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मैं निर्मल ,निःस्वार्थ 

प्रस्फुटित हुआ 

एक अभिप्राय के निमित्त 

हर लूँगा सबका  अभिताप  ,व्यथा 

अपनी अनुकम्पा से 

अलौकिक अभिजात मलय 

के आँचल की छाँव  में 

श्वास लेकर बढ़ता रहा 

कब मेरी जड़ों में 

वर्ण, धर्म भेद मिश्रित 

नीर मिलने लगा 

कब वैमनस्य ,स्वार्थ परता 

की खाद डलने लगी

पता ही नहीं चला 

विषाक्त भोजन 

विषाक्त वायु ,नीर 

से मेरे अन्दर कसैला 

जहर भरता गया

फिर जो ग्रहण किया

 वो ही वितरित करने लगा 

हर जगह जहरीले दीमक  

पनपने लगे और मेरी ही 

जड़ों को खोखला करने लगे 

कब धरा शाई हो जाऊं 

क्या पता उससे पहले 

मैं ढूंढता हूँ  उस ब्रह्मांड 

के रचयिता को  

जो ना जाने कहाँ छुप गया 

मुझे भ्रमित करके 

मेरे प्रयोजन की

 राह अवरुद्ध करके 

कहाँ है तू ?

मेरे मनस्ताप से मुझे मुक्त कर 

आगे की राह दिखा |

जाते जाते कोई 

नेक कर्म कर जाऊं 

जितना गरल वितरित किया 

वो वापस खुद ही पी जाऊं 

आवाज दे कहाँ है 

वो तेरी शक्ति ?? 

 *************

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 17, 2012 at 9:12am

हार्दिक आभार अशोक कुमार जी इस उत्साह वर्धन हेतु 

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 17, 2012 at 9:07am

फिर जो ग्रहण किया

 वो ही वितरित करने लगा 

जटिल समस्या किन्तु सरल भाव सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें आदरेया राजेश कुमारी जी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 16, 2012 at 10:57am

सादर आदरणीया .. .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 16, 2012 at 10:29am

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आपकी पारखी  विश्लेषणात्मक प्रतिक्रिया से रचना धन्य हुई ह्रदय से आभारी हूँ नवरात्र की शुभकामनाएं 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 16, 2012 at 9:54am

व्यष्टि को समष्टि में परिवर्तित होने से वंचित करते कारणों पर आपका गहन चिंतन रचना में उभर कर आया है.

सादर शुभकामनाएँ.. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 16, 2012 at 9:17am

हार्दिक आभार सतीश मापत पुरी जी नवरात्र की शुभकामनाएं 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 16, 2012 at 9:16am

हार्दिक आभार वीनस केसरी जी नवरात्र की शुभकामनाएं 

Comment by satish mapatpuri on October 16, 2012 at 12:06am

मानव - मन की विशद व्याख्या एवं प्रस्तुति के लिए बधाई राजेश कुमारी जी

Comment by वीनस केसरी on October 15, 2012 at 11:21pm

आदरणीया,
मानव मन और 'सुभाव' की बहुत महीन पडताल करती सुन्दर काव्य प्रस्तुति के लिए बारम्बार बधाई स्वीकारें

कृपया ध्यान दे...

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