये हैं ॥

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                          ----------श्रीराम रॉय 

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Comment

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Comment by श्रीराम on February 24, 2013 at 7:40am

बागी भाई तारीफ़ के लिए शुक्रिया ....


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 23, 2013 at 10:05am

नवयौवना के मनोभाव को बहुत ही सुन्दरता से व्यक्त किया है , बधाई इस रचना पर, साथियों की रचनाओं पर आपके विचारों का स्वागत है ।

Comment by श्रीराम on February 22, 2013 at 6:23pm

bhai ajayji..tarif ke liye shukriya.....

Comment by Dr.Ajay Khare on February 22, 2013 at 12:02pm

bahbah jai shriram ji badhai

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