( आपकी सेवा में मेरी ताज़ी रचना )
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वक्त आने पे जो न संभल पाते हैं |
फिर शहर खंडहर में बदल जाते हैं ||…
ContinueAdded by श्रीराम on March 31, 2013 at 8:30am — 2 Comments
शीशे में देखकर चेहरा ;बार -बार लजाये हैं ।
कभी काजल, कभी बिंदिया बार -बार सजाये हैं ॥
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सोचते अपने दिल से ;दुनिया की नजर रहे।
बहुत मिहनत…
ContinueAdded by श्रीराम on February 22, 2013 at 8:30am — 4 Comments
वसंत जाने कहाँ उड़ गया है ...।
मौसम का मिजाज बिगड़ गया है ।।
बारिस ने ऐसा कहर ढा दिया है ;
कोयल से सुर ही बिछड़ गया है ...।।
बर्फ इतने गिरे, मेघ रुकते नही ;
जैसे धरा से गगन झगड़ गया है ।।
जितना दूषित जल, उतना ही पवन ;
बनकर दानव प्रदूषण अकड़ गया है ...।।
छोड़ विज्ञान की, बातें भगवान् की
अपना ही मंदिर उजड़ गया है ......।।
Added by श्रीराम on February 7, 2013 at 11:00pm — 3 Comments
सेवा का थोड़ा व्रत रख लें
सेवा का मीठा फल चख लें ।।
यह दुनिया खुद की मारी है ,
खुदगर्ज यहाँ हर मानव है ,
अपने छोटे पेट की खातिर
कुकर्म करे यह नित नव है ।
गैरों को थोडा अपना कह लें --सेवा का मीठा फल चख लें ।।
जो देख रहे वह दुनिया नही ,
यह तो बस केवल मरघट है ,
कहने वालेतो कहते ही रहेंगे
यहाँ लोभ-मोह का जमघट है ।
इससे तो अब थोड़ा बच लें ----सेवा का मीठा फल चख लें ।।
गीता-गुरु को भुला कर…
ContinueAdded by श्रीराम on December 25, 2012 at 8:58am — 6 Comments
( कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या लिखूं ........लेकिन जब कलम उठाया तो जो लिखा आपके सामने है ....आशा है आपको पसंद आएगी )
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दूर से देखने में जो अच्छा लगे ,
पास आने में वो ना अच्छा लगे ।।
जिन आँखों में चाहत हो प्यार की
कभी देखे या ना देखे अच्छा लगे ।।
जैसे बगिया हो कोई पहरों के बीच
फूल तोड़े ना कोई तो अच्छा लगे ।।
नाम हो रोशनी से बहुत ही भला
काम आये सबको तो अच्छा लगे ।।
चाँद उतरे जमीं पे तो…
Added by श्रीराम on December 15, 2012 at 10:00am — 4 Comments
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