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"विरह गीत" - लतीफ़ ख़ान, दल्लीराजहरा.

विरहन का क्या गीत अरे मन |
प्रियतम प्रियतम, साजन साजन ||

जब से हुए पी आँख से ओझल,
प्राण है व्याकुल साँस है बोझल,
किस विध हो अब पी के दर्शन || विरहन का...

प्रीत है झूटी सम्बन्ध झूटा,
सौगंध झूटी अनुबन्ध झूटा,
मिथ्या मन का हर गठबन्धन || विरहन का...

जब दर्पण में रूप सँवारूँ,
अपनी छवि में पी को निहारूँ,
मेरी व्यथा से अनभिज्ञ दर्पण || विरहन का...

दुख विरहन का किस ने जाना,
अपने भी अब मारें ताना,
कौन सुने अंतस का क्रन्दन || विरहन का...

डगमग डगमग जीवन नैया,
पार हो कैसे ये बिन खेवैया,
इस तट मैं हूँ उस तट साजन || विरहन का...

हवन - कुण्ड सा जीवन मेरा,
विरह अग्नि का जिस में डेरा,
व्यर्थ लगे अब पूजन अर्चन || विरहन का...

धूमिल धूमिल आस के अक्षर,
पृष्ट हुए जीवन के जर्जर,
कौन करे अब इस का विमोचन || विरहन का...

लिख लिख हारी मैं तो पाती,
बुझ ना जाए आस की बाती,
व्यर्थ लगे है अब यह जीवन || विरहन का...

©लतीफ़ ख़ान, दल्लीराजहरा.

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 6, 2012 at 1:41pm

कोमल कविता की अत्यंत सुन्दर बानगी .. . बधाई स्वीकारें, भाई लतीफ़ ख़ान जी.. .

Comment by Arun Sri on November 6, 2012 at 12:54pm

सच कहा एक विरहन और क्या गा सकती है ! वो तो साँस भी लेती है तो हवाओं पर साजन लिख जाता है ! आपके गीत कई बार पढ़ गया ! बहुत अच्छा लगा ! कुछ अपना सा अनुभव हुआ पढकर !

Comment by नादिर ख़ान on November 5, 2012 at 6:16pm

हवन - कुण्ड सा जीवन मेरा,
विरह अग्नि का जिस में डेरा,

 

बहुत सुंदर रचना ...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 5, 2012 at 5:07pm

विरहन के हृदय क्रंदन को बेहद सुन्दर शब्द मिले है इस अभिव्यक्ति में.

सुप्रवाहित, सुमधुर, गीत के लिए बहुत बहुत बधाई 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 5, 2012 at 3:57pm

विरहन का क्या गीत अरे मन |प्रियतम प्रियतम, साजन साजन 

जब दर्पण में रूप सँवारूँ,अपनी छवि में पी को निहारूँ,                   बहुत खूब ।
मेरी व्यथा से अनभिज्ञ दर्पण ||प्रियतम प्रियतम, साजन साजन     
दर्पण आइना होता है-वह अनभिग्य, वाह वाह 
पढ़ पढ़ कर मै करूँ क्रंदन, सलाम कवि लतीफ़ खान करूँ नमन । -बेहद उम्दा

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