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ज़ख्म चेहरे से दिखाना दर्द की है ज़िद पुरानी ............

जब हुई रुसवा तरन्नुम से ग़ज़ल इस ज़िन्दगी की 
आंसुयों ने नज़्म लिखी रख दिया उनवान पानी 

आइनों से शर्त रख दी मुस्कराहट की लबों पे 
इसलिए झूठी ग़मों की कर रहा मैं तर्जुमानी 

और भी अब बढ गयी दुश्वारियां मेरे सफ़र की 
पत्थरों को ढूँढती फिरती मेरी किस्मत दीवानी 

गर ये नादाँ सब्र होती तो मुनासिब था "अजय" 
लोरियों में कोई भी झूठी सुना देता कहानी 

चोट सीने में छिपाना पाँव की आदत रही है 
ज़ख्म चेहरे से दिखाना दर्द की है ज़िद पुरानी 

By ajay kumar sharma

( मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 327

Comment

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 10, 2013 at 8:23pm

गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल कहने का अच्छा प्रयास है, जिस शेर में तकल्लुफ रखा जाता है यानी मक्ता का शेर , उसे सबसे अंत में रखने की परंपरा है |

Comment by vijay nikore on January 9, 2013 at 4:16pm

ज़ख्म चेहरे से दिखाना दर्द की है ज़िद पुरानी ...

बहुत खूब!

विजय निकोर

Comment by भावना तिवारी on January 9, 2013 at 1:41pm

ज़ख्म चेहरे से दिखाना दर्द की है ज़िद पुरानी ......WAAH ..IS MISREY KA JAWAAB NAHIN ....WAH WAH ...HARDIK BADHAI .....!!

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