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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा"अंक २९

परम आत्मीय स्वजन,

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के २९ वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है|इस बार का तरही मिसरा हिन्दुस्तान के हरदिल अज़ीज़ शायर/गीतकार जनाब राहत इन्दौरी जी की गज़ल से लिया गया है| यह बह्र मुशायरों मे गाई जाने वाली बहुत ही मकबूल बह्र है|यूं तो राहत इन्दौरी साहब अपने सारे कलाम तहत मे पेश करते हैं और अगर आपने रूबरू उनसे उनकी यह गज़ल सुन ली तो आप इसके मोह को त्याग नहीं सकेंगे| तो लीजिए पेश है मिसरा-ए-तरह .....

"इन चिराग़ों में रोशनी भर दे"

२१२२ १२१२  २२ 

फाइलातुन मुफाइलुन फेलुन 

(बह्र: खफीफ मुसद्दस मख्बून मक्तुअ)
 
रदीफ़ :- दे
काफिया :- अर (भर, कर, पत्थर, मंज़र, बराबर आदि)
विशेष:
१.    इस बह्र मे अरूज के अनुसार कुछ छूट भी जायज है, जैसे कि पहले रुक्न २१२२ को ११२२ भी किया जा सकता है| उदाहरण के लिए ग़ालिब की ये मशहूर गज़ल देखिये...
 
दिले नादाँ तुझे हुआ क्या है 
११२२ १२१२ २२
आखिर इस दर्द की दवा क्या है 
२१२२ १२१२ २२
 
२.    अंतिम रुक्न मे २२ की जगह ११२ भी लिया जा सकता है| हालांकि इस काफिये मे यह छूट संभव नहीं है परन्तु जानकारी के लिए यह बताना आवश्यक था| 


मुशायरे की शुरुआत दिनाकं २८ नवंबर दिन  बुधवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक ३० नवंबर  दिन शुक्रवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा | 

अति आवश्यक सूचना :-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के इस अंक से प्रति सदस्य अधिकतम दो गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं |
  • एक दिन में केवल एक ही ग़ज़ल प्रस्तुत करें
  • एक ग़ज़ल में कम से कम ५ और ज्यादा से ज्यादा ११ अशआर ही होने चाहिएँ.
  • तरही मिसरा मतले में इस्तेमाल न करें
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी रचनाएँ लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.  
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें.
  • नियम विरूद्ध एवं अस्तरीय रचनाएँ बिना किसी सूचना से हटाई जा सकती हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी. . 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो २८ नवंबर दिन  बुधवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें | 



मंच संचालक 
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह) 
ओपन बुक्स ऑनलाइन

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Replies to This Discussion

आदरणीय संदीप द्विवेदी जी आपके द्वारा प्रशंसा सुनना सुखद है बहुत बहुत हार्दिक आभार 

आदरणीया राजेश कुमारी जी ,

बेहद सुन्दर कलाम, हर शेर लाजवाब है, आपकी ग़ज़लगोई वास्तव में अनुकरणीय है, प्रेरणाप्रद है...बहुत बहुत हार्दिक दाद पेश है.क़ुबूल करें 

बांटनी है अगर तुझे किस्मत 
तू गरीबों में भी बराबर दे ..........वाह, उन्नत सोच 

अक्स अपना तलाश करना है 
इन चिरागों में रौशनी भर दे .......... बिलकुल नयी तरह की गिरह , बहुत सुन्दर 

नींव भरनी यहाँ मुहब्बत की 
प्यार का बेमिसाल पत्थर दे ............वाह !  

गाँव उसने अभी बसाया है 
तू न इतना बड़ा बवंडर दे ................बहुत खूब !

बारम्बार दाद पेश है.

प्रिय प्राची जी मेरी ग़ज़ल  के अनुमोदन और सुन्दर विश्लेषण हेतु दिल से आभार प्रकट करती हूँ मेरा लिखना सार्थक हुआ 

आदरणीया 

प्यार का बेमिसाल पत्थर दे 

वाह, बधाई 

हार्दिक आभार प्रदीप कुमार कुशवाह जी आपको ग़ज़ल पसंद आई 

बांटनी है अगर तुझे किस्मत 
तू गरीबों में भी बराबर दे .........वाह वाह , बहुत ही सुन्दर ख्याल |

गाँव उसने अभी बसाया है 
तू न इतना बड़ा बवंडर दे ........क्या बात है, चौका दिया है आपने , ग़ज़ल की यह प्रस्तुति इस मंच को कई कई तरह से आश्वस्त करती है , बहुत बहुत बधाई आदरणीया, अच्छी ग़ज़ल कही है |

आदरणीय गणेश बागी जी आपकी प्रतिक्रिया से मेरी कलम मेरी ग़ज़ल दोनों आश्वस्त हुई एक लेखक को और क्या चाहिए बहुत बहुत हार्दिक आभार आपका 

अच्छा कलाम है राजेश कुमारी जी, दाद कुबूलें

आदरणीय धर्मेन्द्र सिंह जी दिल से शुक्रिया 

आदरणीय राजेश जी क्या ग़ज़ल कही है एक एक शेर सोंच और कहन के लिहाज़ से बेहतरीन बन पड़ा  हैं किसकी बात करूँ किसकी नहीं 

नींव भरनी यहाँ मुहब्बत की 
प्यार का बेमिसाल पत्थर दे ......वाह इस शेर को सलाम 

अक्स अपना तलाश करना है 
इन चिरागों में रौशनी भर दे........बहुत प्यारी बात कह दी 

बधाई बधाई बधाई 

आदरणीया राजेश कुमारी जी, पूरी ग़ज़ल ही बेमिसाल है, एक नया कलेवर लिए हुए....ये दो शेअर तो बहुत ही सशक्त लगे..

//नींव भरनी यहाँ मुहब्बत की 
प्यार का बेमिसाल पत्थर दे 

गाँव उसने अभी बसाया है 
तू न इतना बड़ा बवंडर दे //

हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है,  राजेश कुमारी जी।

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