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"OBO लाइव महा उत्सव" अंक १९ (Now closed with 1021 Replies)

आदरणीय साहित्य प्रेमियों

सादर वन्दे,

"ओबीओ लाईव महा उत्सव" के १९ वे अंक में आपका हार्दिक स्वागत है. पिछले १८ कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने १८   विभिन्न विषयों पर बड़े जोशो खरोश के साथ और बढ़ चढ़ कर कलम आजमाई की. जैसा कि आप सब को ज्ञात ही है कि दरअसल यह आयोजन रचनाकारों के लिए अपनी कलम की धार को और भी तेज़ करने का अवसर प्रदान करता है, इस आयोजन पर एक कोई विषय या शब्द देकर रचनाकारों को उस पर अपनी रचनायें प्रस्तुत करने के लिए कहा जाता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है:-

"OBO लाइव महा उत्सव" अंक  १९     

.
विषय - "गाँव"

आयोजन की अवधि- ८ मई २०१२ मंगलवार से १० मई २०१२ गुरूवार तक  

तो आइए मित्रो, उठायें अपनी कलम और दे डालें अपनी कल्पना को हकीकत का रूप, बात बेशक छोटी हो लेकिन घाव गंभीर करने वाली हो तो बात का लुत्फ़ दोबाला हो जाए. महा उत्सव के लिए दिए विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते है |

उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम निम्न है: -

  1. तुकांत कविता
  2. अतुकांत आधुनिक कविता
  3. हास्य कविता
  4. गीत-नवगीत
  5. ग़ज़ल
  6. हाइकु
  7. व्यंग्य काव्य
  8. मुक्तक
  9. छंद  (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका इत्यादि) 



अति आवश्यक सूचना :- "OBO लाइव महा उत्सव" अंक- १९ में सदस्यगण  आयोजन अवधि में अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ  ही प्रस्तुत कर सकेंगे | नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा गैर स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटा दिया जाएगा, यह अधिकार प्रबंधन सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी |


(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो मंगलवार ८ मई लगते ही खोल दिया जायेगा ) 


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"महा उत्सव"  के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...

"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

मंच संचालक

धर्मेन्द्र शर्मा (धरम)

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Replies to This Discussion

सच आज अपने गाँव की हालत बड़ी दुश्वार है।

उद्दाम लहरों में फंसा ना नाव ना पतवार है।

ये बात सारे जानते जो वक़्त रोकर कह रहा,  

खुशहाल दुनिया चाहिए तो गाँव ही आधार है॥  ....bilkul sahi marg aapne chetaya hai...


गांवों किसानों की कथा कहता न कोई आज है।

वादे छलकते छद्म के भीगी सी हर आवाज है।

दुर्नीतियां बन डोरियाँ फांसी के फंदे गुंथ रहीं,

लटके हुये सपनों तले क्षतिपूर्ती इक साज है॥...nalayak hukmrano ke karan...


सादर आभार आदरणीय अविनाश भाई जी...

कालिख उगलती चिमनियों से मेघ भी थर्रा गए,

अब गाँव के पशु गाड़ियों में बस उदासी ढो रहे॥...sateek shabd-chitr

wah! Sanjay ji bahut umda...

आदरणीय अविनाश भईया... मुक्तक दर मुक्तक आपकी वेवेचना उत्साहित करती है... स्नेह बनाए रखें आदरणीय...

सादर आभार.

गाँव हाइकु  

(१)

गाँव की शान 

खेतिहर किसान 

उगाये धान 

(२ )

कुँए की ठाँव

बरगद की छाँव 

हमारा गाँव 

(३)

गाँव की गौरी 

जैसे गन्ने की पोरी 

रेशमी डोरी 

(४)

खेतों की मेड़

बकरियों की हेड़

झूलों की बेड़

(५)

ग्राम विकास 

चकबंदी प्रयास 

कुछ का ह्रास 

(६)

खेतों में बैल 

चक में ट्यूब वैल

समर वैल .  

(७)

ऊर्जा करण

कृषि उपकरण 

बेंकिकरण

(८)

गाँव के मेले 

गौ भेंसों के तबेले 

भीड़ के रेले 

(९)

धृत हंडियां 

जले सरकंडिया

पग डंडियां

(१०)

हरित गाछ 

लौह काठ के राछ 

दही की छाछ 

    *****

  

kya jabardast likha hai aapne ...................bahut sundar bhaavon ko sajaaya hai

हार्दिक आभार संदीप कुमार जी  

Mazza aa gaya GAAON HAIKOO pad kar adarniya Rajesh Kumari Ji

हार्दिक आभार प्राची जी 

हार्दिक आभार वंदना  जी 

bahut hi acchi haiku ..rajesh ji

बहुत ही सुन्दर हाइकु कहे हैं राजेश कुमारी जी, और वह  भी तुकांत के साथ - वाह वाह वाह वाह. बधाई स्वीकार करें.   

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"//जिस्म जलने पर राख रह जाती है// शुक्रिया अमित जी, मुझे ये जानकारी नहीं थी। "
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