For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इस लेखमाला के मूल पोस्ट  सवैया  में सवैया छंद से संबन्धित कई बातों पर समीचीन चर्चा हुई है.

उक्त प्रस्तुति में सवैया छंद से संबन्धित बातें, यथा, छंद में शब्द की अक्षरी या वर्तनी, प्रयुक्त शब्दों पर गणों के अनुसार स्वराघात, छंद का रूप और कुल मिला कर भाषा आदि पर बातें हुई हैं जो सवैया के सभी प्रारूपों के लिये मान्य हैं. आगे, विभिन्न सवैया के केवल विधान और शिल्प बदलते जायेंगे, अन्य तथ्य मूलवत रहेंगे. 

इस लेखमाला की अगली कड़ी में हम सवैया के एक और अति प्रसिद्ध रूप पर चर्चा करेंगे. वह है दुर्मिल सवैया.

दुर्मिल सवैया में 24 वर्ण होते हैं.  छंद के पद आठ सगणों यानि सलगा यानि लघु लघु गुरु या ।।ऽ से बनते हैं.

यानि, दुर्मिल सवैया = सगण X 8

अर्थात, सगण सगण सगण सगण सगण सगण सगण सगण

या, ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ

छंद पद की गेयता के अनुसार चार सगण के बाद यति मानी जाती है. या, इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि 12, 12 वर्णों पर यति होती है. किन्तु, पुनः निवेदन है कि ये छंद मात्रिक नहीं होते अतः यहाँ गेयता या वाचन के अनुसार स्वयं यति का निरुपण हो जाता है.

चार पदों से बने ये छंद सम-तुकान्त होते हैं. जबतक कि, रचनाकार द्वारा विशेष किन्तु मान्य प्रयोग न हुए हों. यह अत्यंत ही प्रचलित सवैया छंद है और इसका विशद प्रयोग रीतिकाल और भक्तिकाल से लेकर आधुनिक काल तक में होता आ रहा है.

तुलसी कृत कवितावली के बालकाण्ड में प्रारम्भ के कई छंद दुर्मिल सवैया के बेहतरीन उदाहरण हैं किन्तु यहाँ बालकाण्ड का ही पहला छंद उदाहरण हेतु प्रस्तुत किया जा रहा है -

अवधेसके द्वारें सकारें गई सुत गोद कै भूपति लै निकसे।
अवलोकि हौं सोच बिमोचनको ठगि-सी रही, जे न ठगे धिक-से।
तुलसी मन-रंजन रंजित-अंजन नैन सुखंजन-जातक-से।
सजनी ससिमें समसील उभै नवनील सरोरूह -से बिकसे ।

प्रथम पद -

अवधे (लघु लघु गुरु) / स के द्वा (लघु लघु गुरु) / रें सका (लघु लघु गुरु) / रें गई (लघु लघु गुरु) /
<----------1----------> <-----------2---------------> <------------3------------> <------------4--------->

सुत गो (लघु लघु गुरु) / द कै भू (लघु लघु गुरु) / पति लै (लघु लघु गुरु) / निकसै (लघु लघु गुरु)
<-----------5----------> <-------------6-----------> <------------7------------> <-----------8---------->

उपरोक्त विन्यास में बोल्ड किये गये अक्षर अधिकतर शब्द-संयोजक हैं जो कारक विभक्ति के रूप में हैं जिनके बारे में पिछले पोस्ट में ही साझा किया गया है कि वे कैसे गुरु होते हुए भी लघु रूप में प्रयुक्त हो सकते हैं. मैं ध्यान खींचना चाहता हूँ तीसरे तथा चौथे सगण पर, जहाँ रें का गुरु रूप लघु की तरह स्वीकृत है.  इसकी भी व्याख्या पूर्ववत है कि वाचन-प्रवाह के क्रम मेंशब्दों के उक्त अक्षरों पर स्वरघात शब्द के अनुसार न हो कर उक्त गण (यहाँ सगण) की मात्रा के अनुसार हो रहा है.

ज्ञातव्य :
प्रस्तुत आलेख प्राप्त जानकारी और उपलब्ध साहित्य पर आधारित है.

Views: 20178

Replies to This Discussion

आदरणीय सौरभ जी दुर्मिल सवैया पर विस्तृत जानकारी देने हेतु हार्दिक आभार 

आदरणीया राजेश कुमारी जी, दुर्मिल सवैया आलेख को अनुमोदित करने हेतु हार्दिक धन्यवाद.

गुरु वर्ण कब लघु की तरह उच्चारित होते हैं ये प्रश्न सदा मन में उठता था इन चर्चाओं के दौरान सहज ही समाधान हो गया....ये लेख भी उपयोगी जानकारियों से परिपूर्ण है....आदरणीय गुरुदेव इस हेतु आपको हार्दिक बधाई प्रेषित है

आदरणीय सौरभ जी,

दुर्मिल सवैया छंद पर सम्यक जानकारी उपलब्ध कराने के लिए हार्दिक आभार. सादर.

आदरणीय सौरभ जी 

                 सुप्रभात, सादर प्रणाम, दुर्मिल सवैया पर मैंने एक प्रयास किया है दो वर्ण बोल्ड कर दिए है कृपया बताएं यह ठीक है या नहीं.सादर.

नभ से बरसे जलधार, भयंकर तेज हवा लहराय रही,
ढलता दिन रैन रुलावे,सुहागिन के मन को तडपाय रही,
उमड़ी घुमडी बदरा बरसे हिय को बहुतै धडकाय रही,
बरखा के ऋतू सजनी बिन साजन हाय खड़ी पछताय रही/

आदरणीय अशोक भाई, आपका छंद प्रस्तुत आलेख में निर्दिष्ट दुर्मिल सवैया हेतु प्रदत्त सूत्र और प्रवाह दोनों को संतुष्ट कर रहा है. इस हिसाब से आपका छंद दुर्मिल सवैया की मानक कसौटी पर खरा उतरता है.

किन्तु कहन और व्याकरण के लिहाज से देखा जाय तो

दूसरे पद में : ढलता दिन  के बाद विराम यानि कॉमा आना चाहिये क्यों कि वह अलग व्याक्यांश है, क्योंकि आगे का पूरा पद रैन  के अनुसार बना है और वाक्य स्त्रीलिंग है. 

तीसरा पद :  यह पद/ पंक्ति/ वाक्य ही व्याकरण के अनुसार अशुद्ध है. बदरा  शब्द के पुल्लिंग होने से यह पूरा पद ही अशुद्ध हो रहा है, क्योंकि आपने इस पद की क्रिया को स्त्रीलिंग में रखा है जबकि कर्ता (बदरा) पुल्लिंग है.

चौथा पद : ऋतु  के तु को मात्रिक रूप से बढ़ाना उचित नहीं है. अक्सर दीर्घ अक्षरों पर स्वराघात कम कर उन्हें लघु की तरह व्यवहृत अवश्य करते हैं किन्तु शब्दों, विशेषकर संज्ञाओं, के किसी अक्षर विशेष पर स्वराघात बढ़ा कर उन्हें दीर्घ नहीं किया जाता. ऐसा हमने कोई उचित या मानक प्रयोग नहीं देखा है. आपके पास कोई ऐसा मानक उदाहरण हो तो अवश्य साझा करें, आदरणीय, हमसभी लाभान्वित होंगे.

इसी क्रम में, सजनी का बरखा की ऋतु में साजन के बिना  ’पछताना’  भी बहुत उचित प्रयोग नहीं है. भाईजी, पछताने का भाव वस्तुतः कर्ता द्वारा किसी गलती करने के बाद उसे समझ में आने पर ग्लानिवत होने का भाव है. मेरी समझ से, कोई सजनी बिना साजन के पदानुसार वर्णित वातावरण में घबरा सकती है या साजन के लिए विह्वल हो सकती है. है न ?

शुभेच्छाएँ

गुरुदेव आपके कहे को पढ़ रहा हूँ मन लगा के और मुग्ध हो रहा हूँ कुछ भ्रम दूर हो रहे हैं आपका सदैव आभारी हूँ गुरुदेव जय हो 

आप जहाँ देखें कि लेख की संप्रेषणीयता दुर्बल  है.. या वाक्य स्पष्ट नहीं हो रहे हैं.. या नियमों की विवेचना में कुछ त्रुटि है तो अवश्य सूचित कीजियेगा, संदीपभाईजी.

हम समवेत सीखते हैं.

बहुत उम्दा जानकारी जिसकी तलाश में अरसे से भटक रही थी, सोचती हूँ इस मंच पर पहले क्यों नहीं पहुँची। अब खड़ी बोली हिन्दी में इस छंद पर प्रयोग करके देखूँगी । यहाँ पढ़कर ही स्वाध्याय द्वारा काफी सीखा जा सकता है। सौरभ जी आपका हार्दिक आभार...

आदरणीया कल्पनाजी, आपका अनुमोदन किसी सचेत, जागरुक एवं रचनाओं में गंभीर प्रयास के प्रति निष्ठावान रचनाकार का अनुमोदन है. मैं आभारी हूँ. 

आप इस कड़ी का मूल आलेख सवैया अवश्य पहले पढ़ लीजियेगा.

सादर

 सौरभ जी  बहुत उपयोगी जानकारी प्रस्तुत की है आपने , इस पर भी कभी प्रयास करूंगी , यह पोस्ट देखने से कैसे चुक गयी मै , पहले सवैया  की जानकारी  पूर्ण लेती हूँ .

सकारात्मक अनुमोदन हेतु आपका सादर आभार, आदरणीया शशिजी.

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
21 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
21 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
21 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
21 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
21 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
21 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहों पर दोहे लिखे, दिया सृजन को मान। रचना की मिथिलेश जी, खूब बढ़ाई शान।। आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी…"
21 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत दोहे चित्र के मर्म को छू सके जानकर प्रसन्नता…"
22 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई शिज्जु शकूर जी सादर,  प्रस्तुत दोहावली पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय…"
22 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आर्ष ऋषि का विशेषण है. कृपया इसका संदर्भ स्पष्ट कीजिएगा. .. जी !  आयुर्वेद में पानी पीने का…"
22 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, प्रस्तुत दोहों पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
22 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service