For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अपरिचित कवि की कृतियाँ- ३८

पुणे से पत्नी को लिखा पत्र

 

प्यारी बिन्नी,

 

वो गांव ही अच्छा था जहाँ हम रहा करते थे

जहाँ के पेड पौधे, खेत खलिहान और

कुत्ते भी हमसे बातें किया करते थे

 

वो गांव क्या था पूरा परिवार था

हर आदमी इक दूसरे के प्रति

कितना जिम्मेवार था

सबकी खुशियाँ हमारी खुशियाँ थीं और

हमारे दुःख में हर कोई हिस्सेदार था

 

गांव के चौधरी यही तो कहा करते थे

वो गांव ही अच्छा था जहाँ हम रहा करते थे

 

वो दूर पहाड़ों की ढलानों तक गैओं को हाकना

और जंगलों की लकडियों पे रोटिओं को सेकना

पेड़ों की ओट में लुका छुपी खेलना

और शाम को, घर के चौबारे पर

मिटटी के तेल का दिया मेलना

 

तारों को गिनते हुए हम मीठी नींद में सो जाया करते थे

वो गांव ही अच्छा था जहाँ हम रहा करते थे

 

खेतों में हवाओं के आँचल का सनसनाना

और दूर अमराइओं में

कोयल का कुह्कुहना

गांव के स्टेशन से रेलगाड़ियों को रोज देख कर

घर पैदल आना

 

रास्ते भर हम ट्रेन के मुसाफिरों को सोचा करते थे

वो गांव ही अच्छा था जहाँ हम रहा करते थे

 

गांव में भीखू था, मलंग था, पटवारी था

और मेरे लड़कपन का दोस्त

लंबी चुटिया वाला तिलकधारी था

और हाँ, वो तुम्हें दूर, से चुपचाप चाहने वाला

बेजुबान, शर्मीला शिवधारी था

 

अरहर के खेतों में लुक-छप कर हम क्या-क्या नहीं किया करते थे

वो गांव ही अच्छा था जहाँ हम रहा करते थे

 

पंचयत के अहाते में एक मंदिर था, गुरुद्वारा था

और पास में ही लाल पताकाओं से सराबोर

हनुमानजी का अखाडा था

वहीँ कोने में जुम्मन चाचा की बनाई मस्जिद थी

और बाजू में इमामबाडा था

 

हम कहीं वजू, कहीं सदके, तो कहीं मत्था टेका करते थे

वो गांव ही अच्छा था जहाँ हम रहा करते थे

 

सुबह सुबह माँ का रसोई में लग जाना

और पिताजी का बैलों को लेकर खेतों में जाना

घर के बड़े-बूढों का घर के दालान में बैठक जमाना

और बच्चों का स्कूल के बाद गली-गली इतराना

 

काम का दिन हो या छुट्टी का, हम रोज सुबह उठ जाया करते थे

वो गांव ही अच्छा था जहाँ हम रहा करते थे

 

© राज़ नवादवी 

पुणे २६/०९/२०११ 

Views: 518

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Albela Khatri on July 13, 2012 at 8:05am

:-)

Comment by राज़ नवादवी on July 13, 2012 at 12:32am

अलबेला साहेब, आप की हाय हाय एक दिन जान ले जाएगी! बहुत बहुत शुक्रिया. मस्रूफियात ने अदब से अभी दूर किए रक्खा है. देखिए, कब ज़िंदगी में ग़ालिब जैसी फुर्सत हो और गालिबाना बेफिक्री. 

आपका मग्नून, राज़ नवादवी! 

Comment by राज़ नवादवी on July 13, 2012 at 12:29am

रेखाजी, बहुत बहुत धन्यवाद. इधर काम के सिलसिले में इतना मसरूफ हूँ की समय पे न आपलोगों की इनायतों का शुक्रिया अदा कर पाता हूँ और न ही पठन पाठन और लेखन का वक्क्त मिल पता है. मगर खुशी होती है जब आप सरीखे लोगों की तहसीन मिलती है. 

- राज़ नवादवी. 

Comment by Rekha Joshi on July 10, 2012 at 1:37pm

राज़ जी ,

एक से बढ़ के एक खुबसूरत रचनाएँ ,
 तारों को गिनते हुए हम मीठी नींद में सो जाया करते थे

वो गांव ही अच्छा था जहाँ हम रहा करते थे,सीधी सादी,जिंदगी ,बधाई 

Comment by Albela Khatri on July 10, 2012 at 12:53pm

धन्य हो राज नवादवी साहेब........

वो दूर पहाड़ों की ढलानों तक गैओं को हाकना

और जंगलों की लकडियों पे रोटिओं को सेकना

पेड़ों की ओट में लुका छुपी खेलना

और शाम को, घर के चौबारे पर

मिटटी के तेल का दिया मेलना


__हाय हाय हाय

___बहुत खूब !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
9 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
22 hours ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service